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Showing posts from 2017

तीन तलाक

तीन तलाक़ या एक मज़ाक। एक बार एक मुस्लिम महिला के पति ने उनको तलाक़ दे दिया। वो महिला अपने दिल में कसक लिये कि क्या वज़ह थी जो मेरे मोहब्बत के रिश्ते को एक पल में तोड़ दिया गया, वो अपने बच्चों के साथ अपने पति का घर छोड़ के चली गयी। उनके बच्चे ने अपने पिता से पूछा," अब्बु आखिर क्यों आप मेरी माँ को छोड़ रहे हो, आप ये ठीक नहीं कर रहे हो,  ये इंसानियत नहीं है। यही बच्चा जब बड़ा हो गया तो उसने वही कहानी दोहराई जो उसके पिता ने किया था। तो क्या वो बच्चा अपनी माँ का दर्द भूल गया? अब इस सवाल का जवाब वो बच्चा ही दे पायेगा जो अब बड़ा हो गया है। #सोचनीय नोट- ये मेरी सोच है हो सकता है आप इससे इत्तेफ़ाक़ न रखते हों।                        - दिव्यमान यती

नेहरा जी का प्रेरणादायक सफ़र।

भारत का दिग्गज क्रिकेटर आशीष नेहरा जिन्हें उनके साथी खिलाड़ी नेहरा जी के नाम से बुलाते थे, उनका 1 नवंबर 2017 को अंतराष्ट्रीय क्रिकेट का सफ़र ख़त्म हो गया। 1999 में अंतराष्ट्रीय क्रिकेट की शुरुआत करने वाले नेहरा जी का सफ़र बहुत मुश्किलों भरा रहा, इन 18 साल के लंबे कैरियर में उनकी लगभग 15 सर्जरी हुयी। वो कभी भी टीम से ख़राब फॉर्म के कारण बाहर नहीं हुए बल्कि सिर्फ इंजरी की वजह से बाहर हुए। 1999 में मोहम्मद अजहरुद्दीन की कप्तानी में अपना टेस्ट कैरियर शुरू किया था नेहरा जी ने लेकिन फिर भी सिर्फ 17 टेस्ट ही खेल पाये जिनमें 44 विकेट उनके नाम रहे। वो कई कप्तानों की कप्तानी में खेले, वो सौरव गांगुली की कप्तानी में 2003 विश्वकप भी खेले और भारत को फाइनल में पहुँचाने में अहम योगदान भी निभाया। वो भारतीय टीम से अंदर-बाहर होते रहे लेकिन हर बार उन्होंने टीम में वापसी की। नेहरा जी ने भारत के लिए 120 वनडे मैच खेले और 157 विकेट लिए हैं। 2011 के विश्वकप विजेता टीम के भी हिस्सा रहे नेहरा जी ने इसी टूर्नामेंट में अपना आखिरी एकदिवसीय मैच खेला वो भी पाकिस्तान के विरुद्ध, उस मैच में फिर उनको इंजरी हो गयी जिस

अपने अस्तित्व के लिये जूझते शरणार्थी।

रोहिंग्या समुदाय, ये वो समुदाय है जो पिछले सैकड़ों वर्षों से अपने अस्तित्व के लिए जूझ रहा है। रोहिंग्या मुसलमानों को उनका देश ही नहीं अपना रहा, वहाँ रोहिंग्या मुसलमानों पर ज़ुल्म हो रहे हैं। म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमानों और बौद्ध समुदाय का बहुत भयावह इतिहास रहा है जो अभी तक जारी है। ये लोग अपनी जान बचाने के लिए अलग-अलग रास्तों से अपना देश छोड़ दूसरे देशों में शरण ले रहे हैं जिससे दूसरे देशों में भी हलचल का माहौल है। इनकी एक बड़ी आबादी भारत, बांग्लादेश, भूटान जैसे देशों में आ कर रह रही है। इतिहास जो भी रहा हो लेकिन वर्तमान में रोहिंग्या समुदाय के साथ हो रहे जुल्म ने सबको आश्चर्य में डाला हुआ है। म्यांमार की स्टेट काउंसलर आंग सान सू की चुप्पी भी समझ के परे है क्योंकि म्यांमार में उनकी छवि मानवाधिकार के लिए लड़ने वाली नायिका की है। रोहिंग्या मुसलमानों पर इस्लामिक देशों की ख़ामोशी भी आश्चर्यजनक है। ऐसा पहली बार नहीं हो रहा जब किसी को अपना ही घर छोड़ना पड़ रहा है, हमारे देश भारत में ही कश्मीरी पंडितों को अपना घर छोड़ पलायन करना पड़ा था, सीरिया से भी एक बड़ी आबादी पलायन करती रही है, ऐसे ब
कभी तो पूछ लिया करो हाल-ए-दिल मेरा, हर बार जो भी लिखूँ वो शायरी ही हो ज़रूरी तो नहीं। #दिव्यमान

बाल यौन शोषण।

ज़रा उन दरिंदों की हवस का आलम तो देखो, मासूम चेहरों में भी उन्हें अपनी हवस कैसे दिख जाती है? अरे इंसान के भेष में शैतानों! मासूम बच्चों को भी ना छोड़ा अपनी हवस की आग बुझाने को। तुम्हे वो मासूम आँखें नहीं दिखती जिनमें भगवान की छाया दिखाई देती हैं? अरे तुम देखोगे कैसे तुम्हारी आँखों पर हवस का परदा जो है। क्या तुम ऐसे ही अपने खुद के घर के बच्चों को भी देखते हो, वो बच्चे भी कितने बदनसीब होते होंगे जो तुम जैसों के घर में पैदा होते होंगे। इस दुनिया में इंसान की सबसे खूबसूरत अवस्था बचपन होती है तुम उसी बचपन की फुलवारी को उजाड़ रहे हो वो भी इतनी दरिंदगी से, तुम इंसान तो कत्तई ना हो। जिन मासूम आँखों को देख किसी का भी दुःख दूर हो जाता है, जिन मासूम चेहरे पर हँसी देखने के लिए इंसान कुछ भी करने को तैयार रहता है, तुम दुनिया की अच्छाई और बुराई से अनजान उन बेक़सूर मासूम सी ज़िन्दगी को खा रहे हो। ऐसे दरिंदों की क्या सजा होनी चाहिए मेरी समझ के परे है, लेकिन इतना पता है ऐसे दरिंदे इस समाज में एक पल भी रहने लायक नहीं हैं। अब हमें ही इंसान के बचपन की फुलवारी को बचाना होगा इन सरफिरे दरिंदों से। ये एक

