भारत का दिग्गज क्रिकेटर आशीष नेहरा जिन्हें उनके साथी खिलाड़ी नेहरा जी के नाम से बुलाते थे, उनका 1 नवंबर 2017 को अंतराष्ट्रीय क्रिकेट का सफ़र ख़त्म हो गया। 1999 में अंतराष्ट्रीय क्रिकेट की शुरुआत करने वाले नेहरा जी का सफ़र बहुत मुश्किलों भरा रहा, इन 18 साल के लंबे कैरियर में उनकी लगभग 15 सर्जरी हुयी। वो कभी भी टीम से ख़राब फॉर्म के कारण बाहर नहीं हुए बल्कि सिर्फ इंजरी की वजह से बाहर हुए।
1999 में मोहम्मद अजहरुद्दीन की कप्तानी में अपना टेस्ट कैरियर शुरू किया था नेहरा जी ने लेकिन फिर भी सिर्फ 17 टेस्ट ही खेल पाये जिनमें 44 विकेट उनके नाम रहे। वो कई कप्तानों की कप्तानी में खेले, वो सौरव गांगुली की कप्तानी में 2003 विश्वकप भी खेले और भारत को फाइनल में पहुँचाने में अहम योगदान भी निभाया। वो भारतीय टीम से अंदर-बाहर होते रहे लेकिन हर बार उन्होंने टीम में वापसी की। नेहरा जी ने भारत के लिए 120 वनडे मैच खेले और 157 विकेट लिए हैं।
2011 के विश्वकप विजेता टीम के भी हिस्सा रहे नेहरा जी ने इसी टूर्नामेंट में अपना आखिरी एकदिवसीय मैच खेला वो भी पाकिस्तान के विरुद्ध, उस मैच में फिर उनको इंजरी हो गयी जिस वजह से वो फाइनल मैच नहीं खेल पाये। भारत ये टूर्नामेंट जीत विश्वविजेता बना। इस इंजरी के बाद सभी ने सोचा अब आशीष नेहरा का कैरियर ख़त्म हो गया लेकिन ये तो नेहरा जी हैं जो हर बार अपने चोटों से लड़ते हुए वापसी करते हैं और जिस उम्र में हर क्रिकेटर सन्यास की सोचता है इस उम्र में नेहरा जी वापसी की तैयारियां कर रहे थे और आखिरकार 2016 में नेहरा जी ने टीम इंडिया में वापसी कर ही ली और इस बार टी20 जैसे तेज़ प्रारूप में और 2016 की टी20 विश्व कप टीम का हिस्सा भी बने जिसमें भारत ने सेमीफाइनल तक का सफ़र भी तय किया।
1 नवंबर 2017 को जब नेहरा जी अपना आखिरी अंतराष्ट्रीय मैच खेल रहे थे तब भारत के पूर्व कप्तान धौनी और कप्तान कोहली ने उन्हें एक ट्रॉफी देकर सम्मानित किया, उनके होमग्राउंड फ़िरोज़शाह कोटला स्टेडियम में दिल्ली गेट गेंदबाजी छोर का नाम नेहरा जी के नाम से रखा गया। नेहरा जी ने फिर इसी छोर से मैच का पहला फेंका और अंतिम ओवर भी उन्हीं को फेकने को मिला, सभी दर्शकों ने फ़्लैश लाइट जलाई और नेहरा-नेहरा के नाम से पूरा स्टेडियम गूंज उठा। भारत ने ये मैच 58 रनों से जीत लिया लेकिन इस जीत के बाद नेहरा जी ने पुरे स्टेडियम का चक्कर लगाया फिर उनके साथी खिलाड़ी शिखर धवन और कप्तान विराट कोहली ने उन्हें कन्धों पर उठा लिया, ये सब एक महान क्रिकेटर को विदाई सम्मान देने के लिए किया गया। इस महान क्षण में उनका पूरा परिवार स्टेडियम में मौजूद था।
आशीष नेहरा आंकड़ों से इतर एक जुझारू क्रिकेटर रूप में जाने जायेंगे क्योंकि उनका लड़ने का जज्बा नए युवा क्रिकेटरों को प्रेरणा देगा। 36 की उम्र में अंतराष्ट्रीय क्रिकेट वापसी करना कोई आसान बात नहीं और वह भी तब जब उनका पूरा कैरियर चोटों से प्रभावित रहा। नेहरा जी का मुस्कुराता चेहरा हर हालात में हर किसी को याद आता रहेगा। उन्होंने जाते-जाते बता ही दिया की उन्हें लड़ने की प्रेरणा कहाँ से मिलती है, उन्होंने बताया कि वो हर परिस्थिति में खुश रहते हैं। नेहरा जी के इस सफ़र ने हमें यही सीखाया कि निराश कभी ना हो, हालात जैसे भी हों हमेशा खुद को प्रेरित करते रहें आगे बढ़ने के लिये।
