कहानी में ड्रग्स का एंगल मुख्य है
फिल्म की कहानी की शुरुआत में एक-एक बाद एक कई हत्याएं होती हैं. मारे गए लोगों में अधिकतर पुलिस डिपार्टमेंट के लोग हैं. इन हत्याओं के पीछे कोई नकाबपोश गैंग है. इसी नकाबपोश गैंग का पता लगाने के लिए एक स्पेशल टीम हो बुलाया जाता है जिसका हेड अमर (फहाद फासिल) क्रिमिनल्स के अंदाज में काम करने में माहिर है. वो सारे पुलिसिया रूल-रेगुलेशन से आजाद होकर काम करता है और रिजल्ट भी देता है. उसे इन्वेस्टिगेशन में पता चलता है कि हत्या हुए लोगों में एक आदमी कर्णन (कमल हासन) ऐसा भी है जिसका पुलिस से कोई लिंक नहीं और उसके बारे में किसी को ज्यादा जानकारी भी नहीं. अमर नकाबपोश गैंग के साथ-साथ कर्णन के बारे में भी पता लगा लेता है और जब सच्चाई सामने आती है तब सबके होश उड़ जाते हैं. दर्शकों में शायद कइयों को उस सस्पेंस अंदाजा होगा लेकिन जैसे वो सामने आता है वो तरीका थ्रिलिंग है. इस फिल्म में एक बड़ा एंगल ड्रग्स का है जिसका सूत्रधार है संथानम (विजय सेतुपति). वो अपना गायब हुए ड्रग्स पाने की कोशिश में लगा हुआ है.
पहला हाफ सस्पेंस और दूसरा हाफ एक्शन के नाम
फिल्म के पहला हाफ में इन्वेस्टिगेशन वाला पार्ट ही ज्यादातर दिखाई देता है. बीच-बीच में कमल हासन के किरदार की इमोशनल कहानी भी फ्लैशबैक में चलती है लेकिन इंटरवल से ठीक पहले आता है एक्शन सीक्वेंस जो इस फिल्म की सबसे बड़ी हाईलाइट है. वहां आपको भारतीय सिनेमा में पहली बार फाइट सीन में एक अलग ही तरह की सिनेमेटोग्राफी नजर आएगी. वो फाइट सीन, कैमरावर्क और साथ में थ्रिलिंग बैकग्राउंड म्यूजिक आपकी उत्सुकता को एकदम शिखर पर पहुंचा देगा. यहां से शुरू हुआ एक्शन फिर रुकने का नाम नहीं लेता. दूसरे हाफ के शुरुआत में ही अधिकतर सस्पेंस खुल जाता है और उसके बाद सिर्फ एक्शन देखने को मिलता है. एक्शन के दीवानों को दूसरा हाफ ज्यादा पसंद आएगा और जिन्हें सस्पेंस थ्रिल ज्यादा पसंद उन्हें पहला हाफ. जिन्हें ये दोनों पसंद है फिर उनके लिए ये फिल्म एक ट्रीट है.
कमल हासन की फिल्म में फहाद फासिल का जलवा
कमल हासन इसके लीड एक्टर हैं उनका अंदाज और एक्टिंग सबको पसंद है. इसमें तो उनका लुक और एक्शन दमदार है. इमोशनल पार्ट में भी वो प्रभावी लगे हैं. फहाद फासिल पहले हाफ के हीरो हैं. उनकी एक्टिंग एक अलग जोन की है. भारतीय सिनेमा में उनके जैसे व्व एकलौते एक्टर हैं. 'पुष्पा' में उन्हें बस थोड़ा देखा था आपने यहां आप उस थोड़े से कहीं ज्यादा देखेंगे और उनकी एफर्टलेस एक्टिंग को महसूस भी करेंगे. विजय सेतुपति इस फिल्म में विलेन की भूमिका में हैं वो एकदम खूंखार नजर आए हैं. ड्रग्स की एक गोली खाने के बाद उनके अंदर का शैतान जागता है. उनकी एंट्री एकदम अनोखी और शानदार है. उनके फैमिली पैक वाला शो देखकर सिक्स पैक एब्स वाले हीरो भी पानी भरेंगे. सबको पता चल ही गया है कि सूर्या का कैमियो है, वो कैमियो अगले पार्ट की झलक देता है. उस कैमियो के देखने के बाद आप समझ जाएंगे कि अगले पार्ट में कौन-कौन किससे भिड़ने वाला है.
