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Showing posts from 2018

2.0 Movie Review : 2.0 वीएफएक्स है असली हीरो

कलाकार- रजनीकांत, अक्षय कुमार, एमी जैक्सन, आदिल हुसैन, इत्यादि लेखक और निर्देशक - शंकर अवधि - 2 घंटा 30 मिनट रेटिंग - 3.5/5 आज दर्शकों की अपेक्षाएं इतनी ज्यादा बढ़ गयी हैं कि उनकी पसंद के स्तर तक पहुँच पाना आज के फ़िल्म निर्माताओं की सबसे बड़ी चुनौती बन चुकी है। हॉलीवुड की हजारों करोड़ की फिल्मों से भारत की फिल्मों की तुलना थोड़ी बेमानी तो लगती है लेकिन दर्शक ना चाहते हुए भी वही उम्मीद लगा बैठते हैं। ठीक वही उम्मीद 2.0 फ़िल्म के साथ दर्शकों ने लगा रखी थी। फ़िल्म रिलीज़ भी  हो गयी और दर्शकों के बीच आ भी गयी। जहाँ दर्शक आजकल लगभग 3000 हजार करोड़ की बनी हॉलीवुड की 'एवेंजर इनफिनिटी वार' देख रहे हैं। वही दूसरी ओर लगभग 550 करोड़ में बनी भारतीय फ़िल्म 2.0 क्या उनकी उम्मीदों पर खरी उतर पाती है? आइये जानने की कोशिश करते हैं। कहानी- फ़िल्म की कहानी शुरू होती है एक ओनिर्थोलॉजिस्ट यानी पक्षियों के विशेषज्ञ वैज्ञानिक पक्षी राजन (अक्षय कुमार) की मोबाइल टॉवर पर चढ़ कर आत्महत्या करने से। जिसके बाद पूरे शहर से मोबाइल फोन अचानक से गायब होने लगते हैं। फिर प्रोफेसर वशीकरण (रजनीकांत) को इस आश

संगिनी - लघुकथा

उस सर्द रात में मैं अपने गुस्से वाली गर्मी को ज्यादा देर तक बरकरार नहीं रख पाया, जितनी भी गर्मी थी मेरे दिमाग में सब इन ठिठुरन भरी सर्द हवाओं ने ठंडा कर दिया था। सोच रहा था आखिर ये गुस्सा मुझे इस वक़्त ही क्यों आया, बेबस निगाहों से मैं दरवाजे की तरफ देख रहा था और सोच रहा था, "अब वो आयेगी, अब वो आयेगी।" बहुत देर हो गयी इतने देर में तो उसका भी गुस्सा शांत हो जाना चाहिये था, लगता है ये ठंडी हवायें जिन्होंने मेरे गुस्से को ठंडा कर दिया, अंदर उसके पास तक नहीं पहुँच पा रही। "मेरा भी न अपने गुस्से पर काबू नहीं रहता,अब भुगतो! लगता है आज की रात बाहर ही बितानी पड़ेगी" मै खुद से बाते करते हुए बुदबुदा रहा था। अचानक दरवाजे के खुलने की आवाज आयी दरवाजे की तरफ देखा तो दरवाजे पर मेरी बिटिया थी, उसने मेरी खिंचाई करते हुए पूछा,"क्यों पापा मजे में हो?" मैंने बेबसी और लाचारी भरे स्वर में उससे पूछा,"अंदर का माहौल कैसा है?" "बहुत गर्मी है अंदर पापा" मेरी बेटी ने शैतानी वाले अंदाज़ में जवाब दिया, "आज रात तो यहीं काटनी पड़ेगी आपको।" मै अभी कुछ

फ़िल्म समीक्षा:- ओ स्त्री! तुम जितनी डरावनी हो, उतनी ही खूबसूरत भी हो..