चाहत

तुम्हारी छुवन का एहसास मै चाहता हूँ, भीगीं लबों की प्यास मै चाहता हूँ, तुम्हारी ज़िस्म से गुज़र के तुम्हारे रूह की मिठास मै चाहता हूँ, तुम्हारी ये गहरी सांस मै चाहता हूँ, चाहत तो बहुत है, बस तुम्हारे करीब होने का एहसास मै चाहता हूँ।

देश के नौजवानों।

                       ◆देश के नौजवानों◆ हे! देश के समझदार नौजवानों ये जो कुछ नासमझ लोग सोशल मीडिया पर आग उगल रहे हैं आप उन्हें क्यों नहीं सिरे से ख़ारिज कर देते। आप धर्म का झंडा बुलंद करके इंसानियत को कहाँ रख रहे हो? जिसे आप धर्म कह रहे हो कहीं वो अधर्म तो नहीं? मुझे धर्म का ज्यादा ज्ञान नहीं लेकिन मुझे इतना पता है इंसानियत से बड़ा कोई धर्म नहीं क्योंकि बचपन से ही हमें यही सिखाया और पढ़ाया गया है। वो धर्म के ठेकेदार जो चाहते हैं आप से, आपमें से कुछ वही तो कर रहे हैं।आप लोकतंत्र के स्तम्भ बने ना कि गन्दी राजनीति के। मै देख रहा हूँ मेरे भी मित्रों में से कुछ को, लग रहा है उनका धर्म या क़ौम खतरे में है, और अपने धर्म को खतरे से बचाने के लिये कही से भी कोई भी अफ़वाह या गलत खबर को शेयर करने में पीछे नहीं हटते। "धर्म का पता नहीं लेकिन इंसानियत तो ज़रूर खतरे में है।" हम क्यों किसी की कही गयी बातों पर बिना सोचे समझे आँख बंद करके विश्वास कर लेते हैं बिना उस बात की सत्यता की परख किये बिना। नौजवानों से ही देश को उम्मीद है लेकिन जब नौजवान ही नहीं सोचेंगे हमारा भविष्य युद्ध निर्धारित

तमकुही राज- एक अनसुनी कहानी

◆तमकुही राज- एक अनसुनी कहानी◆ उत्तर प्रदेश के कुशीनगर जिले में राष्ट्रीय राजमार्ग-28 के समीप स्थित है तमकुहीराज ( Tamkuhi Raj )। तमकुहीराज का अपना ही एक गौरवपूर्ण इतिहास है जिसे इतिहासकारों ने उतनी तवज्जों नहीं दी सिवाय कुछ स्थानीय इतिहासकारों के। आज भी तमकुहीराज के गौरवशाली इतिहास की गाथायें यहाँ के बुजुर्गों से सुनने को मिलती है। तमकुहीराज में एक खूबसूरत राज्य होने से पहले यहाँ घना जंगल हुआ करता था जिसे वीर राजा "फतेह शाही" ने बसाया था। राजा फतेह शाही ( Raja Fateh Sahi ) को 1767 में अंग्रेजों की "कंपनी सरकार" ने "कर" ना देने का विरोध करने पर वि द्रोही घोषित कर दिया। राजा साहब को जनता का भरपूर समर्थन प्राप्त था जिसके परिणामस्वरूप उन्होंने तमकुहीराज में राज्य की स्थापना की तथा इसका विस्तार भी किया। 23 वर्षों तक बग़ावत का झंडा बुलंद किये लड़ते रहने के बाद 1790 में फतेह शाही ने अपने पुत्र को तमकुही की गद्दी पर बिठाकर महाराष्ट्र सन्यास पर चले गये। 1836 में फतेह शाही की मृत्यु के बाद भी अंग्रेज़ो में उनका आतंक कम न हुआ। राजा फतेह शाही के बाद भी कई

आज़ाद दिव्यमान की आज़ाद सोच अपने देश के लिए।

आज़ाद दिव्यमान की आज़ाद सोच- जब हमारा देश आज़ाद हुआ था तब मेरा कोई अस्तित्व नहीं था लेकिन मेरे अस्तित्व का ना होना हमें आज़ादी के उस वक़्त के एहसास से अलग नहीं कर सकता। मैने जितना जाना जितना सुना उन सब पर विचार किया और मुझे ये एहसास हुआ कि उस वक़्त पुरे देश के लोगों का एक ही लक्ष्य और एक ही लड़ाई थी, अपने देश की अंग्रेजों से आज़ादी। हम आज़ाद भी हुए पुरे देश के महान क्रांतिकारियों के योगदान से। इस वक़्त भले ही हमारी अलग-अलग राय है, अलग-अलग विचारधारा है लेकिन हम एक हैं एक तिरंगे के नीचे। मुझे बस इतना कहना है "घर के कुछ लोगों के बुरे होने से हमारा घर बुरा नहीं हो सकता, घर तो घर है जो अच्छे और बुरे दोनों को आश्रय देता है,हम उस घर पर कभी ऊँगली नहीं उठा सकते जो हमें रहने का स्थान देता है।" आज हम हैं, हमारी पहचान है तो हमारे घर (देश) की वज़ह से। हमारा देश आज से हज़ारों वर्ष पहले भी महान था, आज भी महान है और कल भी महान रहेगा, देश की महानता कभी कम नहीं होने वाली। हमें देश से जुड़ी हर उन चीज़ों से आत्मविश्वास और गर्व की अनुभूति होती है जो इस देश की पहचान और शान हैं। हमारे लिए हमारा देश पहल

न थके हैं न रुके हैं।

कौन कहता है हम थक गये... कौन कहता है हम रुक गये... शायद तुमने इन कदमों को गौर से देखा ही नही... ना ही ये रुके है ना ही ये थके है... ये तो तैयारी कर रहे है "एक लम्बे सफर की"...                                                 ~ Divyaman Yati

