Skip to main content

Jana Gana Mana Movie Review : पॉलिटिकल ड्रामा में सस्पेंस और थ्रिल का तड़का

Jana Gana Mana Movie Review

Jana Gana Mana Movie Review : 2 जून को रात बारह बजे पृथ्वीराज सुकुमारन (Prithviraj Sukumaran) की मलयालम फिल्म 'जन गण मन' (Jana Gana Mana Movie) स्ट्रीम होनी शुरू हो गई और मैंने बिना वक़्त गंवाए देखना शुरू कर दिया. पिछले 2-3 सालों से क्षेत्रीय भाषा खासकर मलयालम भाषा (Malayalam Movie) की फिल्मों के प्रति में रुचि बढ़ी है. इसी का असर था जिसकी वजह से इस फिल्म को लेकर अवेयर था. खैर! फिल्म शुरू हुई, शुरुआत होती है एक दर्दनाक हत्या से. एक यूनिवर्सिटी की महिला प्रोफेसर सबा (ममता मोहनदास) को सड़क के किनारे कुछ लोग जिंदा जला देते हैं. जिसके बाद उस प्रोफेसर की यूनिवर्सिटी में स्टूडेंट्स हंगामा शुरू देते हैं. पुलिस वर्सेज स्टूडेंट्स वाला मामला हो जाता है. पुलिस कॉलेज कैंपस में घुस कर स्टूडेंट्स को मारती है. इस घटना पर सोशल मीडिया-मीडिया में हंगामा होता है. दबाव में मर्डर के इन्वेस्टिगेशन शुरू हो जाती है.


सस्पेंस और थ्रिल का भरपूर डोज है फिल्म में

Jana Gana Mana Movie Review

इस इन्वेस्टिगेशन के लिए एसीपी सज्जन कुमार (सूरज वेंजरामुदु) को बुलाया जाता है. इंटरवल तक यही इन्वेस्टिगेशन का पार्ट चलता है. सबा के हत्या और रेप के आरोप में चार लोग पकड़े जाते हैं. चारो का एकदम हैदराबाद एनकाउंटर केस के जैसे एसीपी सज्जन कुमार एनकाउंटर कर देते हैं. इंटरवल बाद उनपर जांच बैठती है और फिर एंट्री होती है एडवोकेट अरविंद स्वामीनाथन (पृथ्वीराज सुकुमारन) की. अरविंद, एसीपी के खिलाफ केस लड़ते हैं. कहानी यहीं से सस्पेंस और थ्रिल लिए अपने अंजाम तक पहुंचती है.


क्लाइमेक्स में ध्यान हटा तो हो जाएंगे कंफ्यूज

Jana Gana Mana Movie Review


ऐसा बिल्कुल मत सोचिएगा की मैंने सब कुछ तो बता ही दिया. मर्डर हुआ, आरोपी पकड़े गए, उनका एनकाउंटर हो गया, एसीपी पर केस चला. आगे क्या होगा ये तो सबको पता ही चल जाएगा. बिल्कुल नहीं, इस कहानी का सस्पेंस और थ्रिल ही कहानी का प्लस पॉइंट है. इसका क्लाइमेक्स इस फिल्म की मजबूत पक्ष भी है और कमजोर भी. दोनों कैसे? क्लाइमेक्स आपको सरप्राइज कर देगा लेकिन क्लाइमेक्स में आपको एक के बाद एक कई सरप्राइजेज मिलेंगे. अगर आप फोकस्ड नहीं रहे तो कंफ्यूज भी हो सकते हैं. मैं तो नहीं हुआ बाकी आप देखते वक़्त ध्यान रखिएगा.


ये फिल्म अपने साथ कई फ्लेवर लेकर चलती है. इस फिल्म में क्राइम, इन्वेस्टिगेशन, पॉलिटिक्स, कोर्ट रूम ड्रामा सब देखने को मिलेगा. इस फिल्म के सबसे ज्यादा डर था खिचड़ी बन जाने का. इसकी स्टोरीलाइन सुनकर आप जरूर कंफ्यूज हो जाएंगे और कहेंगे आखिर ये दिखाना क्या चाहते हैं लेकिन अंत आते-आते सब कुछ स्पष्ट हो जाएगा. बड़े ही स्मार्ट तरीके से इसके स्क्रीनप्ले को लिखा गया है. कब कॉलेज पॉलिटिक्स से पुलिस इन्वेस्टिगेशन और उसके बाद कोर्ट रूम ड्रामा तक आ जाती है पता भी नहीं चलता है. कई चीजें कंफ्यूज भी करेंगी लेकिन जो फिल्म मेहनत कराए उसे देखने का अपना अलग ही मजा है.