कलाकार- राजकुमार राव, श्रद्धा कपूर, पंकज त्रिपाठी, अपारशक्ति खुराना, अभिषेक बनर्जी, विजय राज, अतुल श्रीवास्तव लेखक- राज और डीके निर्देशक- अमर कौशिक अवधि- 2 घंटा 10 मिनट रेटिंग- 4/5 जब बात आती है कि बॉलीवुड की पिछली हॉरर-कॉमेडी फ़िल्म कौन सी है तो नाम आता है गोलमाल-अगेन, लेकिन ताजा रिलीज स्त्री की तुलना गोलमाल-अगेन से करना थोड़ी बेमानी होगी क्यूंकि ये फ़िल्म एक हॉरर-कॉमेडी के साथ-साथ एक महत्वपूर्ण संदेश भी देती है। फिल्म की कहानी शुरू होती है मध्यप्रदेश के चंदेरी नामक स्थान से,जहाँ के हर घर पर लिखा होता है, "ओ स्त्री! कल आना" चूँकि उस गाँव में लोगों का कहना है कि पूजा के चार दिन के वक़्त में 'स्त्री' नामक चुड़ैल आती है और मर्दों को उठा कर ले जाती है, बस कपड़े छोड़ जाती है। उसी गाँव में एक नये ज़माने का नया दर्जी रहता है विक्की (राजकुमार राव)। उसके दो दोस्त हैं बिट्टू (अपारशक्ति खुराना) और जना (अभिषेक बनर्जी)।  विक्की की मुलाकात एक गुमनाम लड़की (श्रद्धा कपूर) से होती है जो हर साल पूजा के वक़्त ही आती है। उस लड़की से विक्की को प्यार हो जाता है लेकिन विक्की के दोस

देश के भविष्य की धुंधली तस्वीर

हमारा देश 72वां स्वतंत्रता दिवस मनाने की तैयारी कर रहा है। जहां देश की बड़ी-छोटी सभी संस्थाओं में स्वतंत्रता की कहानियां सुनाई जायेंगी तथा स्वतंत्रता मायने समझाये जायेंगे, वहीं एक ओर आजादी के 71 वर्ष बाद मुजफ्फ रपुर -देवरिया जैसे कांड एक सभ्य देश की महानता में धब्बा लगा रहे हैं। पहले मुजफ्फरपुर और फिर देवरिया शेल्टर होम से आने खबरों ने लोगों को आश्चर्यचकित कर दिया है। जब देवरिया शेल्टर होम से एक 10 साल की लड़की भागकर थाने पहुंची और उस लड़की ने शेल्टर होम में चल रहे वेश्यावृत्ति का खुलासा किया, तब पुलिस प्रशासन ने देवरिया के उस बाल और महिला संरक्षण गृह पर छापा मार वहां मौजूद 24 लड़कियों को रिहा कराया। हालांकि उस शेल्टर होम की और 18 लड़कियां गायब थी, जिनकी तलाश अभी भी जारी है। मुजफ्फरपुर और देवरिया कांड से पूरा देश आक्रोशित है,और हो भी क्यों ना समाज कल्याण की आड़ में में समाज के कुछ ठेकेदारों द्वारा समाज को शर्मसार करने वाला कार्य किया जा रहा है। आए दिनों  देश में बाल यौन शोषण की घटनाएं सामने आ रही हैं। यह परिस्थिति बेहद ही देश के लिये चिंताजनक है। आखिर क्या वजह है जो एक सभ्य समाज म

।।बंगाल से लावारिस लाश।।

नमस्कार! मै बंगाल से लावारिस लाश बोल रही हूँ.. मेरी कफ़न भी उसी रंग की है जिस रंग की यूपी, बिहार, दिल्ली,पंजाब,महाराष्ट्र इत्यादि राज्यों की लाशों की होती हैं। "जस्टिस फॉर बंगाली लाश" क्यों नहीं? मेरे लिए सच्ची छोड़ो वो झूठी राजनीतिक हमदर्दी क्यों नहीं? सुना है आप लोकतंत्र और संविधान के रक्षक हैं, क्या मेरी मौत संविधान के दायरे में नहीं आती क्या? क्या मेरी मौत संविधान ज़ायज ठहराता है? क्या मेरे घर में लगी आग की तपिश दिल्ली तक नहीं पहुँच पाती? अगर है तो मेरी चीख,मेरी तड़प क्यों नहीं सुनाई देती? क्यों मेरी मौत पर शोर नहीं होता? क्यों मेरी लटकी लाश के सच को झुठलाया जाता है? मुझे भी भीड़ ही मारती है फिर क्यों इस मौत की भर्त्सना कोई नहीं करते? क्यों फिर तुम्हे देश में असहिष्णुता नहीं दिखती? तुम मेरी क़ब्र पर अपना सुंदर आलीशान साम्राज्य स्थापित कर राजनीति-राजनीति क्यों खेलते हो? क्यों, आखिर क्यों? आपसे निवेदन है कि अगर इन सवालों का जवाब मिले तो मेरी मौत के साथ बिखर चुके मेरे परिवार को अवश्य दे देना।                                  ~ दिव्यमान यती