हाँ, मै काला हूँ।

◆मै काला हूँ◆ हाँ मै काला हूँ, हाँ मेरी सूरत काली है। हाँ मुझे दिखने के लिए उजाले की ज़रूरत पड़ती है। मै काला हूँ मुझे इस बात में कोई शर्म नहीं बल्कि मुझे गर्व है अपने काले होने पर फिर क्यों कुछ लोगों को मेरा काला होना रास नहीं आता? मुझसे मोहब्बत नहीं कर सकते तो ना करो लेकिन मुझसे नफ़रत भी ना करो। ये क्यों भूल जाते हो तुम कि "ईश्वर ने जितना वक़्त उजाले को दिया है उतना ही वक़्त अँधेरे को भी दिया है।" जितना हक़ तुम्हारा है इस दुनिया पर उतना मेरा भी है, मुझे नहीं चाहिए किसी की मोहब्बत लेकिन ये नफ़रत भी तो ना दो मुझे। गोरी आँखों में काला काजर लगाने से चेहरे की शोभा बढ़ जाती है, कुछ को अपने गोरे बदन पर काली शर्ट कितनी अच्छी लगती है,  तुमको काली बिल्ली कितनी पसंद है, तुमको काले कुत्ते भी अच्छे लगते हैं, तुमको तुम्हारे काले मोटरसाइकिल या काली कार को देखना सुकूँ देता हो लेकिन काले इंसान को देख के तुम्हारा दिन ख़राब हो जाता है। हर चीज़ काली पसंद है सिवाय किसी काले इंसान के। ज़रा खुद के अंदर झाँक के देख लो, तुम खुद दोहरी सोच में जी रहे हो,देखो कहीं तुम्हारी उजली नज़र तुम्हे अँधा त

हरियाणा में छेड़खानी।

एक लड़की #हरियाणा में #छेड़खानी की शिकार हुई, छेड़ने वाले वो थे जिन्हें पता था, "मेरा कौन क्या कर लेगा सरकार मेरी है।" पुलिस ने आखिर मौके पर पकड़ लिया लेकिन कब तक रख पाती जमानत मिल ही गयी। भैया वो सरकार हैं वो कुछ भी कर सकते हैं। सोचिये वो लड़की एक आई. ए. एस. की बेटी थी अगर वो कोई आम लड़की होती तो उसका तो पता भी नहीं चलता। लड़के से पहले लड़की की ही जाँच शुरू हो गयी वो जाँच है लड़की के #आचरण की जो हर बार होती है। लड़की में कोई ना कोई कमी निकाल ही लेंगे कुछ लोग फिर बात आ जायेगी लड़की क्या कर रही थी और क्यों इतनी रात वहां थी। बात आगे बढ़ेगी मुद्दा बदल जायेगा। बात शुरू कहाँ से हुई थी बात कहाँ पहुँच जायेगी पता नहीं। "ये ऐसे लोग हैं जो निर्भया के की मौत पर मोमबत्तियां तो खूब जलाते हैं लेकिन दूसरों की आचरण की पहचान बड़ी बारीकी से करते हैं।" अभी तो राजनीति चल रही है बीजेपी-कांग्रेस वाली, जिसकी हमें आदत सी हो गयी है। बस सवाल एक ही है अगर वो कोई आम लड़की होती तो उसका क्या हश्र होता, क्या वो इस लायक बचती को वो अपनी आवाज बुलंदी से उठा सके। ये राजनीति का मुद्दा होगा बहुतों के लिये

लौट आओ गौरैया।

 ●लौट आओ गौरैया● हम नादान थे या वो परिन्दे, जिस दिन हमने उन परिन्दों के आशियाने को उजाड़ा था, वो परिन्दे भी इस बात को दिल से लगा बैठे, छोड़ गये घर हमारे, जैसे लगा खुशियों की रंगत ही उड़ गयी हमारे घरों से, अब तो लौटने की दुआ भी नहीं कर सकते, क्यूंकि उनके स्वाभिमान को ठेस जो लगी थी। फिर भी संभव हो तो हमें माफ़ कर देना, और हमारी पुकार सुन लेना, हम सब तुमसे कहना चाहते हैं "लौट आओ गौरैया"

ये ख़ामोशी क्यों? और कब तक?

अभी भी बहुत से लोग ख़ामोश हैं क्यों? "शायद 7 लोग ही मरें हैं, और वो भी #अमरनाथ में ये हमारी सोच और समझ की सीमा के बाहर है, छोड़ो क्या बोलना।" ये एक कटु सत्य है। शांति की बात करने वाले और कश्मीर के #पत्थरबाजों को नादान कहने वाले, ज़रा उन पत्थरबाजों से पूछो, "क्या ये है तुम्हारी आज़ादी?" आज क्यों #कश्मीर शांत है क्योंकि कोई #बुरहान नहीं, कोई #हर्ष मारा गया है। मै पूछता हूँ ये देश ही क्यों शांत है। आप भाईचारे की बात करते हैं ना मै बताता हूँ कौन मेरा भाई है, #लेफ्टिनेंट_मोहम्मद_अयूब मेरा भाई है, वो ड्राईवर #सलीम_शेख़ मेरा भाई है, वो कश्मीरी मेरे भाई हैं जो अपनी जान देकर अपने देश की सेवा करते हैं। कोई #पत्थरबाज मेरा भाई नहीं हो सकता जो मज़हब देख कर पत्थर चलाता हो।

बंगाल हिंसा पर बुद्धिजीवियों का दोहरापन।

◆बंगाल हिंसा पर समाज के बुद्धिजीवियों का दोहरापन◆ मुझे अभी तक बंगाल में हुयी हिंसा की वज़ह और वहां के हालात का ठीक ढंग से जानकारी नहीं मिल पा रही। ये समाज का दोहरापन क्यों है इस समाज में। ना कोई राजनेता और ना ही कोई बुद्धिजीवी इस हिंसा पर कुछ बोल रहा है। हिंसा तो हिंसा है वो कही भी हो और किसी वज़ह से हो उसकी निंदा इस समाज के हर हिस्से में होनी चाहिये। कुछ बुद्धिजीवियों का यही दोहरा रवैया समाज़ के हालात को चिंताजनक बना रहा है। मुझे याद आता है इसके पहले भी बंगाल में हिंसा हुई थी लेकिन मीडिया वर्ग में भी उस हिंसा पर बहुत सीमित चर्चा होती थी। बात यही आकर थोड़ी ठहर जाती है। जितना प्यारा जुनैद है उतना ही प्यारा घोष भी है। पर कुछ संकुचित सोच वाले अपने पीछे के उपनाम पर ही लोगों का अवलोकन करते हैं। दिल में जो नफ़रत की मैल बैठ गयी है उसे पवित्र जल से धो दो। कृपया एक बार सोचें नफरतों से किसका भला हुआ है।

