◆बंगाल हिंसा पर समाज के बुद्धिजीवियों का दोहरापन◆
मुझे अभी तक बंगाल में हुयी हिंसा की वज़ह और वहां के हालात का ठीक ढंग से जानकारी नहीं मिल पा रही।
ये समाज का दोहरापन क्यों है इस समाज में।
ना कोई राजनेता और ना ही कोई बुद्धिजीवी इस हिंसा पर कुछ बोल रहा है।
हिंसा तो हिंसा है वो कही भी हो और किसी वज़ह से हो उसकी निंदा इस समाज के हर हिस्से में होनी चाहिये। कुछ बुद्धिजीवियों का यही दोहरा रवैया समाज़ के हालात को चिंताजनक बना रहा है।
मुझे याद आता है इसके पहले भी बंगाल में हिंसा हुई थी लेकिन मीडिया वर्ग में भी उस हिंसा पर बहुत सीमित चर्चा होती थी।
बात यही आकर थोड़ी ठहर जाती है। जितना प्यारा जुनैद है उतना ही प्यारा घोष भी है।
पर कुछ संकुचित सोच वाले अपने पीछे के उपनाम पर ही लोगों का अवलोकन करते हैं।
दिल में जो नफ़रत की मैल बैठ गयी है उसे पवित्र जल से धो दो।
कृपया एक बार सोचें नफरतों से किसका भला हुआ है।
मुझे अभी तक बंगाल में हुयी हिंसा की वज़ह और वहां के हालात का ठीक ढंग से जानकारी नहीं मिल पा रही।
ये समाज का दोहरापन क्यों है इस समाज में।
ना कोई राजनेता और ना ही कोई बुद्धिजीवी इस हिंसा पर कुछ बोल रहा है।
हिंसा तो हिंसा है वो कही भी हो और किसी वज़ह से हो उसकी निंदा इस समाज के हर हिस्से में होनी चाहिये। कुछ बुद्धिजीवियों का यही दोहरा रवैया समाज़ के हालात को चिंताजनक बना रहा है।
मुझे याद आता है इसके पहले भी बंगाल में हिंसा हुई थी लेकिन मीडिया वर्ग में भी उस हिंसा पर बहुत सीमित चर्चा होती थी।
बात यही आकर थोड़ी ठहर जाती है। जितना प्यारा जुनैद है उतना ही प्यारा घोष भी है।
पर कुछ संकुचित सोच वाले अपने पीछे के उपनाम पर ही लोगों का अवलोकन करते हैं।
दिल में जो नफ़रत की मैल बैठ गयी है उसे पवित्र जल से धो दो।
कृपया एक बार सोचें नफरतों से किसका भला हुआ है।
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