ना ये रात गुनहगार है, ना ही वो रात थी,
ना ही हम गुनहगार हैं, ना ही तुम थी,
गुनहगार तो वो सोच थी, जो उस रात उन दरिंदों की थी।
वो आज या कल मर ही जायेंगे ज़ाहिलों की मौत,
पर उस सोच का क्या, क्या वो मर पायेगी?
मार सको तो उस सोच को मार देना, शायद अपनी बहन, माँ, और बेटियां बच जायेंगी।
ना ही हम गुनहगार हैं, ना ही तुम थी,
गुनहगार तो वो सोच थी, जो उस रात उन दरिंदों की थी।
वो आज या कल मर ही जायेंगे ज़ाहिलों की मौत,
पर उस सोच का क्या, क्या वो मर पायेगी?
मार सको तो उस सोच को मार देना, शायद अपनी बहन, माँ, और बेटियां बच जायेंगी।
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