उत्तर प्रदेश के कुशीनगर जिले में राष्ट्रीय राजमार्ग-28 के समीप स्थित है तमकुहीराज (Tamkuhi Raj)। तमकुहीराज का अपना ही एक गौरवपूर्ण इतिहास है जिसे इतिहासकारों ने उतनी तवज्जों नहीं दी सिवाय कुछ स्थानीय इतिहासकारों के। आज भी तमकुहीराज के गौरवशाली इतिहास की गाथायें यहाँ के बुजुर्गों से सुनने को मिलती है। तमकुहीराज में एक खूबसूरत राज्य होने से पहले यहाँ घना जंगल हुआ करता था जिसे वीर राजा "फतेह शाही" ने बसाया था। राजा फतेह शाही (Raja Fateh Sahi) को 1767 में अंग्रेजों की "कंपनी सरकार" ने "कर" ना देने का विरोध करने पर विद्रोही घोषित कर दिया। राजा साहब को जनता का भरपूर समर्थन प्राप्त था जिसके परिणामस्वरूप उन्होंने तमकुहीराज में राज्य की स्थापना की तथा इसका विस्तार भी किया। 23 वर्षों तक बग़ावत का झंडा बुलंद किये लड़ते रहने के बाद 1790 में फतेह शाही ने अपने पुत्र को तमकुही की गद्दी पर बिठाकर महाराष्ट्र सन्यास पर चले गये। 1836 में फतेह शाही की मृत्यु के बाद भी अंग्रेज़ो में उनका आतंक कम न हुआ।
राजा फतेह शाही के बाद भी कई राजा हुए तमकुही में पर उनके बाद जिन्होंने सबसे ज्यादा ख्याति प्राप्त की तो वो थे राजा इंद्रजीत प्रताप शाही। जिन्होंने राज्य की शिक्षा, चिकित्सा और प्रशासन को और बेहतर किया। भारत सरकार द्वारा निःशुल्क एवं अनिवार्य बाल शिक्षा अधिकार अधिनियम 2009 द्वारा 6-11 आयुवर्ग के बच्चों की प्राथमिक शिक्षा का मूलाधिकार का दर्ज़ा दिया गया लेकिन तमकुही राज में राजा ने 1925 में ही निःशुल्क जबरिया शिक्षा ( 5 वर्ष से ऊपर के बच्चों को अनिवार्य शिक्षा) की शुरुआत कर दी थी। उन्होंने अपने राज्य में विद्यालयों और मदरसों को खुलवाकर शिक्षा के स्तर को बढ़ाया।
उन्होंने राजा फतेह शाही के नाम पर "फतेह मेमोरियल इंटर कॉलेज" भी खुलवाया जहाँ आज भी उच्चकोटि की शिक्षा प्रदान की जाती है। राजा इंद्रजीत प्रताप शाही इस राज्य के अंतिम राजा हुये, राजा की अकस्मात् मृत्यु और आज़ादी के बाद लोकतंत्र की स्थापना भी इस राज्य के पतन के प्रमुख कारणों में से एक है। कुछ राजनीतिक कारणों की वज़ह से इस राज्य के इतिहास को सीमित कर दिया गया। फिर 1980 के बाद तमकुही के इतिहास को प्रकाशमयी करने की कोशिश की गयी। आज भी सारे प्रमाण स्पष्ट दिखते हैं यहाँ पुराने साम्राज्य के।
तमकुही राज में दशहरे पर भव्य पशु मेला का आयोजन किया जाता था जो कि पुरे एक माह तक चलता था।
तमकुही राज उत्तर प्रदेश-बिहार बॉर्डर के समीप "नारायणी नदी" के किनारे बसा हुआ आज एक विधानसभा क्षेत्र है। तमकुही राज में प्रमुख रूप से व्यापार और खेती ही लोगों के जीवनयापन का स्रोत है। गन्ने, गेहूं, चावल, मक्का, सब्जियां, केला और दलहन इत्यादि की खेती यहाँ की प्रमुख खेती है।
विकास में आज ज़रूर तमकुही राज पिछड़ा हुआ है लेकिन आज भी वो "मान" यहाँ की मिट्टी में विद्यमान है जो राजा "फतेह शाही" के समय था। अक्षयवर दीक्षित द्वारा सम्पादित पुस्तक "भारतीय स्वातंत्र्य संग्राम का प्रथम वीर नायक" में तमकुही के राजा की वीर गाथाओं का जिक्र है।
राजा फतेह शाही के बाद भी कई राजा हुए तमकुही में पर उनके बाद जिन्होंने सबसे ज्यादा ख्याति प्राप्त की तो वो थे राजा इंद्रजीत प्रताप शाही। जिन्होंने राज्य की शिक्षा, चिकित्सा और प्रशासन को और बेहतर किया। भारत सरकार द्वारा निःशुल्क एवं अनिवार्य बाल शिक्षा अधिकार अधिनियम 2009 द्वारा 6-11 आयुवर्ग के बच्चों की प्राथमिक शिक्षा का मूलाधिकार का दर्ज़ा दिया गया लेकिन तमकुही राज में राजा ने 1925 में ही निःशुल्क जबरिया शिक्षा ( 5 वर्ष से ऊपर के बच्चों को अनिवार्य शिक्षा) की शुरुआत कर दी थी। उन्होंने अपने राज्य में विद्यालयों और मदरसों को खुलवाकर शिक्षा के स्तर को बढ़ाया।
उन्होंने राजा फतेह शाही के नाम पर "फतेह मेमोरियल इंटर कॉलेज" भी खुलवाया जहाँ आज भी उच्चकोटि की शिक्षा प्रदान की जाती है। राजा इंद्रजीत प्रताप शाही इस राज्य के अंतिम राजा हुये, राजा की अकस्मात् मृत्यु और आज़ादी के बाद लोकतंत्र की स्थापना भी इस राज्य के पतन के प्रमुख कारणों में से एक है। कुछ राजनीतिक कारणों की वज़ह से इस राज्य के इतिहास को सीमित कर दिया गया। फिर 1980 के बाद तमकुही के इतिहास को प्रकाशमयी करने की कोशिश की गयी। आज भी सारे प्रमाण स्पष्ट दिखते हैं यहाँ पुराने साम्राज्य के।
