Skip to main content

Posts

Showing posts from 2019

क्या सच में न्याय हो गया?

क्या सच में न्याय हो गया? बलात्कार होने से ना रोका जा सका। बलात्कार के बाद कानूनी लड़ाई में भी सहयोग ना दिया जा सका। ना ही प्रशासन और ना ही न्यायिक व्यवस्था की जवाबदेही तय की जा सकी। जमानत पर छूटे आरोपी खुलेआम घूम रहे थे फिर भी पीड़िता को सुरक्षा मुहैया नहीं कराई जा सकी। अब फिर किसी को ज़िंदा जलाया गया है । तो एक काम करो एक और एनकाउंटर कर दो। फिर से देश वाहवाही देगा, फिर देश जश्न मनाएगा, फिर पीड़िता को न्याय मिल जाएगा। इसके बाद फिर अगले अवसर के लिए तैयारी शुरू भी कर देना क्योंकि सुरक्षा तो देने से रहे फिर कोई न कोई जलेगा ही, गोली रिवॉल्वर में लोड रखना हमेशा। और हाँ! एक सवाल का जवाब भी ढूंढ़ते रहना कि क्या सच मे न्याय हो गया? समझ पाओ तो समझ लेना, बात यहाँ क्राइम रोकने की है ना कि क्राइम होने के बाद न्याय की फिल्मी स्क्रिप्ट लिखने की। ना ही उस चीज़ के लिए तालियां बटोरने की जिसे होने ही नहीं देना था, ना ही तालियां बजा कर शोर मचाने की क्योंकि इस शोर की अवधि बड़ी कम होती है। प्रश्न इस समाज के हर सदस्य को अपने आप से पूछने की आवश्यकता है कि कहाँ चूक हो रही है। हालात ये हैं कि सभी ने ए

D-16 : साउथ की परफेक्ट सस्पेंस थ्रिलर फिल्म

Dhuruvangal Pathinaaru (D-16) मैं हॉटस्टार पर ऐसे ही रोज की तरह कोई फिल्म ढूंढ़ रहा था अचानक से मेरी नज़र 'धुरुवंगल पथिनारू यानी डी-16' फिल्म पर गई। नज़र पड़ते ही मैंने देखना शुरू नहीं किया क्योंकि मैं जब भी कोई ऐसी फिल्म देखता हूँ जिसका नाम पहली बार सुना हो तो पहले उसके बारे चेक करता हूँ कि ये फिल्म देखने लायक है या नहीं। इसपर रेस्पॉन्स अच्छा दिखा तो सोचा देख लूं। पिछले दिनों मैंने बहुत सी साउथ फिल्मों के बारे में जानकारियां जुटाई, उनके बारे में पढ़ा, साउथ की फिल्म्स को लेकर थोड़ी छानबीन भी की ये इसलिए क्योंकि साउथ फिल्मों को लेकर एक मिथ है कि साऊथ में जो टीवी पर मसाला फिल्में दिखती हैं केवल उसी तरह की फिल्में बनती हैं। लेकिन अब इस धारणा से बाहर आना चाहिए। साउथ में कुछ बेहतरीन फिल्में ऐसी हैं जो हमारी पहुंच से दूर हैं क्योंकि बाजार उन्हें स्वीकार नहीं करता। हिंदी में वहीं ज्यादातर उपलब्ध हैं जो आप आये दिनों टीवी पर देखते रहते हैं। कुछ अच्छी फिल्में भी उपलब्ध हैं जो इन रेगुलर मसाला फिल्मों से अलग हैं लेकिन अधिकतर लोगों को उनके बारे में पता ही नहीं और जब पता नहीं तो देखने का रि

