मोदी सरकार के 3 साल-
इस साल 16 मई को मोदी सरकार के 3 साल पुरे होने वाले हैं, हर साल की तरह इस साल भी मोदी सरकार के समस्त मंत्री अपने-अपने काम का विवरण ले कर लोगों के बीच आ रहे हैं और 3 साल का जश्न मना रहे हैं।
मोदी सरकार के 3 साल पुरे होने पर जनता भी मोदी सरकार के काम का हिसाब किताब ज़रूर करेगी और करे भी क्यों ना, जनता का अधिकार है कि वो अपने सरकार के कामकाज का हिसाब ले। मोदी सरकार निःसंदेह पिछले 3 सालों में कुछ आश्चर्यजनक फैसलों और कामों से लोगो के बीच अपनी लोकप्रियता को काफी हद तक कायम रखा है, इनमें से नोटेबन्दी और सर्जिकल स्ट्राईक ताज़ा उदाहरण हैं।
लेकिन मोदी सरकार के लिए राह अभी आसान नहीं, अभी भी एक बड़ा वर्ग उनसे बहुत सी उम्मीदें लगाये बैठा है, उनमे किसान प्रमुख हैं जिन्हें मोदी सरकार भरोसा देती भी रहती है।
मोदी सरकार की बहुत से फैसले और नीतियां सराहनीय हैं,सरकार पर पिछले 3 साल में एक भी भ्रष्टाचार के आरोप न लगना उनकी बड़ी उपलब्धियों में से एक है।
मोदी जी की विदेश यात्राओं की चर्चा सरकार शुरुवाती दिनों में खूब रही विपक्ष ने ख़ूब चुटकियां ली लेकिन आज भारत की विश्व पटल पर एक नयी पहचान मिलने के पीछे बहुत हद तक मोदी की विदेश यात्रा का ही योगदान रहा है।
उनकी प्रखर और प्रभावी भाषण-शैली, भारतीय मूल के लोगों को भारत देश से जोड़ने की शैली ने उनकी लोकप्रियता को और बढ़ाया ही है।
लेकिन एक तरफ नोटबन्दी के फैसले को सरकार द्वारा नक्सलवाद और आतंकवाद पर लगाम लगाने वाला फैसला कहा जाना, और इधर सुकमा में इतने बड़े नक्सली हमलें और कश्मीर में फिर पत्थरबाजों का इकठ्ठा होना सरकार के दावे पर प्रश्नचिन्ह लगा रहा है।
कश्मीर में बढ़ते तनाव, पाकिस्तान द्वारा भारतीय सैनिकों की अमानवीय तरीके से हत्या, किसानों की आत्महत्या, गोरक्षा के नाम पर गुंडई, युवाओं को रोजगार रूपी समस्यायें मोदी सरकार के लिए आने वाले समय में चुनौती ज़रूर होंगे।
लेकिन अब मोदी सरकार 2019 की तरफ देख रही है और विपक्ष के भी एकजुट होने की खबरें मीडिया के गलियारों में खूब छायी हुई हैं।
मोदी जी को इस बात का अंदाज़ा भी है कि जनता का यही विश्वास ही उन्हें 2019 में फिर से सत्ता में ला पायेगा, जिसके लिए वो पूरी कोशिश करते रहेंगे। ताज़ा चुनावों के जनादेश विपक्ष को नयी और प्रभावी रणनीति बनाने पर मज़बूर कर रहे हैं।
लेकिन हाल फिलहाल में मोदी की लोकप्रियता का उनके पास कोई प्रभावी विकल्प नज़र नहीं आ रहा है।
-दिव्यमान यती
इस साल 16 मई को मोदी सरकार के 3 साल पुरे होने वाले हैं, हर साल की तरह इस साल भी मोदी सरकार के समस्त मंत्री अपने-अपने काम का विवरण ले कर लोगों के बीच आ रहे हैं और 3 साल का जश्न मना रहे हैं।
मोदी सरकार के 3 साल पुरे होने पर जनता भी मोदी सरकार के काम का हिसाब किताब ज़रूर करेगी और करे भी क्यों ना, जनता का अधिकार है कि वो अपने सरकार के कामकाज का हिसाब ले। मोदी सरकार निःसंदेह पिछले 3 सालों में कुछ आश्चर्यजनक फैसलों और कामों से लोगो के बीच अपनी लोकप्रियता को काफी हद तक कायम रखा है, इनमें से नोटेबन्दी और सर्जिकल स्ट्राईक ताज़ा उदाहरण हैं।
लेकिन मोदी सरकार के लिए राह अभी आसान नहीं, अभी भी एक बड़ा वर्ग उनसे बहुत सी उम्मीदें लगाये बैठा है, उनमे किसान प्रमुख हैं जिन्हें मोदी सरकार भरोसा देती भी रहती है।
मोदी सरकार की बहुत से फैसले और नीतियां सराहनीय हैं,सरकार पर पिछले 3 साल में एक भी भ्रष्टाचार के आरोप न लगना उनकी बड़ी उपलब्धियों में से एक है।
मोदी जी की विदेश यात्राओं की चर्चा सरकार शुरुवाती दिनों में खूब रही विपक्ष ने ख़ूब चुटकियां ली लेकिन आज भारत की विश्व पटल पर एक नयी पहचान मिलने के पीछे बहुत हद तक मोदी की विदेश यात्रा का ही योगदान रहा है।
उनकी प्रखर और प्रभावी भाषण-शैली, भारतीय मूल के लोगों को भारत देश से जोड़ने की शैली ने उनकी लोकप्रियता को और बढ़ाया ही है।
लेकिन एक तरफ नोटबन्दी के फैसले को सरकार द्वारा नक्सलवाद और आतंकवाद पर लगाम लगाने वाला फैसला कहा जाना, और इधर सुकमा में इतने बड़े नक्सली हमलें और कश्मीर में फिर पत्थरबाजों का इकठ्ठा होना सरकार के दावे पर प्रश्नचिन्ह लगा रहा है।
कश्मीर में बढ़ते तनाव, पाकिस्तान द्वारा भारतीय सैनिकों की अमानवीय तरीके से हत्या, किसानों की आत्महत्या, गोरक्षा के नाम पर गुंडई, युवाओं को रोजगार रूपी समस्यायें मोदी सरकार के लिए आने वाले समय में चुनौती ज़रूर होंगे।
लेकिन अब मोदी सरकार 2019 की तरफ देख रही है और विपक्ष के भी एकजुट होने की खबरें मीडिया के गलियारों में खूब छायी हुई हैं।
मोदी जी को इस बात का अंदाज़ा भी है कि जनता का यही विश्वास ही उन्हें 2019 में फिर से सत्ता में ला पायेगा, जिसके लिए वो पूरी कोशिश करते रहेंगे। ताज़ा चुनावों के जनादेश विपक्ष को नयी और प्रभावी रणनीति बनाने पर मज़बूर कर रहे हैं।
लेकिन हाल फिलहाल में मोदी की लोकप्रियता का उनके पास कोई प्रभावी विकल्प नज़र नहीं आ रहा है।
-दिव्यमान यती
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