कलाकार- राजकुमार राव, श्रद्धा कपूर, पंकज त्रिपाठी, अपारशक्ति खुराना, अभिषेक बनर्जी, विजय राज, अतुल श्रीवास्तव
लेखक- राज और डीके
निर्देशक- अमर कौशिक
अवधि- 2 घंटा 10 मिनट
रेटिंग- 4/5
लेखक- राज और डीके
निर्देशक- अमर कौशिक
अवधि- 2 घंटा 10 मिनट
रेटिंग- 4/5
जब बात आती है कि बॉलीवुड की पिछली हॉरर-कॉमेडी फ़िल्म कौन सी है तो नाम आता है गोलमाल-अगेन, लेकिन ताजा रिलीज स्त्री की तुलना गोलमाल-अगेन से करना थोड़ी बेमानी होगी क्यूंकि ये फ़िल्म एक हॉरर-कॉमेडी के साथ-साथ एक महत्वपूर्ण संदेश भी देती है।
फिल्म की कहानी शुरू होती है मध्यप्रदेश के चंदेरी नामक स्थान से,जहाँ के हर घर पर लिखा होता है, "ओ स्त्री! कल आना" चूँकि उस गाँव में लोगों का कहना है कि पूजा के चार दिन के वक़्त में 'स्त्री' नामक चुड़ैल आती है और मर्दों को उठा कर ले जाती है, बस कपड़े छोड़ जाती है।
उसी गाँव में एक नये ज़माने का नया दर्जी रहता है विक्की (राजकुमार राव)। उसके दो दोस्त हैं बिट्टू (अपारशक्ति खुराना) और जना (अभिषेक बनर्जी)। विक्की की मुलाकात एक गुमनाम लड़की (श्रद्धा कपूर) से होती है जो हर साल पूजा के वक़्त ही आती है। उस लड़की से विक्की को प्यार हो जाता है लेकिन विक्की के दोस्त इस लड़की को ही स्त्री समझते हैं। गाँव में एक ज्ञानी पुरुष भी हैं रूद्र (पंकज त्रिपाठी) जो स्त्री से बचने के चार सूत्रीय उपाय बताते रहते हैं। एक दिन विक्की के दोस्त जना को स्त्री उठा ले जाती है। इसके बाद विक्की और बिट्टू जना को ढूंढ़ना शुरू करते हैं। उन्हें रूद्र के यहाँ स्त्री के बारे में छपी के एक किताब के लेखक (विजय राज) के बारे में पता चलता है और वो सब उस लेखक से मिलने के बाद स्त्री के खिलाफ लड़ाई का आह्वान करते हैं। क्या स्त्री को विक्की और उसके दोस्त हरा पाते हैं? क्या वो सभी मर्दों को छोड़ देती है? इन सवालों के जवाब के लिये आपको सिनेमाघर का रुख़ करना पड़ेगा।
फ़िल्म की जान फ़िल्म की कहानी के साथ-साथ फ़िल्म के संवाद और उसके स्टारकास्ट का अभिनय भी हैं। फिल्म का स्क्रीनप्ले अच्छा लिखा हुआ है और लोकेशन भी दर्शकों की दिलचस्पी बढ़ाते हैं। अमर कौशिक ने फिल्म को कही भी ढ़ीला नहीं पड़ने दिया है। राज और डीके ने जो संवाद लिखे हैं वो फ़िल्म को और मजेदार बनाते हैं। फिल्म का म्यूजिक ठीक-ठाक है जिसे युवाओं को ध्यान में रखकर बनाया गया है, फिल्म का बैकग्राउंड म्यूजिक भी अच्छा है जो दर्शकों को समय-समय पर डराने में कामयाब रहता है। जहाँ तक अभिनय की बात है तो राजकुमार राव अब एक ऐसे अभिनेता हो गए हैं जिन्हें आप कोई भी किरदार दे दें वो उसी में रम जायेंगे, इस फ़िल्म के हर फ्रेम में वही छाये हुए हैं। पंकज त्रिपाठी की एंट्री कमाल की है, स्क्रीन पर उनकी मौजूदगी और उनकी भाव-भंगिमायें आपको हंसाने के लिए काफी हैं। श्रद्धा कपूर अपने रोल में ठीक-ठाक हैं उनका किरदार थोड़ा विचित्र था जो खुल के सामने नहीं आ पाया। विजय राज बस एक ही फ्रेम में नजर आये और बस दिल जीत कर चले गए। बाकी कलाकारों में अपारशक्ति, अभिषेक और विक्की के पिता के रोल में अतुल श्रीवास्तव ने भी अपनी छाप छोड़ी है।
फिल्म का पहला हॉफ बहुत ही मजेदार है, दूसरा हॉफ पहले हाफ की अपेक्षा थोड़ा ढ़ीला है लेकिन फिर भी निर्देशक ने दर्शकों की दिलचस्पी कायम रखी है। हाँ फ़िल्म का क्लाइमेक्स और श्रद्धा कपूर का किरदार कुछ लोगों के लिए थोड़ी उलझने पैदा कर सकता है। इस फ़िल्म की सबसे खास बात यह है कि ये फ़िल्म आपको डराते-डराते अचानक से हंसा देती है और हंसाते-हंसाते डराती भी है। अगर आपको संदेश देने वाली फिल्में नहीं पसंद तो फिक्र मत कीजिये इस फ़िल्म में आपके लिए मनोरंजन के सारे कलेवर हैं।