वो अधूरी रात

                      ◆वो अधूरी रात◆ मुझे आज भी उस अधूरी रात का एहसास सिर्फ अफ़सोस दिलाता है, तेरा मेरे इतने करीब हो कर भी तुझमे ना खो पाने का एहसास अफ़सोस दिलाता है। लेकिन मुझे सिर्फ अफ़सोस नहीं मुझे एक सुकूँ भी है, वो सुकूँ तेरा मेरे करीब होने का है। तेरे साथ बिताये वो हसीन पल अभी भी मेरे ज़ेहन में हैं। और मुझे ये यकीन है ये हसीन पलों की शुरुआत है और तेरे मेरे करीब आने का सिलसिला यूँ ही चलता रहेगा। क्या था तेरे दिल में वो मुझे खबर तो थी ही, क्या था मेरे दिल में शायद तुझे भी खबर थी। लेकिन खबर होते हुए भी हम बेखबर थे। मुझे नहीं पता ख़ुदा हो क्या मंजूर है लेकिन आज भी मेरा दिल हर वक़्त तुझे अपनेे करीब चाहता है, उम्मीद है तुम्हारी भी यही चाहत होगी। जब चाहत को इतनी चाहत है तो क्यों ना इस चाहत की चाहत को पूरी की जाये फिर उस अधूरी रात को पूरी करके।                  -Written by Divyaman Yati

तरस कुछ नासमझों पर।

भारत में रहने वाले कुछ नासमझ लोग जो पाकिस्तान ज़िंदाबाद या पाकिस्तान की जीत की ख़ुशी में आतिशबाजी करते हैं उन पर सिर्फ तरस आता है। ये लोग पाकिस्तान जाने की हिम्मत नहीं दिखा पाते क्योंकि उनकों वहाँ सिर्फ इसी शर्त बुलाया जायेगा कि तुम आतंकवादी बनों, नागरिकता तो मिलेगी नहीं। इनकी यहाँ जो इज़्ज़त रहती है वो इनके कुकर्मों से इनके ही क़ौम के लोग इन्हें नकार देते हैं। इनके लिए सिर्फ एक बात याद आती है। ये लोग " ना घर के हैं ना ही घाट के" हे ऊपरवाले! सद्बुद्धि दे इन ढक्कनों को। वैसे हम (भारतीय) तो "भारत माता की जय" में ही विश्वास रखते हैं।🇮🇳🇮🇳🇮🇳 #दिव्यमान_की_सोच

एक टूटे हुए मोहब्बत के रिश्ते को समर्पित।

◆एक टूटे हुए मोहब्बत के रिश्ते को समर्पित◆ आज बरसों से चला आ रहा मोहब्बत का ये सिलसिला थम गया, कितना अजीब लगता है तेरा यूँ इस कदर मुझे छोड़ कर जाना, क्या करूँ? शिकायत करूँ या इबादत करुँ ख़ुदा से, समझ नहीं आता। बस दिल सुन्न सा पड़ा हुआ है, जैसे ये एहसास मुझे पहले कभी ना हुआ हो। पर मोहब्बत मेरी कल भी थी, आज भी है और कल भी रहेगी। तू कभी फ़िक्र ना करना मेरी, बस एक एहसान कर देना मुझपे, अपने यादों में कभी-कभी थोड़ी सी ज़िक्र कर देना मेरी।                                    - Divyaman Yati

Don't Ask Any Question About My Indian Army

    जब 24×7 बॉर्डर पर हमारी सेना बिना कोई सवाल पूछे हमारी खुशहाली के लिये ड्यूटी करती हैं, तब हम क्यों उनसे सवाल पूछते हैं, इस लोकतांत्रिक देश सब अपनी गरिमा और मांग के लिये हड़ताल करते हैं, लेकिन भारतीय सेना नहीं करती, क्यों? क्योंकि उनकी कोई मांग ही नहीं होती। थोड़ी तो शर्म करो सेना से सवाल पूछने वालों जिस दिन देश की सेना हड़ताल पर बैठ गयी उस दिन क्या होगा? लेकिन सेना की कोई शर्त या मांग नहीं वो बिना शर्त अपने देश की और उनके लोगो की सुरक्षा करते हैं। #जयहिन्द फोटो साभार- गूगल                       - Divyaman Yati

◆गैंग्स ऑफ रेवाड़ी गर्ल्स◆

          ●गैंग्स ऑफ़ रेवाड़ी गर्ल्स● आप लोग शीर्षक से समझ ही गये होंगे कि मै हरियाणा के रेवाड़ी की उन बहादुर लड़कियों का ज़िक्र कर रहा हूँ, जिन्होंने अपने हक़ की लड़ाई शांतिपूर्ण और साहस के साथ लड़ी। उनकी लगभग एक हफ्ते की भूख हड़ताल के आगे आख़िरकार सरकार को झुकना ही पड़ा और रेवाड़ी की इन बहादुर लड़कियों की मांग पूरी हुई जो कि निःसंदेह जायज़ थी। मुझे इस हड़ताल के पीछे का कारण जान कर आश्चर्य हुआ, मनचलों के डर से ये लड़कियां अपने स्कूल को अपग्रेड कराना चाहती थी जिसकी वजह से उन्हें दूसरे गाँव ना जाना पड़े और उन्हें मनचलों की कायराना हरकत का शिकार न होना पड़े। ख़ैर बात इन बहादुर बच्चियों की जिन्होंने इस समाज में एक मिशाल कायम किया है, इतनी कम उम्र में इतना दृढ़निश्चय सराहनीय है। मेरा इन बच्चियों को सलाम बहुत कुछ सीखने को मिला इनसे। दुःख की बात ये है कि इस खबर की जानकारी बहुत मुझे भी मुश्किल से मिल पायी,मुझे इनके बारे पूरी जानकारी के लिये थोड़ी मेहनत करनी पड़ी, अभी भी बहुत से लोग शायद ही उन "रेवाड़ी गर्ल्स" के बारे में जानते हों ये थोड़ी निराशाजनक बात है। क्योंकि इसी दौरान एक और भूख हड़ताल चल रही