नेहरा जी के क्रिकेट कैरियर का तो अंत हो गया लेकिन उम्मीद है वो आने वाले वक़्त में क्रिकेट को बहुत कुछ देते रहेंगे और युवा क्रिकेटरों को प्रेरित करते रहेंगे।
- दिव्यमान यती
1999 में मोहम्मद अजहरुद्दीन की कप्तानी में अपना टेस्ट कैरियर शुरू किया था नेहरा जी ने लेकिन फिर भी सिर्फ 17 टेस्ट ही खेल पाये जिनमें 44 विकेट उनके नाम रहे। वो कई कप्तानों की कप्तानी में खेले, वो सौरव गांगुली की कप्तानी में 2003 विश्वकप भी खेले और भारत को फाइनल में पहुँचाने में अहम योगदान भी निभाया। वो भारतीय टीम से अंदर-बाहर होते रहे लेकिन हर बार उन्होंने टीम में वापसी की। नेहरा जी ने भारत के लिए 120 वनडे मैच खेले और 157 विकेट लिए हैं।
2011 के विश्वकप विजेता टीम के भी हिस्सा रहे नेहरा जी ने इसी टूर्नामेंट में अपना आखिरी एकदिवसीय मैच खेला वो भी पाकिस्तान के विरुद्ध, उस मैच में फिर उनको इंजरी हो गयी जिस वजह से वो फाइनल मैच नहीं खेल पाये। भारत ये टूर्नामेंट जीत विश्वविजेता बना। इस इंजरी के बाद सभी ने सोचा अब आशीष नेहरा का कैरियर ख़त्म हो गया लेकिन ये तो नेहरा जी हैं जो हर बार अपने चोटों से लड़ते हुए वापसी करते हैं और जिस उम्र में हर क्रिकेटर सन्यास की सोचता है इस उम्र में नेहरा जी वापसी की तैयारियां कर रहे थे और आखिरकार 2016 में नेहरा जी ने टीम इंडिया में वापसी कर ही ली और इस बार टी20 जैसे तेज़ प्रारूप में और 2016 की टी20 विश्व कप टीम का हिस्सा भी बने जिसमें भारत ने सेमीफाइनल तक का सफ़र भी तय किया।
1 नवंबर 2017 को जब नेहरा जी अपना आखिरी अंतराष्ट्रीय मैच खेल रहे थे तब भारत के पूर्व कप्तान धौनी और कप्तान कोहली ने उन्हें एक ट्रॉफी देकर सम्मानित किया, उनके होमग्राउंड फ़िरोज़शाह कोटला स्टेडियम में दिल्ली गेट गेंदबाजी छोर का नाम नेहरा जी के नाम से रखा गया। नेहरा जी ने फिर इसी छोर से मैच का पहला फेंका और अंतिम ओवर भी उन्हीं को फेकने को मिला, सभी दर्शकों ने फ़्लैश लाइट जलाई और नेहरा-नेहरा के नाम से पूरा स्टेडियम गूंज उठा। भारत ने ये मैच 58 रनों से जीत लिया लेकिन इस जीत के बाद नेहरा जी ने पुरे स्टेडियम का चक्कर लगाया फिर उनके साथी खिलाड़ी शिखर धवन और कप्तान विराट कोहली ने उन्हें कन्धों पर उठा लिया, ये सब एक महान क्रिकेटर को विदाई सम्मान देने के लिए किया गया। इस महान क्षण में उनका पूरा परिवार स्टेडियम में मौजूद था।
आशीष नेहरा आंकड़ों से इतर एक जुझारू क्रिकेटर रूप में जाने जायेंगे क्योंकि उनका लड़ने का जज्बा नए युवा क्रिकेटरों को प्रेरणा देगा। 36 की उम्र में अंतराष्ट्रीय क्रिकेट वापसी करना कोई आसान बात नहीं और वह भी तब जब उनका पूरा कैरियर चोटों से प्रभावित रहा। नेहरा जी का मुस्कुराता चेहरा हर हालात में हर किसी को याद आता रहेगा। उन्होंने जाते-जाते बता ही दिया की उन्हें लड़ने की प्रेरणा कहाँ से मिलती है, उन्होंने बताया कि वो हर परिस्थिति में खुश रहते हैं। नेहरा जी के इस सफ़र ने हमें यही सीखाया कि निराश कभी ना हो, हालात जैसे भी हों हमेशा खुद को प्रेरित करते रहें आगे बढ़ने के लिये।
नेहरा जी के क्रिकेट कैरियर का तो अंत हो गया लेकिन उम्मीद है वो आने वाले वक़्त में क्रिकेट को बहुत कुछ देते रहेंगे और युवा क्रिकेटरों को प्रेरित करते रहेंगे।
- दिव्यमान यती
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