- दिव्यमान यती
उसी गाँव में एक नये ज़माने का नया दर्जी रहता है विक्की (राजकुमार राव)। उसके दो दोस्त हैं बिट्टू (अपारशक्ति खुराना) और जना (अभिषेक बनर्जी)। विक्की की मुलाकात एक गुमनाम लड़की (श्रद्धा कपूर) से होती है जो हर साल पूजा के वक़्त ही आती है। उस लड़की से विक्की को प्यार हो जाता है लेकिन विक्की के दोस्त इस लड़की को ही स्त्री समझते हैं। गाँव में एक ज्ञानी पुरुष भी हैं रूद्र (पंकज त्रिपाठी) जो स्त्री से बचने के चार सूत्रीय उपाय बताते रहते हैं। एक दिन विक्की के दोस्त जना को स्त्री उठा ले जाती है। इसके बाद विक्की और बिट्टू जना को ढूंढ़ना शुरू करते हैं। उन्हें रूद्र के यहाँ स्त्री के बारे में छपी के एक किताब के लेखक (विजय राज) के बारे में पता चलता है और वो सब उस लेखक से मिलने के बाद स्त्री के खिलाफ लड़ाई का आह्वान करते हैं। क्या स्त्री को विक्की और उसके दोस्त हरा पाते हैं? क्या वो सभी मर्दों को छोड़ देती है? इन सवालों के जवाब के लिये आपको सिनेमाघर का रुख़ करना पड़ेगा।
फ़िल्म की जान फ़िल्म की कहानी के साथ-साथ फ़िल्म के संवाद और उसके स्टारकास्ट का अभिनय भी हैं। फिल्म का स्क्रीनप्ले अच्छा लिखा हुआ है और लोकेशन भी दर्शकों की दिलचस्पी बढ़ाते हैं। अमर कौशिक ने फिल्म को कही भी ढ़ीला नहीं पड़ने दिया है। राज और डीके ने जो संवाद लिखे हैं वो फ़िल्म को और मजेदार बनाते हैं। फिल्म का म्यूजिक ठीक-ठाक है जिसे युवाओं को ध्यान में रखकर बनाया गया है, फिल्म का बैकग्राउंड म्यूजिक भी अच्छा है जो दर्शकों को समय-समय पर डराने में कामयाब रहता है। जहाँ तक अभिनय की बात है तो राजकुमार राव अब एक ऐसे अभिनेता हो गए हैं जिन्हें आप कोई भी किरदार दे दें वो उसी में रम जायेंगे, इस फ़िल्म के हर फ्रेम में वही छाये हुए हैं। पंकज त्रिपाठी की एंट्री कमाल की है, स्क्रीन पर उनकी मौजूदगी और उनकी भाव-भंगिमायें आपको हंसाने के लिए काफी हैं। श्रद्धा कपूर अपने रोल में ठीक-ठाक हैं उनका किरदार थोड़ा विचित्र था जो खुल के सामने नहीं आ पाया। विजय राज बस एक ही फ्रेम में नजर आये और बस दिल जीत कर चले गए। बाकी कलाकारों में अपारशक्ति, अभिषेक और विक्की के पिता के रोल में अतुल श्रीवास्तव ने भी अपनी छाप छोड़ी है।
फिल्म का पहला हॉफ बहुत ही मजेदार है, दूसरा हॉफ पहले हाफ की अपेक्षा थोड़ा ढ़ीला है लेकिन फिर भी निर्देशक ने दर्शकों की दिलचस्पी कायम रखी है। हाँ फ़िल्म का क्लाइमेक्स और श्रद्धा कपूर का किरदार कुछ लोगों के लिए थोड़ी उलझने पैदा कर सकता है। इस फ़िल्म की सबसे खास बात यह है कि ये फ़िल्म आपको डराते-डराते अचानक से हंसा देती है और हंसाते-हंसाते डराती भी है। अगर आपको संदेश देने वाली फिल्में नहीं पसंद तो फिक्र मत कीजिये इस फ़िल्म में आपके लिए मनोरंजन के सारे कलेवर हैं।
- दिव्यमान यती
Good
ReplyDeleteM ja ra hu dekhne.....#divyaman Ji
ReplyDeleteBilkul jaiye achhi movie hai👍
DeleteBadhiya
ReplyDeleteTumhare likhne aur btane k tarike ne ese Aur intersting bna dia dikha to bnta h... .Nice.... God bless you🤗🤗
ReplyDeleteThank you😊
DeleteThank you bhai😊
ReplyDeleteAre uske pas sbka Adhar card link h��
ReplyDeleteI recently saw this movie,and then read your review... Must say, the way it is written is really interesting...
ReplyDeleteThank you so much
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