उस सर्द रात में मैं अपने गुस्से वाली गर्मी को ज्यादा देर तक बरकरार नहीं रख पाया, जितनी भी गर्मी थी मेरे दिमाग में सब इन ठिठुरन भरी सर्द हवाओं ने ठंडा कर दिया था।
सोच रहा था आखिर ये गुस्सा मुझे इस वक़्त ही क्यों आया,
बेबस निगाहों से मैं दरवाजे की तरफ देख रहा था और सोच रहा था, "अब वो आयेगी, अब वो आयेगी।"
बहुत देर हो गयी इतने देर में तो उसका भी गुस्सा शांत हो जाना चाहिये था, लगता है ये ठंडी हवायें जिन्होंने मेरे गुस्से को ठंडा कर दिया, अंदर उसके पास तक नहीं पहुँच पा रही।
"मेरा भी न अपने गुस्से पर काबू नहीं रहता,अब भुगतो!
लगता है आज की रात बाहर ही बितानी पड़ेगी" मै खुद से बाते करते हुए बुदबुदा रहा था।
अचानक दरवाजे के खुलने की आवाज आयी दरवाजे की तरफ देखा तो दरवाजे पर मेरी बिटिया थी, उसने मेरी खिंचाई करते हुए पूछा,"क्यों पापा मजे में हो?"
मैंने बेबसी और लाचारी भरे स्वर में उससे पूछा,"अंदर का माहौल कैसा है?"
"बहुत गर्मी है अंदर पापा" मेरी बेटी ने शैतानी वाले अंदाज़ में जवाब दिया, "आज रात तो यहीं काटनी पड़ेगी आपको।"
मै अभी कुछ कहता तब तक वो अंदर भाग गयी, उसकी माँ ने उसे बुला लिया था।
"अरे ऐसी भी कोई पत्नी होती है क्या, इतना भी क्या गुस्सा करना, मै ठण्ड में ठिठुर रहा हूँ और कोई परवाह नहीं उसे" मैं खुद से ही बाते किये जा रहा था।
अचानक फिर से दरवाजा खुला इस बार दरवाजे पर मेरी प्रतिद्वंद्वी यानी कि मेरी प्यारी पत्नी मुझे घूरते हुए बोली," क्यों अभी तक दिमाग ठिकाने नहीं आया"
मैं चुप चाप सुन रहा था, वो फिर बोली," अब चलो अंदर बहुत हो गयी नौटंकी तुम्हारी"
मैंने वक़्त के नज़ाकत को समझा और थोड़ा अकड़ के बोला,"मैं यही ठीक हूँ मुझे नहीं आना अंदर।"
मेरी पत्नी मेरी फ़र्ज़ी अकड़ को बख़ूबी समझ रही थी उसने कहा,"तुम सच में बाहर ही रहना चाहते हो, पक्का न! सोच लो मैं दरवाजा बंद करने जा रही हूँ।"
मैं दुविधा में था एक तरफ ये जानलेवा ठण्ड और दूसरी तरफ मेरी प्रतिद्वंद्वी की जीत, इनदोनों में से किसी एक को चुनना था, अगर मैं बाहर रहता तो शायद सुबह तक मेरी कुल्फ़ी जम जाती और अगर अंदर जाता तो मेरी पत्नी मुझसे गुस्से की जंग जीत जाती। दुविधा तो बहुत थी लेकिन मैने फैसला लेने में ज्यादा वक्त नहीं लगाया, मैं उठ खड़ा हुआ और अपनी पत्नी के कंधे पर प्यार से हाथ रखते हुए बोला,"चलो तुम्हे इस बार माफ़ कर दे रहा हूँ तुम भी क्या याद करोगी, तुम्हे इतना प्यार करने वाला पति मिला है।"
मेरी पत्नी मुझसे कहाँ कम थी उसने भी तपाक से जवाब दिया,"महाशय मुझे आपकी माफ़ी में कोई दिलचस्पी नहीं कृपया उसे अपने पास रखें और आप जहाँ हैं वहीं रहें।"
उसने मेरा हाथ झटका और दरवाजा बंद करने लगी, उसे ऐसा करते देख मैं दरवाजे की तरफ ऐसे कूद पड़ा मानो एक बार ये दरवाजा बंद हुआ तो सदियों तक नहीं खुलेगा।
"अरे माफ़ कर दो यार, हो गया जो होना था! अब जान लोगी क्या मेरी" मैंने बेबसी भरे लहज़े में कहा,"मुझे पता है तुम मुझे बाहर नहीं सोने दे सकती, मेरी सोना!