लोकेश कनगराज का डायरेक्शन बिना अनिरुद्ध के म्यूजिक के अधूरा है
अब बात डायरेक्टर लोकेश कनागराज और उनके बनाए जा रहे यूनिवर्स की. जी हां, लोकेश की इस फिल्म का कनेक्शन उनकी ही ब्लॉकबस्टर फिल्म 'कैथी' से जुड़ी है. ड्रग्स वाला एंगल और कुछ कैरेक्टर उसी फिल्म के हैं. बिना 'कैथी' देखे इसे देखने पहुंच जाएंगे तो थोड़े कंफ्यूज हो सकते हैं. लोकेश ने इस फिल्म के जरिए एक्शन और मसाला फिल्मों का अपना फ्लेवर पेश किया है. डायरेक्शन और स्क्रीनप्ले दोनों शानदार हैं. लगभग तीन घंटे की फिल्म में पूरा मनोरंजन मिलेगा. उनके काम में चार चांद लगाया है अनिरुद्ध के म्यूजिक ने. अनिरुद्ध का दिया बैकग्राउंड म्यूजिक आपको हर एक सीन में थ्रिल वाला फील देगा. इसी अनिरुद्ध ने 'कैथी' का बैकग्राउंड म्यूजिक दिया था और उस फिल्म को मेरे दोबारा देखने की खास वजहों में से एक बैकग्राउंड म्यूजिक भी था. अनिरुद्ध के म्यूजिक सुनकर ही आपके आधे पैसे वसूल हो जाएंगे. गिरीश गंगाधरन की सिनेमेटोग्राफी का जवाब नहीं खासकर फाइट सीन्स में. क्या ही कमाल किया है इन भाईसाहब ने.
'केजीएफ चैप्टर 2' की शिकायत 'विक्रम' ने दूर की
जब पिछली मास एंटरटेनर फिल्म 'केजीएफ चैप्टर 2' देखी थी तब उस फिल्म में प्रॉपर फाइट सीन मैंने मिस किया था. उसमें स्वैग और गोलियों की रासलीला तो खूब थी लेकिन परफेक्ट एक्शन सीन मिसिंग था उस कमी ये फिल्म अच्छे से पूरा करती है. ये तुलना नहीं है लेकिन 'विक्रम' आर्टिस्टिक और मास सिनेमा का परफेक्ट मेल है. एक्टिंग, एक्शन, स्टोरीलाइन और एक नया क्रिमिनल यूनिवर्स इसे दिलचस्प बनाती है. ये फिल्म तो मास दर्शकों के लिए ही है लेकिन हिंदी भाषी में इसका रुझान कम है क्योंकि लोगों को पता ही नहीं. जैसे-जैसे लोग जानेंगे इसे देखने पहुंचेंगे. उम्मीद तो यही है कि इसके मेकर अगले पार्ट के लिए 'केजीएफ' से प्रेरित होकर इसका भी हिंदी बेल्ट में जमकर प्रचार करेंगे. ये फिल्म बवाल है और इतनी आसानी से इसका खुमार उनके सर से नहीं उतरने वाला जिन्होंने देख ली है. ऐसा नहीं कि इसमें टिपिकल साउथ वाले एलिमेंट्स नहीं हैं. वो सेकंड हाफ में भर भरकर हैं. लेकिन दर्शक को चाहिए फूल मजा, उसे मजा आ रहा है तो वो सब कुछ कबूल कर लेंगे.
डायरेक्टर लोकेश कनागराज से शिकायत और रिक्वेस्ट
रिव्यू से अलग मेरी डायरेक्टर लोकेश कनगराज से शिकायत भी और रिक्वेस्ट भी है. शिकायत ये कि फहाद फासिल को जिस तरह से उन्होंने पहले हाफ में यूज किया उसी तरह से दूसरे हाफ में वेस्ट कर दिया. वो दमदार एक्टर हैं उन्हें दूसरे हाफ में भी उसी तरह रखना चाहिए था. माना दूसरा हाफ पूरा कमल हासन साहब का शो था, फिर भी फहाद के किरदार को इतना साधारण बना देना ठीक नहीं. रिक्वेस्ट है कि इस बात का अगले पार्ट में जरूर ख्याल रखिएगा. दूसरी शिकायत फिल्म के प्रोड्यूसर्स से जब फिल्म का कंटेंट इतना दमदार था तो उसे अच्छे से हिंदी में डब और हिंदी ऑडिएंस में प्रमोट क्यों नहीं किया? और रिक्वेस्ट ये कि इसके अगले पार्ट में हिंदी ऑडिएंस को ख्याल में रखकर भी प्लानिंग करें ताकि इसकी पहुंच हर तरफ पहुंच पाए.
मेरी आप पाठकों से भी एक रिक्वेस्ट है
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