।। जानें कहाँ गए वो दिन।।
(बम ब्लास्ट विशेष)
पहले आये दिनों नए-नए शहरों में बम ब्लास्ट हुआ करते थे, इससे नए-नए शहरों के बारे में सुनने को मिलता था, नए-नए आतंकवादियों के नाम और उनसे जुड़ी दिलचस्प कहानियां सुनने को मिलती थी, कब, कहाँ, कितने जगहों पर कौन-कौन से बम फोड़े गए और उन बम में कौन-कौन सी सामग्री उपयोग में लायी गयी उसकी जानकारियां मिलती थी। जनसंख्या में कुछ हद तक नियंत्रित भी होती थी। लोगों के घरों में रिश्तेदारों का आवागमन भी होता रहता था मातम वाले उत्सव के कारण। लोग घरों से निकलते थे तो मन रोमांचित रहता था कि कब और कहाँ बम फूटे और एक रोमांचकारी मौत आ जाये। बस स्टैंड, रेलवे स्टेशन, मॉल और पार्क इत्यादि जगहों पर हाथ में बैग लिए खड़े व्यक्ति पर संदेह करते हुए खुफिया अफसर वाले एहसास आते थे।
आज इन सारे रोमांच और सामान्य ज्ञान से हम वंचित हैं क्यों?
क्योंकि सेना ने आतंकवादियों को सीमा पर रोक रखा है जिनकी दिलचस्प कहानियां उधर ही किसी कोने में दफ़्न हो जाती हैं, सुरक्षा एजेंसी ने सारे नेटवर्क ध्वस्त कर दिए हैं, वो बैग वाले किरदार दिखाए तो देते हैं लेकिन उनपर अब संदेह नहीं हो पाता कि ये स्लीपर सेल वाले व्यक्तित्व हैं। इन सब के बाद रही सही कसर सरकार पूरी कर दे रही है सेना और सुरक्षा एजेंसियों को छूट देकर और एक मजबूत सुरक्षा समन्वय बनाकर। आजकल इतना सब रोमांच हम भारतीयों से छूट जा रहा है कुछ लोगों की सजगता की वजह से वरना पश्चिमी देश जिस रोमांच का मजा हम दशकों से ले रहे थे वो आये दिनों लेते रहते हैं और उन्हें अपने बीच से निकले जेहादियों की दिलचस्प कहानियां भी मिल जाती हैं सुनने और सुनाने को।
ख़ैर! सोचिये,समझिये और मत भूलिये बस वो दौर गुजरा है शैतानी सोच नहीं, वो सोच बस मौजूदा वक़्त में बेबस और लाचार हो गयी है।
~ दिव्यमान यती
(बम ब्लास्ट विशेष)
पहले आये दिनों नए-नए शहरों में बम ब्लास्ट हुआ करते थे, इससे नए-नए शहरों के बारे में सुनने को मिलता था, नए-नए आतंकवादियों के नाम और उनसे जुड़ी दिलचस्प कहानियां सुनने को मिलती थी, कब, कहाँ, कितने जगहों पर कौन-कौन से बम फोड़े गए और उन बम में कौन-कौन सी सामग्री उपयोग में लायी गयी उसकी जानकारियां मिलती थी। जनसंख्या में कुछ हद तक नियंत्रित भी होती थी। लोगों के घरों में रिश्तेदारों का आवागमन भी होता रहता था मातम वाले उत्सव के कारण। लोग घरों से निकलते थे तो मन रोमांचित रहता था कि कब और कहाँ बम फूटे और एक रोमांचकारी मौत आ जाये। बस स्टैंड, रेलवे स्टेशन, मॉल और पार्क इत्यादि जगहों पर हाथ में बैग लिए खड़े व्यक्ति पर संदेह करते हुए खुफिया अफसर वाले एहसास आते थे।
आज इन सारे रोमांच और सामान्य ज्ञान से हम वंचित हैं क्यों?
क्योंकि सेना ने आतंकवादियों को सीमा पर रोक रखा है जिनकी दिलचस्प कहानियां उधर ही किसी कोने में दफ़्न हो जाती हैं, सुरक्षा एजेंसी ने सारे नेटवर्क ध्वस्त कर दिए हैं, वो बैग वाले किरदार दिखाए तो देते हैं लेकिन उनपर अब संदेह नहीं हो पाता कि ये स्लीपर सेल वाले व्यक्तित्व हैं। इन सब के बाद रही सही कसर सरकार पूरी कर दे रही है सेना और सुरक्षा एजेंसियों को छूट देकर और एक मजबूत सुरक्षा समन्वय बनाकर। आजकल इतना सब रोमांच हम भारतीयों से छूट जा रहा है कुछ लोगों की सजगता की वजह से वरना पश्चिमी देश जिस रोमांच का मजा हम दशकों से ले रहे थे वो आये दिनों लेते रहते हैं और उन्हें अपने बीच से निकले जेहादियों की दिलचस्प कहानियां भी मिल जाती हैं सुनने और सुनाने को।
ख़ैर! सोचिये,समझिये और मत भूलिये बस वो दौर गुजरा है शैतानी सोच नहीं, वो सोच बस मौजूदा वक़्त में बेबस और लाचार हो गयी है।
~ दिव्यमान यती
Comments
Post a Comment