मेरी पत्नी ने जवाब दिया,"ज्यादा उड़ो न, अंदर आकर सोना है तो सो जाओ, खाना-वाना तो नहीं मिल पायेगा"
मैंने प्यार से कहा,"अरे ये क्या बात हुई अब झगड़ा खत्म हुआ हमारा, थोड़ा सा तो खाना खिला दो दोपहर से कुछ नहीं खाया।"
उसने बोला, "ना बिल्कुल ना! मैंने तुम्हारा खाना बनाया ही नहीं।"
"थोड़ा सा खिला दो यार, मैं रोटी के लिये तरस रहे भूखे व्यक्ति की भांति बोला,"मुझे भूखा सुला कर क्यों पाप की भागीदार बनना चाहती हो।"
"मुझे पापी बनना स्वीकार्य है।" वो मजाकिया अंदाज में बोली,"बोला न नहीं मतलब नहीं"
फिर मैं बोला,"प्लीज सोना! थोड़ा सा"
तब तक अंदर मेरी बिटिया की तेज आवाज आयी,"अरे बंद करो आपलोग ये नौटंकी, आना है तो आओ मैं खाने जा रही हूँ मुझे ज़ोरों की भूख लगी है"
बिटिया के बोलने के इस अंदाज़ पर मैं और मेरी पत्नी जोर से हँस पड़े, इसके बाद घर में वो हँसी-ठहाके लगने शुरू हुये जो सबके सोने तक बंद ही नहीं हुए।
बातों ,ठहाकों और एक दूसरे की टांग खिंचाई का सिलसिला ऐसा चला कि कुछ देर पहले क्या हुआ मानो किसी को खबर ही ना हो।
- दिव्यमान यती
https://divyamany.wooplr.com/सोच रहा था आखिर ये गुस्सा मुझे इस वक़्त ही क्यों आया,
बेबस निगाहों से मैं दरवाजे की तरफ देख रहा था और सोच रहा था, "अब वो आयेगी, अब वो आयेगी।"
बहुत देर हो गयी इतने देर में तो उसका भी गुस्सा शांत हो जाना चाहिये था, लगता है ये ठंडी हवायें जिन्होंने मेरे गुस्से को ठंडा कर दिया, अंदर उसके पास तक नहीं पहुँच पा रही।
"मेरा भी न अपने गुस्से पर काबू नहीं रहता,अब भुगतो!
लगता है आज की रात बाहर ही बितानी पड़ेगी" मै खुद से बाते करते हुए बुदबुदा रहा था।
अचानक दरवाजे के खुलने की आवाज आयी दरवाजे की तरफ देखा तो दरवाजे पर मेरी बिटिया थी, उसने मेरी खिंचाई करते हुए पूछा,"क्यों पापा मजे में हो?"
मैंने बेबसी और लाचारी भरे स्वर में उससे पूछा,"अंदर का माहौल कैसा है?"
