रोहिंग्या समुदाय, ये वो समुदाय है जो पिछले सैकड़ों वर्षों से अपने अस्तित्व के लिए जूझ रहा है।
रोहिंग्या मुसलमानों को उनका देश ही नहीं अपना रहा, वहाँ रोहिंग्या मुसलमानों पर ज़ुल्म हो रहे हैं।
म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमानों और बौद्ध समुदाय का बहुत भयावह इतिहास रहा है जो अभी तक जारी है।
ये लोग अपनी जान बचाने के लिए अलग-अलग रास्तों से अपना देश छोड़ दूसरे देशों में शरण ले रहे हैं जिससे दूसरे देशों में भी हलचल का माहौल है।
इनकी एक बड़ी आबादी भारत, बांग्लादेश, भूटान जैसे देशों में आ कर रह रही है।
इतिहास जो भी रहा हो लेकिन वर्तमान में रोहिंग्या समुदाय के साथ हो रहे जुल्म ने सबको आश्चर्य में डाला हुआ है।
म्यांमार की स्टेट काउंसलर आंग सान सू की चुप्पी भी समझ के परे है क्योंकि म्यांमार में उनकी छवि मानवाधिकार के लिए लड़ने वाली नायिका की है।
रोहिंग्या मुसलमानों पर इस्लामिक देशों की ख़ामोशी भी आश्चर्यजनक है।
ऐसा पहली बार नहीं हो रहा जब किसी को अपना ही घर छोड़ना पड़ रहा है, हमारे देश भारत में ही कश्मीरी पंडितों को अपना घर छोड़ पलायन करना पड़ा था, सीरिया से भी एक बड़ी आबादी पलायन करती रही है, ऐसे बहुत से देश हैं जहाँ बड़ी तादाद में लोग आज भी पलायन कर रहे हैं
इतिहास में पलायन के ऐसे बहुत से उदाहरण पढ़ने और सुनने को मिलते रहे हैं
आज भी बहुत जगहों पर शरणार्थी अपने अस्तित्व की जंग लड़ रहे हैं।
उन्हें कुछ नहीं चाहिए,बस उन्हें अपना घर और अपनी पहचान वापस चाहिये।
हमारे देश भारत ने हज़ारों सालों से बहुत से समुदायों को शरण दी, जिसका हमारे देश को नुकसान भी उठाना पड़ा।
लेकिन हालात अब पहले से और जटिल हैं।
उग्रवाद और अतिवाद के इस दौर में देश और देश के नागरिकों की सुरक्षा सरकारों की बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी है।
आये दिनों पश्चिमी देशों में निंदनीय आतंकी हमले भी हो रहे हैं जिसमें शरणार्थी समूह के कुछ लोगों के भी नाम आ रहे हैं।
तो आज ये फैसला कर पाना कि शरणार्थियों को दूसरे देशों में बसाया जाये जबकि दूसरे देश खुद ही बहुत से आतंरिक परेशानियों का दंश झेल रहे हैं, बहुत कठिन है।
मानवता कहती हैं वो हम जैसे ही हैं,
हाँ ये बिल्कुल सच हैं, वो हम जैसे हैं, उन्हें उनकी पहचान दी जानी चाहिये
लेकिन इन्हीं शरणार्थियों में से कुछ लोगों को बहका कर उग्रवादी समूह अपनी ज़रूरतें पूरी कर रहे हैं जो कि मानवता के लिए खतरा है।
ऐसे हालात में विश्व समुदाय के बड़े और प्रभावशाली व्यक्तियों की ये नैतिक और मानवीय ज़िम्मेदारी है कि वो इस विश्व में अपनी पहचान के लिये संघर्ष कर रहे शरणार्थियों को उनकी पहचान दिलाये और उनकी घर वापसी भी कराएं बिना किसी देश और उनके नागरिकों के जीवन को खतरे में डाले।
- दिव्यमान यती
बहुत बेहतर
ReplyDeleteशानदार लेख