Skip to main content

Panchayat Season 2 Review : मोहब्बत ज़िंदाबाद है पंचायत की

Panchayat Season 2 Review : पंचायत का सीजन 2 अच्छा है. इस बार मीम एलिमेंट्स या यूं कहें फन एलिमेंट्स पहले के मुकाबले कम मिलेंगे लेकिन भावनात्मक पक्ष काफी मजबूत है. जीतू भैया इस बार पिछले वाले फॉर्म में नजर नहीं आए हैं लेकिन विकास, प्रहलाद और बवासीर वाले स्लोगन से नाराज 'बनराकस' (भूषण) ने बहुत प्रभावित किया है. प्रधान जी और प्रधान पत्नी दोनों का कोई जोड़ नहीं है. रिंकी की स्माइल और आवाज तो बहुत प्यारी लगी लेकिन रिंकी को ऐसा बुझा-बुझा सा देखना कचोट रहा था. पानी की टंकी पर जिस तरह से पहले सीजन का अंत हुआ था, रिंकी जैसे इंट्रोड्यूस हुई थी लगा था कि इस सीजन रिंकी को बराबर स्पेस मिलेगा पर ऐसा हुआ नहीं. 

एक्टिंग जबरदस्त, स्क्रीनप्ले थोड़ा कमजोर

Panchayat Season 2 Review

अमेजन प्राइम पर रिलीज डेट से 2 दिन पहले आते ही देख लेने के बाद भी इसपर लिखने में मैंने देरी कर दी, वजह थी खराब तबियत. अब थोड़ा संक्षेप में दिल की बात लिख रहा हूँ. इसी पंचायत के पहले सीजन को मोहब्बत बताया था मैंने, वो मोहब्बत अभी भी कायम है. किरदार इस फिल्म के अपने हो चुके हैं. स्क्रीनप्ले वाला पक्ष थोड़ा, बस थोड़ा सा डगमगाया नजर आया. एक्टिंग जबरदस्त है, प्रजेंटेशन भी कमाल है. इसके किरदार ही हैं जिन्होंने पंचायत से मोहब्बत करने पर मजबूर किया है. उन किरदारों को लेखक ने ही गढ़ा है बस उसी लेखक से विनम्र विनती है कि इस बार पंच लाइन्स और यादगार मोमेंट्स थोड़े से कम हो गए हैं. इसे अगले सीजन में जरूर बढाइयेगा. जो कमी महसूस हुई उन्हें ना बताऊं तो खुद को बुरा लगेगा. पहले लाइन में कह चुका हूं, पंचायत का दूसरा सीजन अच्छा है लेकिन जो चीजें मुझे देखते वक़्त महसूस हुईं, जो मिसिंग एलिमेंट्स लगें उसे बताना आवश्यक है. 


पहला और आखिरी एपिसोड दिल छू लेगा

Panchayat Season 2 Review

पहले और आखिर एपिसोड का जिक्र हर जगह हो रहा है. होना लाजिमी है क्योंकि पहले में लाइफ से जुड़ी जबरदस्त पंच लाइन (हर कोई कहीं ना कहीं नाच ही रहा है) थी, तो आखिर में सेना के जवान की शहादत से जुड़ा कटु सच था. दोनों से लोगों ने कनेक्ट किया. क्लाइमेक्स में सब कुछ इतना परफेक्ट हो गया कि बीच की कमियों को इग्नोर करने का मन करने लगा. लिखने में देर करने का एक फायदा ये हुआ कि उस आखिरी एपिसोड के मोह से बाहर आकर लिख पा रहा हूँ.


प्रहलाद और चंदन ने जमाई महफ़िल

Panchayat Season 2 Review

आखिर में 'पंचायत प्रेमी' होने के नाते ये उम्मीद करूंगा तीसरे सीजन में चहेते जीतू भैया भी फॉर्म में लौटेंगे और स्क्रीनप्ले में मजेदार गंवई किस्सों को भी और स्थान मिलेगा. बाकी शुभकामनाएं पूरी टीम को. सीरीज का क्रेज बरकरार है. सीजन 2 देखी जाने लायक है. इस सीरीज के अधिकतर कलाकारों ने अपने करियर में बहुत से कमाल किए हैं लेकिन इस बार प्रहलाद, चंदन और भूषण ने ही सबसे ज्यादा महफिल लूटी है.


दिव्य_पंचायत

D-16 : साउथ की परफेक्ट सस्पेथ्रिलर फिल्म

 

D-16 : साउथ की परफेक्ट सस्पेंस थ्रिलर फिल्म

Comments

Post a Comment

Popular posts from this blog

तमकुही राज- एक अनसुनी कहानी

◆तमकुही राज- एक अनसुनी कहानी◆ उत्तर प्रदेश के कुशीनगर जिले में राष्ट्रीय राजमार्ग-28 के समीप स्थित है तमकुहीराज ( Tamkuhi Raj )। तमकुहीराज का अपना ही एक गौरवपूर्ण इतिहास है जिसे इतिहासकारों ने उतनी तवज्जों नहीं दी सिवाय कुछ स्थानीय इतिहासकारों के। आज भी तमकुहीराज के गौरवशाली इतिहास की गाथायें यहाँ के बुजुर्गों से सुनने को मिलती है। तमकुहीराज में एक खूबसूरत राज्य होने से पहले यहाँ घना जंगल हुआ करता था जिसे वीर राजा "फतेह शाही" ने बसाया था। राजा फतेह शाही ( Raja Fateh Sahi ) को 1767 में अंग्रेजों की "कंपनी सरकार" ने "कर" ना देने का विरोध करने पर वि द्रोही घोषित कर दिया। राजा साहब को जनता का भरपूर समर्थन प्राप्त था जिसके परिणामस्वरूप उन्होंने तमकुहीराज में राज्य की स्थापना की तथा इसका विस्तार भी किया। 23 वर्षों तक बग़ावत का झंडा बुलंद किये लड़ते रहने के बाद 1790 में फतेह शाही ने अपने पुत्र को तमकुही की गद्दी पर बिठाकर महाराष्ट्र सन्यास पर चले गये। 1836 में फतेह शाही की मृत्यु के बाद भी अंग्रेज़ो में उनका आतंक कम न हुआ। राजा फतेह शाही के बाद भी कई