"बहुत गर्मी है अंदर पापा" मेरी बेटी ने शैतानी वाले अंदाज़ में जवाब दिया, "आज रात तो यहीं काटनी पड़ेगी आपको।"
मै अभी कुछ कहता तब तक वो अंदर भाग गयी, उसकी माँ ने उसे बुला लिया था।
"अरे ऐसी भी कोई पत्नी होती है क्या, इतना भी क्या गुस्सा करना, मै ठण्ड में ठिठुर रहा हूँ और कोई परवाह नहीं उसे" मैं खुद से ही बाते किये जा रहा था।
अचानक फिर से दरवाजा खुला इस बार दरवाजे पर मेरी प्रतिद्वंद्वी यानी कि मेरी प्यारी पत्नी मुझे घूरते हुए बोली," क्यों अभी तक दिमाग ठिकाने नहीं आया"
मैं चुप चाप सुन रहा था, वो फिर बोली," अब चलो अंदर बहुत हो गयी नौटंकी तुम्हारी"
मैंने वक़्त के नज़ाकत को समझा और थोड़ा अकड़ के बोला,"मैं यही ठीक हूँ मुझे नहीं आना अंदर।"
मेरी पत्नी मेरी फ़र्ज़ी अकड़ को बख़ूबी समझ रही थी उसने कहा,"तुम सच में बाहर ही रहना चाहते हो, पक्का न! सोच लो मैं दरवाजा बंद करने जा रही हूँ।"
मैं दुविधा में था एक तरफ ये जानलेवा ठण्ड और दूसरी तरफ मेरी प्रतिद्वंद्वी की जीत, इनदोनों में से किसी एक को चुनना था, अगर मैं बाहर रहता तो शायद सुबह तक मेरी कुल्फ़ी जम जाती और अगर अंदर जाता तो मेरी पत्नी मुझसे गुस्से की जंग जीत जाती। दुविधा तो बहुत थी लेकिन मैने फैसला लेने में ज्यादा वक्त नहीं लगाया, मैं उठ खड़ा हुआ और अपनी पत्नी के कंधे पर प्यार से हाथ रखते हुए बोला,"चलो तुम्हे इस बार माफ़ कर दे रहा हूँ तुम भी क्या याद करोगी, तुम्हे इतना प्यार करने वाला पति मिला है।"
मेरी पत्नी मुझसे कहाँ कम थी उसने भी तपाक से जवाब दिया,"महाशय मुझे आपकी माफ़ी में कोई दिलचस्पी नहीं कृपया उसे अपने पास रखें और आप जहाँ हैं वहीं रहें।"
उसने मेरा हाथ झटका और दरवाजा बंद करने लगी, उसे ऐसा करते देख मैं दरवाजे की तरफ ऐसे कूद पड़ा मानो एक बार ये दरवाजा बंद हुआ तो सदियों तक नहीं खुलेगा।
"अरे माफ़ कर दो यार, हो गया जो होना था! अब जान लोगी क्या मेरी" मैंने बेबसी भरे लहज़े में कहा,"मुझे पता है तुम मुझे बाहर नहीं सोने दे सकती, मेरी सोना!
मेरी पत्नी ने जवाब दिया,"ज्यादा उड़ो न, अंदर आकर सोना है तो सो जाओ, खाना-वाना तो नहीं मिल पायेगा"
मैंने प्यार से कहा,"अरे ये क्या बात हुई अब झगड़ा खत्म हुआ हमारा, थोड़ा सा तो खाना खिला दो दोपहर से कुछ नहीं खाया।"
उसने बोला, "ना बिल्कुल ना! मैंने तुम्हारा खाना बनाया ही नहीं।"
"थोड़ा सा खिला दो यार, मैं रोटी के लिये तरस रहे भूखे व्यक्ति की भांति बोला,"मुझे भूखा सुला कर क्यों पाप की भागीदार बनना चाहती हो।"
"मुझे पापी बनना स्वीकार्य है।" वो मजाकिया अंदाज में बोली,"बोला न नहीं मतलब नहीं"
फिर मैं बोला,"प्लीज सोना! थोड़ा सा"
तब तक अंदर मेरी बिटिया की तेज आवाज आयी,"अरे बंद करो आपलोग ये नौटंकी, आना है तो आओ मैं खाने जा रही हूँ मुझे ज़ोरों की भूख लगी है"
बिटिया के बोलने के इस अंदाज़ पर मैं और मेरी पत्नी जोर से हँस पड़े, इसके बाद घर में वो हँसी-ठहाके लगने शुरू हुये जो सबके सोने तक बंद ही नहीं हुए।
बातों ,ठहाकों और एक दूसरे की टांग खिंचाई का सिलसिला ऐसा चला कि कुछ देर पहले क्या हुआ मानो किसी को खबर ही ना हो।
- दिव्यमान यती
Very interesting story bro👍👍👍
ReplyDeleteThank you
Deleteवाह गजब भैया लिखते रहिए....!
ReplyDeleteधन्यवाद😊
Delete✍✍❤❤
ReplyDelete❤❤❤
Delete❤👌
ReplyDelete❤❤
DeleteThis is really beautiful and sweet ����
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