#Shameonbengaluruincident..
मै कई दिनों से सोच रहा था, अब कुछ कहुँ, कहुँ या न कहुँ। क्या मेरे कुछ कहने से कुछ होने वाला है?
फिर सोचा चुप रह के तमाशा देखने से भी तो कुछ होने वाला नहीं है सिवाय आत्मग्लानि के।
बात नए साल की पहली रात की है मैंने ज्यादा कुछ पड़ताल नहीं किया, क्योंकी बात तो वही होनी थी।
सबने कुछ न कुछ कहा जैसा की हर बार होता है, मै भी बोल ही रहा हूँ हर बार की तरह।
महिला सशक्तिकरण की बातें तो खूब होती हैं, किसी से डिबेट करा लो 3-3 घंटे कर लेंगें, निष्कर्ष वही होता है
क्योंकि आज वक़्त की नज़ाकत है थोड़ी परमार्थ की बात कर लेते हैं, कल तो फिर से वही कहानी शुरू होनी ही है।
#निर्भया को तो भूल ही गये, कितनी मोमबत्तियां जलायी थी इस देश के लोगों ने, शायद वक़्त की तेज़ हवाओं ने सब बुझा दिया।
पता नहीं मेरी बातें किसी को समझ आ रही होंगी या नहीं अगर आ रही होंगी तो आपका शुक्रिया।
जो भी #बेंगलुरु में हुआ, वो हर दिन होता है इस देश में।
क्या हम जागते हैं?
नया साल नया संकल्प का नारा लिये नए साल में आते हैं, अरे भाई कौन सा नारा ले कर आये हो।
क्यों समाज में जहर घोल रहे हो, क्यों देश की इज्ज़त मिट्टी में मिला रहे हो।
शर्म तो आती नहीं होगी, आती तो तुम ये करते ही नहीं।
करने वालों की तो बात ही छोड़ो बहुतों ने तो देखा भी है और कुछ कर नहीं पाये और कुछ करते भी कैसे मजबूर जो थे, उनकी मज़बूरी का घाना कोहरा उन्हें घेर लिया था, उनकी मजबूरियों के किस्से कम न होंगे।
खैर बातें तो बहुत हो रही हैं देश में लेकिन हम खुद से एक बार पूछे हम कहा तक पहुँचे, हमारी सोच कहाँ तक पहुँची।
हम तो वहीं है जहाँ #निर्भया हमें छोड़ के गयी थी।
अगर आप ये सब करके खुद को मर्द समझते हो तो साहब हमें ऐसा मर्द नहीं बनना।
और हम ये क्यों कहें की उन लड़कियों की जगह आपकी बहन या माँ होती तो कैसा होता, क्योंकि वो बहन और माँ भी खुद को बदनशीब समझती होगी की उसका कोई ऐसा भाई या बेटा है, उस माँ और बहन का क्या क़सूर जो उसके बारे में हम कुछ कहे।
"शर्म भी शर्मा गया है, क्या अब भी सोचते हो की कोई बोले कुछ तो शर्म करो"।
#Bangore #incident
@दिव्यमान यती@
मै कई दिनों से सोच रहा था, अब कुछ कहुँ, कहुँ या न कहुँ। क्या मेरे कुछ कहने से कुछ होने वाला है?
फिर सोचा चुप रह के तमाशा देखने से भी तो कुछ होने वाला नहीं है सिवाय आत्मग्लानि के।
बात नए साल की पहली रात की है मैंने ज्यादा कुछ पड़ताल नहीं किया, क्योंकी बात तो वही होनी थी।
सबने कुछ न कुछ कहा जैसा की हर बार होता है, मै भी बोल ही रहा हूँ हर बार की तरह।
महिला सशक्तिकरण की बातें तो खूब होती हैं, किसी से डिबेट करा लो 3-3 घंटे कर लेंगें, निष्कर्ष वही होता है
क्योंकि आज वक़्त की नज़ाकत है थोड़ी परमार्थ की बात कर लेते हैं, कल तो फिर से वही कहानी शुरू होनी ही है।
#निर्भया को तो भूल ही गये, कितनी मोमबत्तियां जलायी थी इस देश के लोगों ने, शायद वक़्त की तेज़ हवाओं ने सब बुझा दिया।
पता नहीं मेरी बातें किसी को समझ आ रही होंगी या नहीं अगर आ रही होंगी तो आपका शुक्रिया।
जो भी #बेंगलुरु में हुआ, वो हर दिन होता है इस देश में।
क्या हम जागते हैं?
नया साल नया संकल्प का नारा लिये नए साल में आते हैं, अरे भाई कौन सा नारा ले कर आये हो।
क्यों समाज में जहर घोल रहे हो, क्यों देश की इज्ज़त मिट्टी में मिला रहे हो।
शर्म तो आती नहीं होगी, आती तो तुम ये करते ही नहीं।
करने वालों की तो बात ही छोड़ो बहुतों ने तो देखा भी है और कुछ कर नहीं पाये और कुछ करते भी कैसे मजबूर जो थे, उनकी मज़बूरी का घाना कोहरा उन्हें घेर लिया था, उनकी मजबूरियों के किस्से कम न होंगे।
खैर बातें तो बहुत हो रही हैं देश में लेकिन हम खुद से एक बार पूछे हम कहा तक पहुँचे, हमारी सोच कहाँ तक पहुँची।
हम तो वहीं है जहाँ #निर्भया हमें छोड़ के गयी थी।
अगर आप ये सब करके खुद को मर्द समझते हो तो साहब हमें ऐसा मर्द नहीं बनना।
और हम ये क्यों कहें की उन लड़कियों की जगह आपकी बहन या माँ होती तो कैसा होता, क्योंकि वो बहन और माँ भी खुद को बदनशीब समझती होगी की उसका कोई ऐसा भाई या बेटा है, उस माँ और बहन का क्या क़सूर जो उसके बारे में हम कुछ कहे।
"शर्म भी शर्मा गया है, क्या अब भी सोचते हो की कोई बोले कुछ तो शर्म करो"।
#Bangore #incident
@दिव्यमान यती@
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