मोदी सरकार के 3 साल।

मोदी सरकार के 3 साल- इस साल 16 मई को मोदी सरकार के 3 साल पुरे होने वाले हैं, हर साल की तरह इस साल भी मोदी सरकार के समस्त मंत्री अपने-अपने काम का विवरण ले कर लोगों के बीच आ रहे हैं और 3 साल का जश्न मना रहे हैं। मोदी सरकार के 3 साल पुरे होने पर जनता भी मोदी सरकार के काम का हिसाब किताब ज़रूर करेगी और करे भी क्यों ना, जनता का अधिकार है कि वो अपने सरकार के कामकाज का हिसाब ले। मोदी सरकार निःसंदेह पिछले 3 सालों में कुछ आश्चर्यजनक फैसलों और कामों से लोगो के बीच अपनी लोकप्रियता को काफी हद तक कायम रखा है, इनमें से नोटेबन्दी और सर्जिकल स्ट्राईक ताज़ा उदाहरण हैं। लेकिन मोदी सरकार के लिए राह अभी आसान नहीं, अभी भी एक बड़ा वर्ग उनसे बहुत सी उम्मीदें लगाये बैठा है, उनमे किसान प्रमुख हैं जिन्हें मोदी सरकार भरोसा देती भी  रहती है। मोदी सरकार की बहुत से फैसले और नीतियां सराहनीय हैं,सरकार पर पिछले 3 साल में एक भी भ्रष्टाचार के आरोप न लगना उनकी बड़ी उपलब्धियों में से एक है। मोदी जी की विदेश यात्राओं की चर्चा सरकार शुरुवाती दिनों में खूब रही विपक्ष ने ख़ूब चुटकियां ली लेकिन आज भारत की विश्व पटल पर एक नयी प

कुछ सवाल मीडिया से भी।

जहाँ तक मीडिया की बात है, तो मीडिया हर किसी से सवाल पूछता है, हर किसी के कार्य शैली पर प्रश्नचिन्ह लगाता है, हर बार मीडिया अपनी स्वतंत्रता की बात करता है। पर क्या कोई है जो मीडिया की कमियों को भी उजागर करे? क्या कोई है जो मीडिया से भी सवाल पूछे? या फिर ऐसा है कि मीडिया से कभी कोई गलती होती ही नहीं। तो मेरा कहना सिर्फ ये है मीडिया के बीच के लोग जो पत्रकारिता समाज के प्रति अपने कर्तव्यों के निर्वहन लिये करते हैं उन्हें उठ कर सामने आना होगा और अपने बीच की बुराइयों और अपने बीच चल रहे व्यवसाय के खिलाफ आवाज़ उठानी होगी। नहीं तो अगर सवाल करने वाले की पवित्रता खतरे में आ जाये तो उसके सवाल का क्या मतलब।                                       -दिव्यमान यती

शहीद उमर फ़याज़।

अरे ओ कश्मीर के मुर्ख पत्थरबाजों, क्या तुम्हारा ज़मीर आज नहीं रो रहा, जब तुम्हारे बीच का एक युवक लेफ्टिनेंट फ़याज़ की निर्मम हत्या कर दी गई। कल तक तुम ज़ाहिलों ने एक आतंकवादी के लिये अपनी माँ से दगा कर गये। तुम्हें देख तो उपरवाला भी अफ़सोस कर रहा होगा, मेरी बनाई सबसे अनमोल रचनाओं में से कुछ इतने ज़ाहिल हैं। हमें गर्व है उस कश्मीरी शहीद उमर फ़याज़ पर। उपरवाला उनकी आत्मा को शांति दे।

■ मै नदी थी■

मै नदी थी, इंसानों ने नाला बना दिया। कल तक खुद अपना रास्ता बनाती थी, आज तुमने मेरी तक़दीर पर हक़ जमा लिया। जैसे तैसे मै अपना वज़ूद ढूंढ रही हूँ, और इन इंसानों ने मेरे आशियाने पर अपना ही कारोबार बसा लिया।                          - दिव्यमान यती

निर्भया - एक सोच

ना ये रात गुनहगार है, ना ही वो रात थी, ना ही हम गुनहगार हैं, ना ही तुम थी, गुनहगार तो वो सोच थी, जो उस रात उन दरिंदों की थी। वो आज या कल मर ही जायेंगे ज़ाहिलों की मौत, पर उस सोच का क्या, क्या वो मर पायेगी? मार सको तो उस सोच को मार देना, शायद अपनी बहन, माँ, और बेटियां बच जायेंगी।

Shame on pakistani army..

मै आप सभी से निवेदन कर रहा हूँ कि पूरा देश एक साथ पाकिस्तान की निंदा करे, जब 121 करोड़ लोग एक साथ एक सुर में पाकिस्तान को चुनौती देंगे, तब क्या होगा ये सबको पता है। ये जो हरकत वो कर रहा है उससे ये ज़ाहिर होता है कि ये इंसानी हरकत तो नहीं। अब शांति वार्ता का वक़्त गया। आपको पता है जब पाकिस्तान की ख़ुद की बात होती है तो सारे पाकिस्तानी एक हो जाते हैं, वो पाकिस्तानी भी जिन्हे भारत रोज़ी रोटी देता है फिर हम क्यों दोहरे सोच में रहते हैं। मै तो दोहरी सोच में नहीं हूँ। मै पाकिस्तान को सिरे से ख़ारिज करना हूँ। मुझे पता है युद्ध विकल्प नहीं लेकिन और भी विकल्प हैं उसपर सरकार को अमल करना चाहिये और उम्मीद है सरकार ज़रूर करेगी। हर दर्द का जवाब मिलेगा, जो तुम नासमझों ने इस देश के जवानों को दिया है। अब तैयार हो जाओ। आप कहोगे सिर्फ बोलने से क्या होगा, तो मुझे ये बताओ ख़ामोश रह के क्या होगा। जय हिन्द। #IndiaAgainstPakistaniterorism                                  -Divyaman Yati

■बाहुबली-2 (एक बदलाव)

            ■बाहुबली-2 ( एक बदलाव)■ बाहुबली नाम सुनते ही एक उमंग और एक नयी दुनिया "माहिष्मति" का दृश्य सामने आ जाता है, ये दुनिया बनाने में कितनी लगन और मेहनत लगी है ये बाहुबली टीम ही बखूबी समझा सकती है हम तो बस अंदाज़ा ही लगा सकते हैं। 5-6 साल की मेहनत को हमने 6 घण्टों में समेट लिया और एक उम्मीद लिये वापस सिनेमाघरों से लौटे। वो उम्मीद ये थी कि शायद बाहुबली ने भारतीय फ़िल्म जगत को एक नयी उम्मीद दी हो, शायद एक क्रांति लायी हो। हमें ये याद रखना चाहिए ये फ़िल्म दक्षिण भारतीय फ़िल्म का हिस्सा है, जिसने हिन्दी भाषा में भीे धमाल मचा रखा है अभी तक के सारे रिकॉर्ड ध्वस्त कर दिये और नये रिकॉर्ड कायम कर रही है। ऐसा नहीं ये एक तुक्का या सिर्फ किसी योजना की देन थी, बल्कि ये एक अच्छे कंटेंट और एक प्रबल सोच की देन है। जिसे राजामौली और उनकी टीम ने बखूबी अंजाम दिया। आश्चर्यजनक दृश्य सोचना और उसे पर्दे पर उतारना एक प्रखर सोच वाले इंसान की ही हो सकती है। और अब बात हमारे हिंदी फ़िल्म जगत पर बाहुबली के प्रभाव के बारे में, क्योंकि ये बहुत मायने रखता है। हिंदी फ़िल्म जगत में बड़े बड़े प्रोजेक्ट