मोदी जी? जवाब चाहिए

तो मोदी जी की इस तस्वीर पर ढ़ेर सारे मीम, ढ़ेर सारे भक्तिमय पोस्ट और ढ़ेर सारे उन क्रांतिकारी चिंतकों के पोस्ट जिन्हें लिखने और बोलने नहीं दिया जाता, को देखने और पढ़ने के बाद निष्कर्ष ये निकला कि मोदी जी जो चाहते थे वो हो गया.. क्या चाहते थे ये सवा सौ करोड़ जनता अपने-अपने हिसाब से तय करे, क्योंकि मोदी जी कुछ भी कहते हैं या यूं कहें बहुत कुछ कहते हैं। _____________________________ अब बाल की खाल और थोड़े सवाल- ●स्वच्छता को किसी भी तरह से प्रोमोट करना गलत या सही? ●नौटंकी तो सब कर रहे हैं बस उचित मंच के सही प्रयोग में मोदी जी माहिर हैं सही या गलत? ●मोदी जी को कैमरे से इतना प्यार है या कैमरे को मोदी जी से? ●मोदीजी की हर एक्टिविटी दिखने से दिक्कत है या उनकी हर एक्टिविटी पर चर्चा होने से? ●क्या मोदी जी के लिए कचरा फ्रेंडली माहौल बनाया गया था? ●मोदी जी प्लास्टिक का थैला घर से मंगवाया था या वहीं पाया था? ●मोदी जी प्लास्टिक वाले थैला में से कचरा फेंक कर प्लास्टिक घर ले गए या प्लास्टिक सहित पूरा कचरा कूड़ेदान में डाल दिया? ●मोदी जी के कपड़ों पर पसीना और रेत छलावा है या हकीकत? ●मोदीजी जी

कौन सुनेगा दुःख?

क्या कोई सुनना चाहता है वृतांत दुःख का तुम्हारे दुःख का क्या कोई जानना चाहता है कारण दुःख का तुम्हारे दुःख का दुःख तुम्हारा हानिकारक है सुखी आत्माओं के लिए तुम्हारे दुःख का वृतांत उन्हें दुःखी कर देता है उन्हें उजाले से प्रेम है अंधेरा उनका शत्रु है वो अनभिज्ञ हैं इस अंधकार से वो अनभिज्ञ हैं तुम्हारे अंधकारमयी दुःख से कारण है उनके पूर्वजों द्वारा फैलाया डर हाँ! अंधकार का डर क्या अभी भी लगता है तुम्हें कोई सुनना चाहता है वृतांत दुःख का तुम्हारे दुःख का कोई जानना चाहता है कारण दुःख का तुम्हारे दुःख का।                   - दिव्यमान यती

|| फ़्रेंडमेल ||

सुनो! मेरे फ्रेंड लिस्ट की गाड़ी रुकी पड़ी है, कोई सवारी इधर न आ रही है न ही इधर से जा रही है। क्या अघोषित मंदी ने मेरी इस फ्रेंडगाड़ी को भी मंद कर दिया है? मैं इस रिक्वेस्ट-संकट से जूझ रहा हूँ। कभी-कभी महसूस करता हूँ कि जिस वक्त मैंने इसकी शुरुआत की थी तब तो इतने लंबे सफर की कल्पना नहीं कि थी तो आज क्यों मैं इस मंदी से विचलित हो रहा हूँ। लेकिन यकायक कभी किसी रोज कुछ कूल-डूड प्रजातियों की फ्रेंडगाड़ी मेरे सामने से गुजरती है जो सवारियों से खचाखच भरी पड़ी होती है, उनके गाड़ी की गुड़वत्ता दोयम दर्जे के होने के बावजूद भी। आखिर मैं इंसान ही हूँ, इसपर विचार करने से कैसे खुद को रोक लूँ। गहन विचार भी करता हूँ लेकिन किसी निष्कर्ष तक नहीं पहुंच पाता। मन कहता है इस आत्ममुग्धता से बचे रहो, विवेक कहता है इस संकट को समाप्त करो। एक अंतर्द्वंद्व निरंतर प्रभावी रहता है। इस अवस्था मे मन और विवेक के बीच तालमेल बैठाना थोड़ा कठिन मालूम पड़ता है लेकिन इनदोनों के विचारों के बीच एक अपना सशक्त विचार बनाने की कोशिश में लगा रहता हूँ। खैर! गाड़ी का रुकना ये तो नहीं दर्शाता कि वो फिर से कभी चलेगी ही नहीं, उम्मीद र

भारत को भारत रहने दो..