D-16 : साउथ की परफेक्ट सस्पेंस थ्रिलर फिल्म

Dhuruvangal Pathinaaru (D-16) मैं हॉटस्टार पर ऐसे ही रोज की तरह कोई फिल्म ढूंढ़ रहा था अचानक से मेरी नज़र 'धुरुवंगल पथिनारू यानी डी-16' फिल्म पर गई। नज़र पड़ते ही मैंने देखना शुरू नहीं किया क्योंकि मैं जब भी कोई ऐसी फिल्म देखता हूँ जिसका नाम पहली बार सुना हो तो पहले उसके बारे चेक करता हूँ कि ये फिल्म देखने लायक है या नहीं। इसपर रेस्पॉन्स अच्छा दिखा तो सोचा देख लूं। पिछले दिनों मैंने बहुत सी साउथ फिल्मों के बारे में जानकारियां जुटाई, उनके बारे में पढ़ा, साउथ की फिल्म्स को लेकर थोड़ी छानबीन भी की ये इसलिए क्योंकि साउथ फिल्मों को लेकर एक मिथ है कि साऊथ में जो टीवी पर मसाला फिल्में दिखती हैं केवल उसी तरह की फिल्में बनती हैं। लेकिन अब इस धारणा से बाहर आना चाहिए। साउथ में कुछ बेहतरीन फिल्में ऐसी हैं जो हमारी पहुंच से दूर हैं क्योंकि बाजार उन्हें स्वीकार नहीं करता। हिंदी में वहीं ज्यादातर उपलब्ध हैं जो आप आये दिनों टीवी पर देखते रहते हैं। कुछ अच्छी फिल्में भी उपलब्ध हैं जो इन रेगुलर मसाला फिल्मों से अलग हैं लेकिन अधिकतर लोगों को उनके बारे में पता ही नहीं और जब पता नहीं तो देखने का रि

Rahul Dravid : वो दीवार जिसे कोई ना भेद पाया, महान राहुल द्रविड़

# महान_राहुल_द्रविड़  महान सिर्फ इसलिए नहीं कि उन्होंने इतने ढ़ेर सारे रन बनाएं, इतने ढ़ेर सारे कैच पकड़े, भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान भी रहे। बल्कि महान इसलिए कि ये जो इतने सारे रन बनाए ये उन मुश्किल हालातों में बनाएं जहाँ रन बनाना किसी पहाड़ तोड़ने से कम नहीं था, ये ढ़ेर सारे कैच ऐसे कैच थे जिन्हें पकड़ पाना आम फील्डर के बस की बात नहीं थी और कप्तान उन हालातों में रहे जब भारतीय टीम बुरे हालात में थी। जब भारतीय टीम के पुतले फूंके जा रहे थे, जब खिलाडियों के घरों पर हमले किये जा रहे थे। इन सब से अलग एक बेहद ही सौम्य और शांत खिलाड़ी जब आक्रामक होता था तब अपने बल्ले से निकली 'टक' की आवाज से विरोधियों के गालों पर थप्पड़ मारता था। जिससे उलझने से पहले गेंदबाज ये सोचता था कि इसका भुगतान हमें लंबी पारी के रूप में भुगतना पड़ सकता है। लोगों के चौकों-छक्कों की चर्चाओं के बीच एक ऐसा शख्स था जिसके डिफेंस की चर्चा होती थी, जिससे कट शॉट की चर्चा होती थी। मेरा क्रिकेट का लगाव कितना पुराना है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि मैं इस खिलाड़ी के सबसे महत्वपूर्ण और महान दौर का गवाह बना। जिस दि

संगिनी - लघुकथा

उस सर्द रात में मैं अपने गुस्से वाली गर्मी को ज्यादा देर तक बरकरार नहीं रख पाया, जितनी भी गर्मी थी मेरे दिमाग में सब इन ठिठुरन भरी सर्द हवाओं ने ठंडा कर दिया था। सोच रहा था आखिर ये गुस्सा मुझे इस वक़्त ही क्यों आया, बेबस निगाहों से मैं दरवाजे की तरफ देख रहा था और सोच रहा था, "अब वो आयेगी, अब वो आयेगी।" बहुत देर हो गयी इतने देर में तो उसका भी गुस्सा शांत हो जाना चाहिये था, लगता है ये ठंडी हवायें जिन्होंने मेरे गुस्से को ठंडा कर दिया, अंदर उसके पास तक नहीं पहुँच पा रही। "मेरा भी न अपने गुस्से पर काबू नहीं रहता,अब भुगतो! लगता है आज की रात बाहर ही बितानी पड़ेगी" मै खुद से बाते करते हुए बुदबुदा रहा था। अचानक दरवाजे के खुलने की आवाज आयी दरवाजे की तरफ देखा तो दरवाजे पर मेरी बिटिया थी, उसने मेरी खिंचाई करते हुए पूछा,"क्यों पापा मजे में हो?" मैंने बेबसी और लाचारी भरे स्वर में उससे पूछा,"अंदर का माहौल कैसा है?" "बहुत गर्मी है अंदर पापा" मेरी बेटी ने शैतानी वाले अंदाज़ में जवाब दिया, "आज रात तो यहीं काटनी पड़ेगी आपको।" मै अभी कुछ