मेरा गाँव।

वो गांव के नल का मीठा पानी, जो अब मीठा नहीं रहा। वो गाँव की हवाओं की ताज़गी, जो अब ताज़ी नहीं रही। वो सुबह-सुबह कोयलों की कु- कु, अब तो कोयल ही नहीं रही। वो बरगद के पेड़ के नीचे खाट पर बैठ कर गप्पे लगाना, अब ना खाट रही ना बरगद। सारे कामों के बाद भी वक़्त ही वक़्त होना, वक़्त की मार से कभी ना रोना। वो शरमाती साँझ को गाँव के बुजुर्गों का चौपाल, बहुत याद आता है। लगता है किसी बेईमान शहरी की नज़र लग गयी है मेरे गाँव को।

अलविदा

अलविदा, आज तुम्हे अलविदा कहने का वक़्त आ ही गया। ये मेरे जीवन का सबसे कठिन और दुविधाओं से भरा वक़्त है, दिल में जज़्बातों का सैलाब उमड़ रहा है। ये दिल मुझसे लाखों सवाल कर रहा है, वो पूछ रहा है, "आखिर ये अलविदा क्यों?" मै भी नादान उसे समझाये जा रहा हूँ कि मैंने अलविदा सिर्फ उसे कहा है, उसकी यादों को नहीं, उसके अल्फाज़ो को नहीं। उसकी हर याद, उसके साथ की हर मुलाक़ात, उसकी हर बात ताउम्र मेरे दिल और दिमाग में ज़िंदा रहेगी। आखिर कोई कैसे उन हसीन लम्हों को भूल सकता है, क्या वो भूल पायेगी, मुझे नहीं लगता। पर अलविदा तो कहना ही पड़ेगा क्यूंकि वक़्त की यही मांग है। हमारे जज़्बातों का अब कोई मोल नहीं, हमारे वादों की अब कोई अहमियत नहीं। एक वक़्त था जब मुझे तुम्हारी आदत सी हो गयी थी, तुम्हे हर रोज़ देखना, हर रोज़ सुनना, हर पल तुम्हे याद करना। अब इस आदत को छूटने में शायद एक अरसा लग जाये। हमें डर तो पहले भी था इस अंजाम-ए-मोहब्बत का लेकिन हमारी मोहब्बत ही तो हमारी ताकत थी, पर आज वही ताकत हमारी कमजोरी हो गयी है। मै आज जितना मज़बूर हूँ,उतना शायद ही पहले कभी रहा हूँ। पर ये मै दावे के साथ क

दो वक़्त की रोटी।

हमें क्या चाहिये इस ज़माने से बस दो वक़्त की रोटी दिला दो, खा लेंगें मोहब्बत से, हमें ज़माने में फैली नफरतों से क्या करना है, हमें तो अभी मतलब है बस इस भूखे पेट की तपिश को मिटाने से, बस दो वक़्त की रोटी दिला दो, खा ही लेंगें मोहब्बत से। तुम जितना चाहो उससे ज्यादा मुस्कुरा देंगे हम, हर दर्द को भी छुपा लेंगे इस ज़माने से, बस कहीं से दो वक़्त की रोटी दिला दो, खा लेंगे मोहब्बत से। फोटो साभार written By DivyamanYati

बात उस रात की।

सोच रहा हूँ तुझसे थोड़ी बातें कर लूँ। आज एक मुद्दत बाद तुझसे मुलाक़ात जो हुयी है, और बताओ कैसीे हो, क्या तुम भी मेरे ही जैसीे हो? आज भी मुझे तुम्हारी आँखें पढ़नी आती हैं, आज भी वैसे ही नजरें चुरा रही हो, जैसे उस रात चुराया था। उस रात तुमने नजरे चुराई न होती तो मै समझ जाता तुम्हारे जाने की वज़ह क्या थी, एक बार कहना था तुम्हें मुझसे, आखिर मैंने तुमसे मोहब्बत की थी, मै न समझता तो कौन समझता। तुम्हे पता है उस रात के बाद की सुबह कैसी थी मेरी, सुबह की ताज़गी का एहसास कहीं खो सी गयी मेरी, हर सुबह मुझे डराती थी, हर सुबह बहुत ही तकलीफ भरी होती थी, जैसा लगता था कल ही की तो रात थी जब हम मिलें थे, वो अधूरी रात आज भी मेरे ज़ेहन मे ज़िंदा है। तुम्हारा इस तरह मुझे छोड़ के जाना, मै तो ठीक से तुम्हे अलविदा भी न कह पाया, मेरी मोहब्बत का ये अंजाम होगा, ऐसा मैंने कभी न सोचा था। अब आज 30 साल बाद ऐसे मिलना एक इत्तेफ़ाक़ ही तो है। ये रात भी उस रात जैसी हसीन है, क्योंकि तुम मेरे पास हो, और ये तब तक हसीन है जब तक तुम मेरे सामने हो। अब उस रात को तुम्हारे जाने की वज़ह पूछ कर इस रात को क्यों ख़फ़ा करूँ। तुम्

शुक्रिया तेरा।

मेरे हाथों में कलम देने वाले तेरा शुक्रिया, आज कूड़ा-कचरा उठा रहा हूँ, कल इसी कलम से सोये हुये इंसानों को जगाऊंगा। मेरी तक़दीर का अंदाज़ा नही मुझे, बस मै इसी कदर लिखता ही चला जाऊँगा। एक उम्मीद तो मैंने भी पाल रखी है, छोटी ही सही, मुझे मेरा ख़ुदा भी दिखता मुझमें ही कही। तूने कल मुझे झाड़ू दी उसका भी शुक्रिया, आज मुझे कॉपी और कलम दे रहा है उसका भी क्रिया। pic by Sandeep gupta

खुद से जंग।

क्या ये जंग मै जीत पाउँगा, यहाँ तो दुश्मन भी मै ही हूँ, क्या ख़ुद से मै लड़ पाउँगा, क्या ये जंग मै जीत पाउँगा।                      -दिव्यमान यती