ये कौन-सा तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग है जो विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के जनमत को स्वीकार करने का साहस नहीं दिखा पा रहा है। आखिर किस अकड़ में,आखिर कौन-सा परम ज्ञान है जो इनको ये यकीन नहीं दिला पा रहा है कि देश की आधे से अधिक आबादी ने ये बहुमत किसी सरकार को दिया है। संविधान में विश्वास का ढ़ोंग क्यों किया जा रहा है? क्यों बार-बार अपनी राजनैतिक लाभ के लिए संवैधानिक संस्थाओं की विश्वनीयता पर ऊँगली उठाई जा रही है? केवल आरोप मात्र से आप किस बुद्धिमत्ता का परिचय दे रहें हैं? आपका संविधान में विश्वास है तो संवैधानिक तरीके से अपनी वैचारिक और राजनैतिक लड़ाई लड़िये। आलोचना और विरोध की एक लक्ष्मणरेखा तय कीजिए जिससे इस समाज और इस देश को कोई क्षति ना हो। अगर आपको लगता है केरल में बीजेपी नहीं आई तो वही एक जगह सबसे बुद्धिजीवियों का है तो ये भी जान लीजिए एक वक़्त था जब बीजेपी कहीं थी ही नहीं, शायद कुछ वर्षों बाद हो सकता है बीजेपी भी ना रहे तब भी देश और जनता वही थी और वही रहेगी। आप अपनी बुद्धिमत्ता का ढ़ोंग उन्हीं के सामने करने में सफल हो पाए जो आपके विचारों से प्रभावित हैं लेकिन देश सिर्फ विचारधाराओं से न

।। तीन किरदार ।।

कल मैं कॉलेज से लौट रहा था, यूँ तो अक्सर मैं पैदल ही अपने रूम जाया करता था लेकिन कल एक मित्र का साथ निभाने के लिए मैंने लंबे रास्ते का चुनाव किया। मेरे मित्र को मेट्रो पकड़नी थी इसलिए हमारा साथ मेट्रो तक ही रहा और चूँकि मैं थोड़े लंबे वाले रास्ते पर था इसलिए रूम पर आने के लिए मुझे ऑटोरिक्शे का सहारा लेना पड़ा। दोस्त को टा-टा, बाय-बाय बोलने के बाद मैं ऑटोरिक्शे में बैठ गया। ऑटोरिक्शे में बैठने के कुछ देर बाद मेरी नजर सामने वाली सीट पर बैठे एक बेबी कपल पर पड़ी, बेबी कपल इसलिए बोल रहा हूँ क्योंकि उनकी उम्र तकरीबन 16 या 17 साल की ही थी। लड़की कुछ परेशान सी लग रही थी और लड़का बड़ी मासूमियत से उसकी ओर देख उसे अपनेपन का अहसास दे रहा था। लड़की बार-बार उसके कंधे पर सर रखने की कोशिश कर रही थी लेकिन विश्व के महान चालकों में से एक ऑटो वाले भैया अपनी ब्रेक मारक कला से उस लड़की के इरादे पर पानी फेरे जा  रहे थे। फिर भी लड़की थोड़ी देर के लिए ही सही अपने प्रेमी के कंधे पर सर रखने में कामयाब हो ही जाती थी। लड़की जब उस लड़के के कंधे पर सर रखती लड़का उसके सर पर हाथ फेर उसे आराम देने की कोशिश करने लगता।

