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।। तीन किरदार ।।






कल मैं कॉलेज से लौट रहा था, यूँ तो अक्सर मैं पैदल ही अपने रूम जाया करता था लेकिन कल एक मित्र का साथ निभाने के लिए मैंने लंबे रास्ते का चुनाव किया। मेरे मित्र को मेट्रो पकड़नी थी इसलिए हमारा साथ मेट्रो तक ही रहा और चूँकि मैं थोड़े लंबे वाले रास्ते पर था इसलिए रूम पर आने के लिए मुझे ऑटोरिक्शे का सहारा लेना पड़ा। दोस्त को टा-टा, बाय-बाय बोलने के बाद मैं ऑटोरिक्शे में बैठ गया। ऑटोरिक्शे में बैठने के कुछ देर बाद मेरी नजर सामने वाली सीट पर बैठे एक बेबी कपल पर पड़ी, बेबी कपल इसलिए बोल रहा हूँ क्योंकि उनकी उम्र तकरीबन 16 या 17 साल की ही थी। लड़की कुछ परेशान सी लग रही थी और लड़का बड़ी मासूमियत से उसकी ओर देख उसे अपनेपन का अहसास दे रहा था। लड़की बार-बार उसके कंधे पर सर रखने की कोशिश कर रही थी लेकिन विश्व के महान चालकों में से एक ऑटो वाले भैया अपनी ब्रेक मारक कला से उस लड़की के इरादे पर पानी फेरे जा  रहे थे। फिर भी लड़की थोड़ी देर के लिए ही सही अपने प्रेमी के कंधे पर सर रखने में कामयाब हो ही जाती थी। लड़की जब उस लड़के के कंधे पर सर रखती लड़का उसके सर पर हाथ फेर उसे आराम देने की कोशिश करने लगता। यकीन कीजिए दोनों इतने मासूम दिख रहे थे कि किसी को भी उनकी मासूमियत भा जाये
मैं उन्हें इस तरह देखने की कोशिश कर रहा था कि वो मेरे देखने से खुद को असहज न महसूस करें। वैसे उस बेबी कपल के जज्बे और एक दूसरे के प्रति समर्पण को देखकर लग रहा था कि उन्हें इस बात की परवाह भी नहीं होगी कि कौन उन्हें कैसे या किस तरह से देख रहा है।
खैर! हम तीनों के अलावा एक और इंसान उस ऑटोरिक्शे में मौजूद था जो उस बेबी कपल के ठीक बगल में बैठा था। जिसने मुझे उन मासूमों की ओर से ध्यान हटाने पर मजबूर कर दिया।
वही था तीसरा किरदार। वो आदमी मेरे ऑटो में बैठते वक़्त दो काम एक समान गति से कर रहा था पहला गुटखा चबाने का काम और दूसरा उस बेबी कपल को घूरने का। वो लगातार उन दोनों को घूरे जा रहा था। मेरे और उसके देखने में फ़र्क सिर्फ इतना था कि मैं उन्हें असहज न करने की नजर से देख रहा था और वो उन्हें असहज करने की नजर से देख रहा था। लड़की मोबाइल में कुछ बार-बार देख रही थी और अपने उस साथी को भी दिखा रही थी। जब-जब वो अपने साथी को मोबाइल दिखाती तब-तब वो तीसरा किरदार भी उनके मोबाइल में बराबर ताक-झाँक करता रहता था। वो तीसरा किरदार जिसके बारे में उस छोटी सी यात्रा में मैं कोई राय न बना पाने की स्थिति में था उसने अपने मोबाइल पर किसी से बात करते वक़्त भी उस बेबी कपल को घूरना छोड़ा नहीं। वो उनपर ऐसे नज़र गड़ाए बैठा था जैसे अगर वो उनदोनों की एक भी गतिविधि को मिस कर देता तो उसे जीवन में भारी नुकसान उठाना पड़ता। घटना कुछ स्वाभाविक लग रही थी और कुछ अस्वाभाविक भी। कुछ देर में मेरा स्टॉप आ गया, मैं उस ऑटो से उतरते वक़्त उन तीनों इंसानों को तो वहीं ऑटोरिक्शे में छोड़ आया लेकिन जो नहीं छोड़ पाया वो थे तीन किरदार। वो घटना और वो तीनों किरदार मेरे मन में बराबर चल रहे थे, लेकिन मैं उन तीनों किरदारों के बारे में कोई विचार नहीं बना पा रहा था, इसलिए मैंने उनके बारे में विचार बनाने से बेहतर उन्हें हूबहू प्रस्तुत करने का विचार बनाया।
                                                 - दिव्यमान यती
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Comments

  1. Real story..........saare couple ko is tarah ke logo se palaaa pd hi jata h.
    Too good Divya bhaaiii.....apne bhawnao ko shabdo me dhalnaaa sb ke maan ka ni hota.
    Kabile tarif

    ReplyDelete
  2. Bhut hi rochak n sachhi story. Divy.. U R really DIVY.

    ReplyDelete

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