सोच रहा हूँ तुझसे थोड़ी बातें कर लूँ।
आज एक मुद्दत बाद तुझसे मुलाक़ात जो हुयी है,
और बताओ कैसीे हो, क्या तुम भी मेरे ही जैसीे हो?
आज भी मुझे तुम्हारी आँखें पढ़नी आती हैं,
आज भी वैसे ही नजरें चुरा रही हो, जैसे उस रात चुराया था।
उस रात तुमने नजरे चुराई न होती तो मै समझ जाता तुम्हारे जाने की वज़ह क्या थी,
एक बार कहना था तुम्हें मुझसे, आखिर मैंने तुमसे मोहब्बत की थी, मै न समझता तो कौन समझता।
तुम्हे पता है उस रात के बाद की सुबह कैसी थी मेरी,
सुबह की ताज़गी का एहसास कहीं खो सी गयी मेरी,
हर सुबह मुझे डराती थी, हर सुबह बहुत ही तकलीफ भरी होती थी,
जैसा लगता था कल ही की तो रात थी जब हम मिलें थे,
वो अधूरी रात आज भी मेरे ज़ेहन मे ज़िंदा है।
तुम्हारा इस तरह मुझे छोड़ के जाना, मै तो ठीक से तुम्हे अलविदा भी न कह पाया,
मेरी मोहब्बत का ये अंजाम होगा, ऐसा मैंने कभी न सोचा था।
अब आज 30 साल बाद ऐसे मिलना एक इत्तेफ़ाक़ ही तो है।
ये रात भी उस रात जैसी हसीन है, क्योंकि तुम मेरे पास हो, और ये तब तक हसीन है जब तक तुम मेरे सामने हो।
अब उस रात को तुम्हारे जाने की वज़ह पूछ कर इस रात को क्यों ख़फ़ा करूँ।
तुम्हारा मेरे पास होना भले ही 30 साल बाद, सुकून दे रहा है मुझे।
तुम तो बिल्कुल भी नहीं बदली, आज भी वैसे ही अपनी आंसुओं को छिपा लेती हो, अपने सारे ज़ज़्बात छुपा लेती हो और कितनी खूबसूरती से दर्द में भी मुस्कुरा लेती हो।
आज तो आँखें न चुराओ, मुझे पढ़ने दो, मुझे महसूस करने दो उन गुज़रे 30 सालों का दर्द।
मुझे उम्मीद है अब डरावनी सुबह फिर वापस नहीं आयेगी,
क्योंकि आज मै तुम्हे नज़रे चुराने नहीं दूँगा,
और तुम्हें इतनी आसानी से जाने भी नहीं दूँगा।
ये आँखें आज भी चीख़-चीख़ के कह रही हैं, ये सिर्फ मुझे ही देखना चाहती हैं।
है न!
अब ये न कहना'"तुम बहुत अच्छे हो,
क्योंकि उस रात भी जाने से पहले तुमने यही बात कही थी"।
अब बस मेरी यही चाहत है इस रात की सुबह हो तो सिर्फ तुम्हारे साथ।
आज एक मुद्दत बाद तुझसे मुलाक़ात जो हुयी है,
और बताओ कैसीे हो, क्या तुम भी मेरे ही जैसीे हो?
आज भी मुझे तुम्हारी आँखें पढ़नी आती हैं,
आज भी वैसे ही नजरें चुरा रही हो, जैसे उस रात चुराया था।
उस रात तुमने नजरे चुराई न होती तो मै समझ जाता तुम्हारे जाने की वज़ह क्या थी,
एक बार कहना था तुम्हें मुझसे, आखिर मैंने तुमसे मोहब्बत की थी, मै न समझता तो कौन समझता।
तुम्हे पता है उस रात के बाद की सुबह कैसी थी मेरी,
सुबह की ताज़गी का एहसास कहीं खो सी गयी मेरी,
हर सुबह मुझे डराती थी, हर सुबह बहुत ही तकलीफ भरी होती थी,
जैसा लगता था कल ही की तो रात थी जब हम मिलें थे,
वो अधूरी रात आज भी मेरे ज़ेहन मे ज़िंदा है।
तुम्हारा इस तरह मुझे छोड़ के जाना, मै तो ठीक से तुम्हे अलविदा भी न कह पाया,
मेरी मोहब्बत का ये अंजाम होगा, ऐसा मैंने कभी न सोचा था।
अब आज 30 साल बाद ऐसे मिलना एक इत्तेफ़ाक़ ही तो है।
ये रात भी उस रात जैसी हसीन है, क्योंकि तुम मेरे पास हो, और ये तब तक हसीन है जब तक तुम मेरे सामने हो।
अब उस रात को तुम्हारे जाने की वज़ह पूछ कर इस रात को क्यों ख़फ़ा करूँ।
तुम्हारा मेरे पास होना भले ही 30 साल बाद, सुकून दे रहा है मुझे।
तुम तो बिल्कुल भी नहीं बदली, आज भी वैसे ही अपनी आंसुओं को छिपा लेती हो, अपने सारे ज़ज़्बात छुपा लेती हो और कितनी खूबसूरती से दर्द में भी मुस्कुरा लेती हो।
आज तो आँखें न चुराओ, मुझे पढ़ने दो, मुझे महसूस करने दो उन गुज़रे 30 सालों का दर्द।
मुझे उम्मीद है अब डरावनी सुबह फिर वापस नहीं आयेगी,
क्योंकि आज मै तुम्हे नज़रे चुराने नहीं दूँगा,
और तुम्हें इतनी आसानी से जाने भी नहीं दूँगा।
ये आँखें आज भी चीख़-चीख़ के कह रही हैं, ये सिर्फ मुझे ही देखना चाहती हैं।
है न!
अब ये न कहना'"तुम बहुत अच्छे हो,
क्योंकि उस रात भी जाने से पहले तुमने यही बात कही थी"।
अब बस मेरी यही चाहत है इस रात की सुबह हो तो सिर्फ तुम्हारे साथ।
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