एक बार फिर पृथ्वीराज और सूरज की जुगलबंदी आएगी नजर

Jana Gana Mana Movie Review

इस फिल्म में आपको पॉलिटिक्स के साथ मीडिया ट्रायल की काली सच्चाई नजर आएगी. कहानी में कई घटनाएं काल्पनिक भले हो लेकिन आपके मन में सवाल आएगा कि ऐसा तो होता ही है. मैंने जब पृथ्वीराज सुकुमारन की 'कुरुथी' देखी थी तब भी मैं सरप्राइज था, पृथ्वीराज अपनी फिल्मों में बेबाकी से छोटी-बड़ी बातों को दिखाते हैं. इस फिल्म को आप दो पार्ट में बांट सकते हैं पहला पूरा हाफ सूरज वेंजरामुदु का शो है. वो एक कमाल के एक्टर हैं. उनकी एक्टिंग देखनी है तो Android Kunjappan Ver 5.25 में देखिए, उस फिल्म के बाद उनकी एक्टिंग के कायल हो जाएंगे. सेकंड हाफ से शुरू होता है पृथ्वीराज सुकुमारन का शो वो आते ही माहौल लूट ले जाते हैं. उनकी बेहतरीन परफॉर्मेंस की वजह से पूरी फिल्म उनकी ही लगने लगती है. इन दोनों एक्टर्स की जुगलबंदी इसके पहले 'ड्राइविंग लाइसेंस' में भी नजर आ चुकी है. इन दोनों के अलावा ममता मोहनदास की परफॉर्मेंस भी बढ़िया है.


बैकग्राउंड म्यूजिक और सिनेमेटोग्राफी है कमाल

Jana Gana Mana Movie Review

इस फिल्म का इमोशनल पार्ट मजबूत है. बैकग्राउंड म्यूजिक इसमें अहम योगदान निभाता नजर आता है. कई जगह आप इमोशनल होते हुए भी नजर आएंगे तो कई जगह यही म्यूजिक आपको थ्रिल वाला एहसास देगा. मलयालम फिल्मों की सिनेमेटोग्राफी का मैं कायल हूं. साधारण में असाधारण कैमरावर्क रहता है इनलोगों का. फिल्म की लेंथ लंबी है लेकिन कहीं भी आपको ये बात खलेगी नहीं. जैसा मैंने पहले ही बताया इसका कमजोर और मजबूत, दोनों पक्ष क्लाइमेक्स ही है. बाकी कई जरूरी बातों को ये फिल्म आपके सामने रखती है. कैसे पॉलिटिक्स और मीडिया का मेल किसी आम इंसान की जिंदगी को तबाह कर सकता है उसपर भी ये फिल्म बेधड़क प्रकाश डालती है. अगर मलयालम भाषा में सबटाइटल के साथ देख सकते हैं देख लीजिए. अगर दिक्कत होती है तो भी कोशिश कीजिए वरना फिर बॉलीवुड की रीमेक गैंग आपके नाम पर एक और रीमेक बनाने में लग जाएगी.

वीडियो देखें और इस यूट्यूब चैनल को सब्सक्राइब करके अपना समर्थन दें-



यह भी पढ़ें- Anek Movie Review : जरूरी फिल्म का गैरजरूरी ट्रीटमेंट 

Comments

Popular posts from this blog

तमकुही राज- एक अनसुनी कहानी

◆तमकुही राज- एक अनसुनी कहानी◆ उत्तर प्रदेश के कुशीनगर जिले में राष्ट्रीय राजमार्ग-28 के समीप स्थित है तमकुहीराज ( Tamkuhi Raj )। तमकुहीराज का अपना ही एक गौरवपूर्ण इतिहास है जिसे इतिहासकारों ने उतनी तवज्जों नहीं दी सिवाय कुछ स्थानीय इतिहासकारों के। आज भी तमकुहीराज के गौरवशाली इतिहास की गाथायें यहाँ के बुजुर्गों से सुनने को मिलती है। तमकुहीराज में एक खूबसूरत राज्य होने से पहले यहाँ घना जंगल हुआ करता था जिसे वीर राजा "फतेह शाही" ने बसाया था। राजा फतेह शाही ( Raja Fateh Sahi ) को 1767 में अंग्रेजों की "कंपनी सरकार" ने "कर" ना देने का विरोध करने पर वि द्रोही घोषित कर दिया। राजा साहब को जनता का भरपूर समर्थन प्राप्त था जिसके परिणामस्वरूप उन्होंने तमकुहीराज में राज्य की स्थापना की तथा इसका विस्तार भी किया। 23 वर्षों तक बग़ावत का झंडा बुलंद किये लड़ते रहने के बाद 1790 में फतेह शाही ने अपने पुत्र को तमकुही की गद्दी पर बिठाकर महाराष्ट्र सन्यास पर चले गये। 1836 में फतेह शाही की मृत्यु के बाद भी अंग्रेज़ो में उनका आतंक कम न हुआ। राजा फतेह शाही के बाद भी कई