ख़्यालों की जमीं।

हमें भी जहाँ बनाने की चाहत है, इस जहाँ को तो उसने (ईश्वर) बनाया, यहाँ बनाना मुश्किल है। इसलिये मैंने भी चुन लिया ख़्यालों की जमीं को, अपना जहाँ बनाने को।

शांति की खोज।

मन मेरा अशांत है, दिमाग अब हदें पार कर रहा है। कभी कभी खुद को बेबस महसूस करता हूँ। क्यों? ऐसा क्यों होता है? मै हर चीज़, हर इंसान, हर घटना से प्रभावित हो जाता हूँ? मुझे पता है मेरी कमजोरी पर फिर भी कुछ कर नहीं पा रहा। मै डरता हूँ, खुद से लड़ता हूँ। फिर अगली सुबह खुद से बातें करता हूँ। फिर किसी बात से डर जाता हूँ,आखिर में ना चाहते हुये भी खुद से लड़ ही जाता हूँ। किसी रोज निखर जाता हूँ, फिर उसकी अगली सुबह बिखर जाता हूँ।

राजनीति तमकुही राज की।

चुनाव खत्म हुआ, मुद्दे भी खत्म हो गये और अब परिणाम का इंतज़ार है। सभी प्रत्याशियों ने जमकर मेहनत की, बस अब उनकी ख़्वाहिश होगी परिणाम अच्छा आ जाये। जैसे विद्यालय की परीक्षा के वक़्त होता है, परीक्षा के पहले खूब तैयारी की जाती है, परीक्षा भी होती है, फिर परिणाम का इंतज़ार होता है। 11 मार्च के बाद परिणाम जो भी आये, कोई भी प्रत्याशी विजयी हो, चिंतामुक्त तो सभी प्रत्याशी हो जायेंगे। जो जीतता है वो भी और जो नहीं जीत पता है वो भी दोनों की सोच में समानतायें होती है, "चलो भईया बड़ी मेहनत हो गयी अब परिणाम भी आ गया अब 3 वर्ष आराम किया जायेगा, उसके बाद देखा जायेगा, कोई योजना बनाई जायेगी आगे क्या करना है"। सोच में समानतायें बेशक़ मिलेंगी आपको। अब बात तमकुही राज की, और मै तमकुही राज की बात क्यों कर रहा हूँ जबकि अधिकतर जगहों की यही कहानी है, क्यूंकि मै यहाँ से वाक़िफ़ हूँ। यहाँ की राजनीति में विकास का मुद्दा सबसे अंत में आता है। यहाँ के मतदाता भी बहुत हद तक प्रत्याशियों की मदद् कर देतें हैं विकास के मुद्दे का त्याग करके। यहाँ एक सड़क है जो राष्ट्रीय राजमार्ग-28 से जुड़ी हुयी है, तमकुही राज

मेरी एकतरफा मोहब्बत समुन्दर के साथ।

कल तक इन समुन्दर की लहरों की कहानियों से कितना कुछ सीखा करते थे, आज वो समुन्दर ही मेरे सामने है, सुना है ये समुन्दर भी कुछ कहता है। चलो मुद्दतों बाद मुलाक़ात हुयी है, आज थोड़ी गुफ़्तगू हो जाये। ऐ समुन्दर आज मुझे पता चला तू कितना हसीन है। तुझसे कोई मोहब्बत करने की ख़ता कैसे न करे। बेशक़ तुझसे कितनों ने मोहब्बत की होगी, लेकिन मेरी मोहब्बत में कुछ तो ख़ास होगा, मेरी नज़र में ये सबसे हसीन मोहब्बत है कोई माने या ना माने। #mylovewithocean

देश पूछ रहा है आख़िर ये क्या हो रहा है।

फिर छिड़ चुकी है बहस देशहित की, पता नहीं बहस का प्रवाह किधर जा रहा है, लेकिन देश पूछ रहा है, आखिर ये हो क्या रहा है? जिस देश की पहचान ही एकता है, उस देश के लिये ही बिखराव दिख रहा है। ये देश पूछ रहा है, आखिर ये क्या हो रहा है? क्या भगत सिंह, चंद्रशेखर और गांधीजी ने  सपना यही देखा होगा? इस देश में फिर देशप्रेम के जज्बातों में ठहराव दिख रहा है, आज सच में एक बार फिर देश पूछ रहा है। आखिर ये हो क्या रहा है। हमें नहीं पता कौन क्या कहता है, लेकिन हमारा दिल बचपन से ही सिर्फ जय हिन्द ही कह रहा है, ये देश आज फिर क्यों पूछ रहा है, आखिर ये क्या हो रहा है? क्या कोई सुन रहा है, #Divyamanyati रो रहा है, क्या आपको भी कुछ हो रहा है।

सही, ग़लत और हम।

आज वक़्त ऐसा आ गया है जब हमें कुछ बातें समझने की ज़रूरत है, वो बातें हमें ख़ुद ही समझनी होंगी। क्यूंकि आजकल आप किसे सही मानोगे? आज के अतिवादी युग में आपका अंतर्मन ही आपका सर्वश्रेष्ठ साथी और सलाहकार है। आपको ख़ुद ही सही और गलत का फर्क समझना पड़ेगा। और मुझे इस बात का पूरा भरोसा है आप चाहें तो ये मुश्किल नहीं क्योंकि ईश्वर ने हमें परखने और निर्णय लेने की शक्ति प्रदान की है, तो हम क्यों दूसरों पर निर्भर रहें। आज अगर आप ख़ुद को ख़ुद के ख्यालों से नहीं परखेंगे तो फिर बहुत कठिनाइयाँ आ सकती हैं। आजकल अतिवाद का दौर चला हुआ है सही और गलत के बीच भ्रांतियां फैलायी जा रही है, लेकिन हमें पता है हमें किस तरफ जाना है और ये तभी संभव है जब आप सही और गलत में फ़र्क करना सीख पाये। अगर आपको ग़लत राह चुननी है तो फिर आपको सही का ज्ञान होना आवश्यक नहीं, लेकिन अगर आपको सही राह चुननी है तो आपको सही और ग़लत दोनों का ज्ञान होना आवश्यक है। आजकल के दौर में राजनीतिक मुद्दे अत्यधिक हावी हैं, सामाजिक मुद्दे कहीं पीछे छुपते जा रहे हैं। हमें सामाजिक मुद्दों को राजनीतिक मुद्दों से अलग करके मुख्यधारा में लाना होगा। समाज

मेरी उदासी-(एक प्रेरणा)