तमकुही राज में दशहरे पर भव्य पशु मेला का आयोजन किया जाता था जो कि पुरे एक माह तक चलता था।
तमकुही राज उत्तर प्रदेश-बिहार बॉर्डर के समीप "नारायणी नदी" के किनारे बसा हुआ आज एक विधानसभा क्षेत्र है। तमकुही राज में प्रमुख रूप से व्यापार और खेती ही लोगों के जीवनयापन का स्रोत है। गन्ने, गेहूं, चावल, मक्का, सब्जियां, केला और दलहन इत्यादि की खेती यहाँ की प्रमुख खेती है।
विकास में आज ज़रूर तमकुही राज पिछड़ा हुआ है लेकिन आज भी वो "मान" यहाँ की मिट्टी में विद्यमान है जो राजा "फतेह शाही" के समय था। अक्षयवर दीक्षित द्वारा सम्पादित पुस्तक "भारतीय स्वातंत्र्य संग्राम का प्रथम वीर नायक" में तमकुही के राजा की वीर गाथाओं का जिक्र है।
मै खुद तमकुही राज के समीप गौरी नरोतम का निवासी हुं । लेकिन तमकुही का ईतिहास पढकर अपने आपको गौरवशाली महसुस कर रहा हुं।प्रदीप यादव गौरी नरोतम 94590-95148
ReplyDeleteजितना गौरवान्वित खुद को तमकुही का इतिहास पढ़ के होती है उतनी ही लज्जा आती है आज के तमकुही स्टेट के तमकुही के विकाश में उनके योगदान को लेकर
ReplyDeleteलोगों में जागरूकता की कमी है।
DeleteAll Evidences and Architectural Status was abolished by the Landlord because of their greed.
ReplyDeleteNow there is no any important monument and Architectural Status.
बहुत ही सुंदर
ReplyDeleteधन्यवाद😊
Deleteइस इतिहास की कहानी को 2011 मे फतेह मेमोरियल इण्टर काॅलेज मे एक किताब मे प्रकाशित कर बच्चो मे वितरित किया गया पढ़ कर बहुत अच्छा लगा लेकिन दुसरे ही साल इसे बंद भी कर दिया गया ।
ReplyDeleteआज कई सालो बाद इसे दुबारा पढ़ कर बहुत अच्छा लगा आपको बहुत बहुत धन्यवाद इस कहानी को दुबारा लोगो तक पहुचाने के लिए
तमकुहीराज का ये राज आज अपने उजागर कर दिया,
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा जान के।
बहुत अच्छा लगा पढ़ के
ReplyDeleteMst hai bhai sahab
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा.....❤
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा.....❤
ReplyDeletebhut khub yati ji
ReplyDeleteDhany dhany tamukahi ki mati aur dhanya Raj parivar Jo Dan veerata aure desh ke prati utkat prem ke liye bidit hai Mai wanha ki mati evam Raj parivar ko Naman karata hu
ReplyDeleteश्रीमान अक्षयवर जी को कोटिश :नमन जो उन्होंने क्षेत्र के विस्मृत योगदान को हमारी स्मृति में फिर से संजो दिया, अब आगे ले जाने की जिम्मेदारी हम सबकी है... मैं कसया
ReplyDelete(मथौली) का मूलत: रहने वाला हूँ |मैं दीक्षित जी की पुस्तक को भी पढ़ने की इच्छा रखता हूं, यह कहां से मिल सकती है यदि पता दे सकें तो और भी अच्छा होगा.... अग्रिम आभार, डॉ सत्य नारायण मिश्र, 9415481318
मुझे आज मालूम हुआ तमकुही राज के हिस्ट्री का और मुझे गर्व है इस मिट्टी में पैदा हुआ और मुझे यहाँ के राजा पर गर्व है
ReplyDeleteआपके इस लेख के वजह से मैं अपने जन्मभूमि की महानता को जान पाया। मैं आपका दिल से आभार व्यक्त करता हूं।
ReplyDeleteआपके इस लेख के वजह से मैं अपने जन्मभूमि की महानता को जान पाया। मैं आपका दिल से आभार व्यक्त करता हूं।
ReplyDeleteMera Gaon tamkuhi Raj se 3 kilometre dur hai tamkuhi Ke Raja Patte Sahi ke shasan kal mein Hamare bhi Parivar Ke Log servent Hua Karte रोशनी टेम्पू ट्रास्पोर्ट सर्बिस् N H 28 तहशील गेट तमकुही राज कुशीनगर उत्तर पर्देश mo 9198960487/8423858209
ReplyDeleteहमारे दादा जी व हमारी जाती के लोगो ने राजा इंद्रजीत प्रताप बहादुर शाही जी की नौकरी भी की है और वे बिश्वास पात्र लोगो मे से एक थे। आज भी राज परिवार का विश्वास हम लोगो पर बना हुआ है। राजा साब की कहानी हमने अपने बुजुर्गों से खूब सुनी है और आज भी सुनते है क्योंकि मेरी फूफू आज भी जिंदा है। पशु मेला तो हमने भी देखा है। काफी महशूर था जो एक महीने तक चलता था।
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