D-16 : साउथ की परफेक्ट सस्पेंस थ्रिलर फिल्म

Dhuruvangal Pathinaaru (D-16) मैं हॉटस्टार पर ऐसे ही रोज की तरह कोई फिल्म ढूंढ़ रहा था अचानक से मेरी नज़र 'धुरुवंगल पथिनारू यानी डी-16' फिल्म पर गई। नज़र पड़ते ही मैंने देखना शुरू नहीं किया क्योंकि मैं जब भी कोई ऐसी फिल्म देखता हूँ जिसका नाम पहली बार सुना हो तो पहले उसके बारे चेक करता हूँ कि ये फिल्म देखने लायक है या नहीं। इसपर रेस्पॉन्स अच्छा दिखा तो सोचा देख लूं। पिछले दिनों मैंने बहुत सी साउथ फिल्मों के बारे में जानकारियां जुटाई, उनके बारे में पढ़ा, साउथ की फिल्म्स को लेकर थोड़ी छानबीन भी की ये इसलिए क्योंकि साउथ फिल्मों को लेकर एक मिथ है कि साऊथ में जो टीवी पर मसाला फिल्में दिखती हैं केवल उसी तरह की फिल्में बनती हैं। लेकिन अब इस धारणा से बाहर आना चाहिए। साउथ में कुछ बेहतरीन फिल्में ऐसी हैं जो हमारी पहुंच से दूर हैं क्योंकि बाजार उन्हें स्वीकार नहीं करता। हिंदी में वहीं ज्यादातर उपलब्ध हैं जो आप आये दिनों टीवी पर देखते रहते हैं। कुछ अच्छी फिल्में भी उपलब्ध हैं जो इन रेगुलर मसाला फिल्मों से अलग हैं लेकिन अधिकतर लोगों को उनके बारे में पता ही नहीं और जब पता नहीं तो देखने का रि

Rahul Dravid : वो दीवार जिसे कोई ना भेद पाया, महान राहुल द्रविड़

# महान_राहुल_द्रविड़  महान सिर्फ इसलिए नहीं कि उन्होंने इतने ढ़ेर सारे रन बनाएं, इतने ढ़ेर सारे कैच पकड़े, भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान भी रहे। बल्कि महान इसलिए कि ये जो इतने सारे रन बनाए ये उन मुश्किल हालातों में बनाएं जहाँ रन बनाना किसी पहाड़ तोड़ने से कम नहीं था, ये ढ़ेर सारे कैच ऐसे कैच थे जिन्हें पकड़ पाना आम फील्डर के बस की बात नहीं थी और कप्तान उन हालातों में रहे जब भारतीय टीम बुरे हालात में थी। जब भारतीय टीम के पुतले फूंके जा रहे थे, जब खिलाडियों के घरों पर हमले किये जा रहे थे। इन सब से अलग एक बेहद ही सौम्य और शांत खिलाड़ी जब आक्रामक होता था तब अपने बल्ले से निकली 'टक' की आवाज से विरोधियों के गालों पर थप्पड़ मारता था। जिससे उलझने से पहले गेंदबाज ये सोचता था कि इसका भुगतान हमें लंबी पारी के रूप में भुगतना पड़ सकता है। लोगों के चौकों-छक्कों की चर्चाओं के बीच एक ऐसा शख्स था जिसके डिफेंस की चर्चा होती थी, जिससे कट शॉट की चर्चा होती थी। मेरा क्रिकेट का लगाव कितना पुराना है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि मैं इस खिलाड़ी के सबसे महत्वपूर्ण और महान दौर का गवाह बना। जिस दि

संगिनी - लघुकथा

उस सर्द रात में मैं अपने गुस्से वाली गर्मी को ज्यादा देर तक बरकरार नहीं रख पाया, जितनी भी गर्मी थी मेरे दिमाग में सब इन ठिठुरन भरी सर्द हवाओं ने ठंडा कर दिया था। सोच रहा था आखिर ये गुस्सा मुझे इस वक़्त ही क्यों आया, बेबस निगाहों से मैं दरवाजे की तरफ देख रहा था और सोच रहा था, "अब वो आयेगी, अब वो आयेगी।" बहुत देर हो गयी इतने देर में तो उसका भी गुस्सा शांत हो जाना चाहिये था, लगता है ये ठंडी हवायें जिन्होंने मेरे गुस्से को ठंडा कर दिया, अंदर उसके पास तक नहीं पहुँच पा रही। "मेरा भी न अपने गुस्से पर काबू नहीं रहता,अब भुगतो! लगता है आज की रात बाहर ही बितानी पड़ेगी" मै खुद से बाते करते हुए बुदबुदा रहा था। अचानक दरवाजे के खुलने की आवाज आयी दरवाजे की तरफ देखा तो दरवाजे पर मेरी बिटिया थी, उसने मेरी खिंचाई करते हुए पूछा,"क्यों पापा मजे में हो?" मैंने बेबसी और लाचारी भरे स्वर में उससे पूछा,"अंदर का माहौल कैसा है?" "बहुत गर्मी है अंदर पापा" मेरी बेटी ने शैतानी वाले अंदाज़ में जवाब दिया, "आज रात तो यहीं काटनी पड़ेगी आपको।" मै अभी कुछ