मै इतना बेईमान कैसे हो सकता हूँ, मैने अपनी उदासी से वादा किया था कि मै उसे खुद से दूर जाने नहीं दूँगा, थोड़ा ही सही उसे भी वक़्त दूँगा। क्योंकि जब ख़ुशी मेरे पास ना थी, तब ये उदासी ही तो थी जिसने मुझे बहुत कुछ सिखाया, जिन्दगी में आगे बढ़ने का रास्ता मुझे दिखाया। फिर मै अपनी उदासी से दूर जाने की सोच भी कैसे सकता हूँ। मेरी उदासी से मैंने एक बात सीखी कि जैसे हम ख़ुशी का आनंद लेते हैं, ठीक वैसे ही हमें अपनी उदासी का भी आनंद लेना चाहिये। और मै अब अपनी उदासी का आनंद लेता हूँ। क्यूँकि कभी कभी ख़ुशी इतरा कर पूछती है कि तू हर वक़्त मेरे साथ क्यों रहता है, तब ख़ुशी को ये एहसास दिलाना जरुरी होता है इस दुनिया में तेरे सिवा भी कोई है जो जीने की राह दिखाता है और जब आप उदासी के साथ आनंद से कुछ पल बिताते हो तो ख़ुशी खुद-ब-खुद आपके आस पास मँडराने लगती है। और उदासी की यही खासियत होती है कि वो आपको ख़ुशी के पास जाने से कभी नहीं रोकती। उदासी कभी ये नहीं कहती तुम अपने हौंसले को तोड़ दो, अगर तुमने अपनी उदासी को ठीक से समझा तो वो ये कहती है, मै तो इसीलिए तेरे पास आयी हूँ कि मै तेरे हौसले को और मजबूत कर सकूँ।

दो शब्द मेरे दोस्तों के नाम।

लिख सकता तो पूरी किताब लिख देता, अभी तो शब्दों से ही काम चला लो मेरे यारों। फिर भी कुछ बात है हमारी यारी में, तभी तो कभी जाती ही नही यारों की ख़ुमारी। दो पल भी मिलते हैं तो ख़ुशी से काट लेते हैं, एक बिस्कुट को भी चार हिस्से में बाट लेते हैं। #dedicated #for #all #true #friends                  -Divyaman yati

अमृतधारा

जिसे ज़हर विरासत में मिली, जिसने जहर की खेती की, जिसने ज़हर का कारोबार पूरी शिद्दत से की, उस शख्स से अमृत के एक बूँद की उम्मीद थोड़ी बेईमानी सी लगती है। आपको ये पता होगा जब अमृत की धारा बहती है तब ज़हर बस इंतज़ार में रहता है, उसे कब मौका मिले अमृत में घुल जाने का। पर ज़हर को अमृत की ख़ूबी का अंदाजा नहीं अमृत की एक बूँद ज़हर के असर को ख़त्म कर सकती है। "तुम ज़हर की कितनी भी खेती कर लो, अमृत रूपी बारिश जब होगी तुम्हारे सारे ज़हर को अमृत में मिल के नष्ट हो जाना है।" #अमृतधारा #beingrealhuman

मेरा वक़्त।

ये वो वक़्त है जब मैंने एक छोटी सी पहल की है, खुद को समझने की शायद इस उम्मीद के साथ की मै ये गुत्थी सुलझाने मे सफल हो जाऊ, मै सोचता क्या हूँ ये समझ पाऊ। मै रुका हुआ क्यूँ हूँ जबकि वक़्त इतनी तेज़ी से आगे निकल रहा है। उम्मीद तो यही है कि मेरा वक़्त आने वाला हो। क्योंकि उम्मीद ही तो है जो इस ज़िन्दगी को जीने का साहस देता है। उम्मीद बनाये रखो।
#Shameonbengaluruincident.. मै कई दिनों से सोच रहा था, अब कुछ कहुँ, कहुँ या न कहुँ। क्या मेरे कुछ कहने से कुछ होने वाला है? फिर सोचा चुप रह के तमाशा देखने से भी तो कुछ होने वाला नहीं है सिवाय आत्मग्लानि के। बात नए साल की पहली रात की है मैंने ज्यादा कुछ पड़ताल नहीं किया, क्योंकी बात तो वही होनी थी। सबने कुछ न कुछ कहा जैसा की हर बार होता है, मै भी बोल ही रहा हूँ हर बार की तरह। महिला सशक्तिकरण की बातें तो खूब होती हैं, किसी से डिबेट करा लो 3-3 घंटे कर लेंगें, निष्कर्ष वही होता है क्योंकि आज वक़्त की नज़ाकत है थोड़ी परमार्थ की बात कर लेते हैं, कल तो फिर से वही कहानी शुरू होनी ही है। #निर्भया को तो भूल ही गये, कितनी मोमबत्तियां जलायी थी इस देश के लोगों ने, शायद वक़्त की तेज़ हवाओं ने सब बुझा दिया। पता नहीं मेरी बातें किसी को समझ आ रही होंगी या नहीं अगर आ रही होंगी तो आपका शुक्रिया। जो भी #बेंगलुरु में हुआ, वो हर दिन होता है इस देश में। क्या हम जागते हैं? नया साल नया संकल्प का नारा लिये नए साल में आते हैं, अरे भाई कौन सा नारा ले कर आये हो। क्यों समाज में जहर घोल रहे हो, क्यों देश की इ

मेरे बच्चे हो तुम।

कौन हो तुम? बेटे हो। कौन हो तुम? भाई हो। जो भी हो तुम सच्चे हो, मेरे लिये तुम बच्चे हो। सूरज सा हो प्रताप तुम्हारा, तुमसे एक दिन हो जगत उजियारा। राहों में कभी गिर जाओगे, मुझे करीब हर वक़्त पाओगे। इस जीवन में सम्मान सा हो तुम, मेरे लिये मेरा अभिमान सा हो तुम। बेशक़ अभी तुम कच्चे हो, जैसे भी हो तुम सच्चे हो, आखिर मेरे तुम बच्चे हो।           @दिव्यमान यती@

नया साल भोजपुरी अंदाज़ में।

अंधियारी रतिया में का खूब महफ़िल सजल रहे, दिव्यमान दीवाना भंडारी, आयुश मस्ताना बनल रहे। अतुल कुमार के जलवा रहे, अमित के प्रताप दिखल रहे। विशाल पौडेल के साथ में, विशाल भंडारा सजल रहे। फ़ीरोज़ खान, अश्विन, अमन के भरपूर सहयोग मिलल रहे। नया साल के एहसे बेहतर शुरुवात कबो न मिलल रहे।