बम ब्लास्ट विशेष~।। जाने कहाँ गए वो दिन।।

।। जानें कहाँ गए वो दिन।।   (बम ब्लास्ट विशेष) पहले आये दिनों नए-नए शहरों में बम ब्लास्ट हुआ करते थे, इससे नए-नए शहरों के बारे में सुनने को मिलता था, नए-नए आतंकवादियों के नाम और उनसे जुड़ी दिलचस्प कहानियां सुनने को मिलती थी, कब, कहाँ, कितने जगहों पर कौन-कौन से बम फोड़े गए और उन बम में कौन-कौन सी सामग्री उपयोग में लायी गयी उसकी जानकारियां मिलती थी। जनसंख्या में कुछ हद तक नियंत्रित भी होती थी। लोगों के घरों में रिश्तेदारों का आवागमन भी होता रहता था मातम वाले उत्सव के कारण। लोग घरों से निकलते थे तो मन रोमांचित रहता था कि कब और कहाँ बम फूटे और एक रोमांचकारी मौत आ जाये। बस स्टैंड, रेलवे स्टेशन, मॉल और पार्क इत्यादि जगहों पर हाथ में बैग लिए खड़े व्यक्ति पर संदेह करते हुए खुफिया अफसर वाले एहसास आते थे। आज इन सारे रोमांच और सामान्य ज्ञान से हम वंचित हैं क्यों? क्योंकि सेना ने आतंकवादियों को सीमा पर रोक रखा है जिनकी दिलचस्प कहानियां उधर ही किसी कोने में दफ़्न हो जाती हैं, सुरक्षा एजेंसी ने सारे नेटवर्क ध्वस्त कर दिए हैं, वो बैग वाले किरदार दिखाए तो देते हैं लेकिन उनपर अब संदेह नहीं हो पाता कि

।। तूफ़ान भाई आये थे? ।।

।। तूफ़ान भाई आये थे? ।। पिछले दो दिनों से उमस ने जीना हराम किया हुआ था, ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो पुरे साल की गर्मी इन्हीं कुछ दिनों में ही पड़ जायेगी। खैर गर्मी और उमस से तो लड़ना-भिड़ना चलता रहा, कभी पंखे की गरम हवा से तो कभी तौलिये से लगातार निकल रहे पसीने को सुखाता रहा। इतने से भी संतुष्टि ना मिलने पर अवसर निकाल कभी चेहरे को तो कभी पुरे शरीर को पानी से भिंगाता रहा। पिछले कुछ दिनों से तूफ़ान की खबर तूफ़ान की ही भाँति सोशल मीडिया में जोर-जोर से चल रही थी, कुछ लोगों को तूफ़ान के वक़्त पर आने का इंतजार इसलिये था ताकि वो तूफ़ान का आनंद ले सके और कुछ लोगों को तूफ़ान का वक़्त से आने का सिर्फ इसलिए इंतजार था कि वो अपनी बाँस की कुछ बल्लियों (टुकड़ों) से बने अशियानें को बचाने के लिए पूरी तैयारी कर पाये क्योंकि पिछले दिनों आये तूफ़ान के प्रकोप से अभी ठीक से उबार भी नहीं पाये थे कि एक नए तूफ़ान का ख़बर उन्हें डराये हुए है। फिलहाल इंतजार तो इंतजार ही रह गया,ये लोग खुश तो हैं लेकिन आधे-अधूरे मन से क्योंकि तूफ़ान अगर बिना बताये आ गया तो फिर उन्हें सँभलने का मौका भी नहीं मिलेगा। मै कल रात आईपीएल मैच देखने के

एडवेंचरस शौच

वो सुबह-सुबह उठकर लोटे में पानी लिए कच्ची-पक्की, मोटी-पतली पगडण्डी से होते हुए अपने परम मित्रों के साथ दूर सरेह (जहाँ दूर-दूर तक खेत हों) में एडवेंचरस शौच के लिए जाना अब इतिहास की बातें हो गयी। खुले में शौच की पुरानी दास्ताँ अपने आने वाली पीढ़ी को सुनाया जायेगा क्योंकि हमारा वो एडवेंचर इस समाज के लिए हानिकारक था। #खुले_में_शौच #स्वच्छ_गाँव #दिव्य