Kesari Movie Review : 36 सिख बटालियन के 21 सिखों की बेहतरीन शौर्य गाथा

कलाकार-  अक्षय कुमार, परिणीति चोपड़ा, राकेश चतुर्वेदी, विक्रम कोचर, इत्यादि लेखक- गिरीश कोहली निर्देशक- अनुराग सिंह रेटिंग-⭐⭐⭐⭐ Kesari Movie Review : इतिहास में कई ऐसी महान घटनाएं हैं जिनके बारे में आम लोगों को बहुत कम या ना के बराबर जानकारी होती है। सिनेमा ऐसा साधन है जिसकी पहुँच आम इंसान तक है और सिनेमा अपने माध्यम से लोगों के बीच ऐसी कहानियां मनोरंजक तरीके से हमेशा से पहुंचाता रहा है। अक्षय कुमार की फिल्म केसरी भी इतिहास की एक ऐसी ही महान गाथा का सिनेमाई संस्करण है। एक ऐसी गाथा जिसने सबको आश्चर्यचकित कर दिया था। फिल्म की कहानी शुरू होती है हवलदार ईशर सिंह (अक्षय कुमार) और उनके साथी गुलाब सिंह (विक्रम कोचर) के हंसी-ठिठोलों से। दोनों ही अफगानिस्तान और भारत की सीमा पर स्थित गुलिस्तान के किले में तैनात रहते हैं जहाँ अफगानों की नज़र रहती है। एक दिन सीमा पर एक मौलवी (राकेश चतुर्वेदी) के साथ भारी संख्या में अफगानी, एक औरत को उसके पति की खिलाफत करने के जुर्म में उसका गला काटने की कोशिश करते हैं। जिसे ईशर सिंह बर्दाश्त नहीं कर पाता है और अंग्रेज अफसरों के मना करने के बावजूद उस

।। तुम्हें बुखार है।।

|| तुम्हें बुखार है || शरीर का एक-एक हिस्सा दर्द से जूझ रहा है, वातावरण ठंडा तो शरीर गरम प्रतीत हो रहा है। ऐसा लग रहा है जैसे सर पर एक भारी गठरी किसी ने मेरी इजाज़त के बगैर रख दी है। आँखों की चुभन खट्टे-मीठे एहसास दिला रही है। कानों में अजीब सी खामोश आवाजें दस्तक दे रही हैं। नाक निरंतर हो रहे जल प्रवाह का गवाह बना हुआ है। सूखे होंठ कपकपा रहे हैं मानों ये होंठ बिना किसी कसूर के सजा भुगत रहे हों। स्वर भारी हो चले हैं जैसे गज़ल गाने की तैयारी कर रहे हों। मन में असंख्य सवाल समंदर की लहरों की भांति हलचल मचा रहे हैं।  इस व्यथा को सुन कर सब एक ही बात बार-बार बोल रहे हैं,"तुम्हे बुखार है।" PC- Google

May I help you? ( मे आई हेल्प यू?)

Womans_day_special  Short story (लघुकथा)👇 ●May i help you (मे आई हेल्प यू) बस स्टॉप पर खड़े हुए बहुत समय हो गया था, वहां बहुत से लोग बस का इंतज़ार कर रहे थे, मै भी उन लोगों में से एक था जिसे बस का बेसब्री से इंतजार था। मैंने देखा मुझसे कुछ दूर पर खड़ी एक लड़की जो थोड़ी जानी-पहचानी सी लग रही थी, बहुत वक़्त से कुछ बेचैन सी थी, शायद उसे कोई परेशानी थी। मुझे बार-बार ये एहसास हो रहा था कि वो मुझसे कुछ कहना चाहती थी लेकिन संकोचवश कुछ कह नहीं पा रही थी। शायद वो मुझे अच्छे से पहचानती भी थी। उसने आख़िरकार मुझसे आ कर बोल ही दिया, "आप विजयनगर कॉलोनी में रहते हैं ना" मैंने जवाब दिया,"हाँ मै वही रहता हूँ", "मैंने आपको देखा है वहां", उस लड़की ने कहा, "आपका घर मंटू के किराने की दुकान के पास है। मैंने हाँ में जवाब दिया और उससे पूछ लिया, "तुम्हे क्या कोई परेशानी है, बहुत देर से देख रहा हूँ कुछ परेशान लग रही हो।" ये सुनते ही उसने तपाक से जवाब दिया, "आप ये जानते हुए भी कि मै बहुत परेशान हूँ, अकेली हूँ, फिर भी आपने मुझसे पूछना जरूरी नहीं समझा।

