Dhuruvangal Pathinaaru (D-16)
मैं हॉटस्टार पर ऐसे ही रोज की तरह कोई फिल्म ढूंढ़ रहा था अचानक से मेरी नज़र 'धुरुवंगल पथिनारू यानी डी-16' फिल्म पर गई। नज़र पड़ते ही मैंने देखना शुरू नहीं किया क्योंकि मैं जब भी कोई ऐसी फिल्म देखता हूँ जिसका नाम पहली बार सुना हो तो पहले उसके बारे चेक करता हूँ कि ये फिल्म देखने लायक है या नहीं। इसपर रेस्पॉन्स अच्छा दिखा तो सोचा देख लूं। पिछले दिनों मैंने बहुत सी साउथ फिल्मों के बारे में जानकारियां जुटाई, उनके बारे में पढ़ा, साउथ की फिल्म्स को लेकर थोड़ी छानबीन भी की ये इसलिए क्योंकि साउथ फिल्मों को लेकर एक मिथ है कि साऊथ में जो टीवी पर मसाला फिल्में दिखती हैं केवल उसी तरह की फिल्में बनती हैं। लेकिन अब इस धारणा से बाहर आना चाहिए। साउथ में कुछ बेहतरीन फिल्में ऐसी हैं जो हमारी पहुंच से दूर हैं क्योंकि बाजार उन्हें स्वीकार नहीं करता। हिंदी में वहीं ज्यादातर उपलब्ध हैं जो आप आये दिनों टीवी पर देखते रहते हैं। कुछ अच्छी फिल्में भी उपलब्ध हैं जो इन रेगुलर मसाला फिल्मों से अलग हैं लेकिन अधिकतर लोगों को उनके बारे में पता ही नहीं और जब पता नहीं तो देखने का रिस्क कैसे लें, आखिर हर किसी का समय बहुत कीमती है।
खैर! अब फिल्म की बात। फिल्म मूल रुप से तमिल भाषा मे बनी है, जो 2016 में रिलीज हुई थी। मैंने हिंदी में डब किया हुआ वर्जन देखा और जैसी मुझे उम्मीद थी इस फिल्म ने उससे दो कदम आगे बढ़कर मुझे सरप्राइज किया। इसकी कहानी तो अच्छी है ही इसका स्क्रीनप्ले भी बेहतरीन है। इसकी कहानी से ज्यादा मुझे ये बात अच्छी लगी कि इस फिल्म के निर्देशक कार्तिक नरेन हर चीज़ स्वाभाविक और लॉजिक तरीके से दिखाने में बहुत हद तक कामयाब हुए हैं,अगर कुछ चीज़े छोड़ दें तो। पुलिस इन्वेस्टिगेशन भी एकदम साधारण तरीके से। स्क्रीनप्ले में कुछ चीजों का फिल्म के सार से कोई लेना-देना नहीं था फिर भी वो खास लगे क्योंकि वो इसे नैचुरल रखने में मदद करते हैं। जैसे पुलिस ऑफिसर का मोबाइल को चार्ज में लगाने के लिए कॉन्स्टेबल को देना, मोबाइल चार्ज ना होने पर किसी और सॉकेट में लगाने को बोलना, पूरे दिन कॉन्स्टेबल का फोन यूज करना, नए कॉन्स्टेबल को किसी भी इंफोर्मेटिव फोन कॉल को हल्के में लेने पर उसे इन्वेस्टिगेशन के दौरान फ़ोन पर नियम समझाना, फोन जल्दी काटने पर ये कहना कि पूरी बात सुनना जरूरी होता है, ऐसे और भी सीन हैं जो मुझे स्क्रीनप्ले में बेहद पसंद आयें हैं, ये छोटी चीज़ें बहुत प्रभावी लगीं।
ये फिल्म एक सस्पेंस थ्रिलर है,जो एक रात को हुई एक घटना के ऊपर है। जिसमें दो की मौत हो जाती है तथा एक लड़की लापता हो जाती है। शुरू में ये फिल्म धीरे-धीरे आगे बढ़ती है और आपकी जिज्ञासा को बढ़ाती है लेकिन क्लाइमेक्स आते-आते आपको कई सारे सरप्राइज देती है। लास्ट सीन तक सस्पेंस है इस फिल्म की खासियत है। तो आप सस्पेंस थ्रिलर पसंद करते हैं या नहीं भी करते तो भी अगर अच्छी फिल्म देखना पसंद करते हूं तो ये जरूर देखें।
फ़ोटो साभार- गूगल
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