◆वो सरकार बनाये जा रहे हैं◆

◆ वो उपचुनाव जीतते जा रहे हैं, ये सरकार बनाये जा रहे हैं। वो इटली घुमे जा रहे हैं, ये जनता को संबोधित किये जा रहे हैं। वो शूट-बूट छोड़ सूती में वोट मांगे जा रहे हैं, ये भगवा शूट-बूट में जनता के वोट हथिया रहे हैं। अब उनकी खटिया छोड़ो, उनके रस्सी घिसे जा रहे हैं, नया विपक्ष खड़ा करो, पुराने अब पीछे छूटे जा रहे हैं। अब भरम से बाहर निकलो भैया, जनता जाग रही है अच्छे-बुरे में फ़र्क अब नेताओं को समझाये जा रहे हैं।                        ~ दिव्यमान यती

आओ! होली कुछ ऐसे मनाते हैं

◆आओ! होली कुछ ऐसे मनाते हैं◆ आओ! होली इसबार साथ मनाते हैं, एक-दूसरे को गुलाल लगा कर, नफ़रत की होली खेलने वालों को मोहब्बत की होली सिखाते हैं.., आओ! होली कुछ ऐसे मानते हैं, पुरे देश को लाल, हरा, पीला, केसरिया हर रंग में रंगवाते हैं। इन रंगों वाले मज़हब को रंगों में मिलाते हैं, गले मिल, गुलाल लगा कर गिले-शिकवे मिटाते हैं आओ! होली कुछ ऐसे मनाते हैं। एक ही सुर,लय, ताल में फागुन के गीत गाते हैं, कुछ तुम हमें, कुछ हम तुम्हें इन रंगों का मतलब बताते हैं, होली की दिलचस्प कहानियाँ बुजुर्गों के पिटारों से निकलवाते हैं। आओ! होली कुछ ऐसे मानते हैं। #दिव्यहोली

मंदिर\मस्जिद वही बनायेंगे...

हम जमीन क्यों छोड़े वो जमीन हमारी है, वहां मेरा खुदा\भगवान रहेगा। हम मंदिर\मस्जिद वही बनायेंगे, हम शांति प्रिय कौम\धर्म हैं लेकिन हम पीछे नहीं हटेंगे भले ही हमें अपना खून ही क्यों ना बहाना पड़े। हाँ भाई हमारा ईश्वर\अल्लाह इसी इंतजार में तो है हम अपने खून को बालू में मिलाकर अपनी अस्थियों को परत दर परत सजा कर एक बहुत ही सुन्दर शांति का सन्देश देने वाला मंदिर\मस्जिद बनायेंगे। ईश्वर\खुदा तो हमारी लाशों पर अपना आसन चाहता है। #मंदिर_मस्जिद #भगवान_खुदा (अफसोस तुम अपने भगवान\खुदा को समझ ही नहीं पाये वो कब का तुम्हारी नफ़रतों की दुनिया से दूर चले गए उन्हें वापस बुलाना है या नहीं ये तुम पर ही निर्भर है)🙏🙏🙏🙏 #दिव्यमान

●आज़ाद ज़िस्म गुलाम सोच●

                ●आज़ाद ज़िस्म गुलाम सोच● जिस तिरंगे के लिये देश की सरहद पर  जवान ख़ुशी-ख़ुशी गोली खा लेते हैं आज वही तिरंगा देश के अंदर ही एक व्यक्ति की मौत की वजह बन गया। आपके पास तिरंगा है तो उसे घर में रखिये बाहर लेकर निकले तो आप पर पत्थर फेकें जायेंगे, गोलियाँ भी चलायी जा सकती हैं। आज़ादी के लिये हमारे स्वतंत्रता सेनानी तिरंगे को थामें अंग्रेजों से लोहा लेते थे वो आज़ादी के वक़्त की बात थी वो बात पुरानी हो गयी आज नया दौर है और भाई नयी कहानी भी तो लिखनी है। हम 'वन्देमातरम' क्यों बोले, हम 'भारतमाता की जय' भी क्यों बोले, हम तो राष्ट्रगान पर भी नहीं खड़े होंगे, ये सब आजादी से पहले स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा किया जाता था।आज हम आज़ाद हैं हम अपनी मर्जी का करेंगें। वो आज़ादी के वक़्त की बात थी जब लोगों का मजहब या धर्म एक था "आज़ादी"। आज मजहब और धर्म अलग है भाई, कितनी बार कहा जाये भाईचारे की बात बार-बार ना किया करो। आज 'खान' का भाई 'खान' है और 'पाण्डेय' का भाई 'पाण्डेय' है। हम आजाद हैं.. हम आजाद हैं..हाँ हम आजाद हैं हम आग लगाएंगे, हम