Rahul Dravid : वो दीवार जिसे कोई ना भेद पाया, महान राहुल द्रविड़

# महान_राहुल_द्रविड़  महान सिर्फ इसलिए नहीं कि उन्होंने इतने ढ़ेर सारे रन बनाएं, इतने ढ़ेर सारे कैच पकड़े, भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान भी रहे। बल्कि महान इसलिए कि ये जो इतने सारे रन बनाए ये उन मुश्किल हालातों में बनाएं जहाँ रन बनाना किसी पहाड़ तोड़ने से कम नहीं था, ये ढ़ेर सारे कैच ऐसे कैच थे जिन्हें पकड़ पाना आम फील्डर के बस की बात नहीं थी और कप्तान उन हालातों में रहे जब भारतीय टीम बुरे हालात में थी। जब भारतीय टीम के पुतले फूंके जा रहे थे, जब खिलाडियों के घरों पर हमले किये जा रहे थे। इन सब से अलग एक बेहद ही सौम्य और शांत खिलाड़ी जब आक्रामक होता था तब अपने बल्ले से निकली 'टक' की आवाज से विरोधियों के गालों पर थप्पड़ मारता था। जिससे उलझने से पहले गेंदबाज ये सोचता था कि इसका भुगतान हमें लंबी पारी के रूप में भुगतना पड़ सकता है। लोगों के चौकों-छक्कों की चर्चाओं के बीच एक ऐसा शख्स था जिसके डिफेंस की चर्चा होती थी, जिससे कट शॉट की चर्चा होती थी। मेरा क्रिकेट का लगाव कितना पुराना है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि मैं इस खिलाड़ी के सबसे महत्वपूर्ण और महान दौर का गवाह बना। जिस दि

2018 विशेष... 2019 शेष

पुराने वर्ष में बहुत सी बातें हुई, बहुत अच्छे-अच्छे लोगों से मुलाकातें भी हुई। जिन्हें दूर से जानता-समझता था उनके करीब आकर उन्हें जानने-समझने का मौका मिला.. कुल मिलाकर वर्ष 2018 मेरे लिए खास इसलिए रहा क्योंकि इस वर्ष मैंने हर चीज़ का थोड़ा-थोड़ा स्वाद लिया, थोड़ी खुशियां, थोड़ा ग़म, थोड़ा साहस, थोड़ा डर।  बहुत सारे दोस्त मिले, इनमें से कुछ बहुत अच्छे दोस्त बने। दिल्ली आने की ख्वाहिश थी और दिल्ली के करीब आ भी गया। कभी-कभार दिल्ली आना-जाना भी लगा रहता है। दिल्ली के दिल में जगह बनाने की पुरजोर कोशिश चल रही है और भरोसा है ये कोशिश जल्द ही कामयाब होगी। इस वर्ष की हर बात खास रही, शुरुआत तो बड़ी नीरस हुई थी,एक निराश-हताश डरे हुए दिव्यमान के साथ जिसमें आत्मविश्वास नाम की कोई चीज़ ही नहीं थी। जो हालातों से डर रहा था। जो दुनिया से भाग रहा था, अपने परिवार-रिश्तेदार से भाग रहा था। बचपन के दोस्तों के साथ चाह कर भी अपने दिल की बात नहीं कह पा रहा था। लेकिन वक़्त ने करवट ली और उसे 3 साल के लंबे इंतजार के बाद दिल्ली के करीब आने का मौका मिला। जो लड़का आजतक कोई एंट्रेन्स एग्जाम पास