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।। तूफ़ान भाई आये थे? ।।

।। तूफ़ान भाई आये थे? ।।

पिछले दो दिनों से उमस ने जीना हराम किया हुआ था, ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो पुरे साल की गर्मी इन्हीं कुछ दिनों में ही पड़ जायेगी। खैर गर्मी और उमस से तो लड़ना-भिड़ना चलता रहा, कभी पंखे की गरम हवा से तो कभी तौलिये से लगातार निकल रहे पसीने को सुखाता रहा। इतने से भी संतुष्टि ना मिलने पर अवसर निकाल कभी चेहरे को तो कभी पुरे शरीर को पानी से भिंगाता रहा। पिछले कुछ दिनों से तूफ़ान की खबर तूफ़ान की ही भाँति सोशल मीडिया में जोर-जोर से चल रही थी, कुछ लोगों को तूफ़ान के वक़्त पर आने का इंतजार इसलिये था ताकि वो तूफ़ान का आनंद ले सके और कुछ लोगों को तूफ़ान का वक़्त से आने का सिर्फ इसलिए इंतजार था कि वो अपनी बाँस की कुछ बल्लियों (टुकड़ों) से बने अशियानें को बचाने के लिए पूरी तैयारी कर पाये क्योंकि पिछले दिनों आये तूफ़ान के प्रकोप से अभी ठीक से उबार भी नहीं पाये थे कि एक नए तूफ़ान का ख़बर उन्हें डराये हुए है। फिलहाल इंतजार तो इंतजार ही रह गया,ये लोग खुश तो हैं लेकिन आधे-अधूरे मन से क्योंकि तूफ़ान अगर बिना बताये आ गया तो फिर उन्हें सँभलने का मौका भी नहीं मिलेगा।
मै कल रात आईपीएल मैच देखने के बाद प्रतिदिन की भाँति अपने बिस्तर को ठीक कर मच्छरदानी लगाकर लेटा हुआ था जैसा कि मैंने बताया उमस और गर्मी अपने प्रचंड रूप में थी, इसलिए मैंने खिड़की और दरवाजे खोल रखे थे लेकिन हवा कहीं गायब सी लग रही थी। बिस्तर पर लेटे-लेटे हर रोज की तरह मै कुछ सोच रहा था, सोचते-सोचते कब आँख लग गयी पता ही नहीं चला। मै अब धीरे-धीरे सपनों को दुनिया में खो ही रहा था तब तक अचानक से एक हवा का झोखा खिड़की की ओर से आया  और मेरे मच्छरदानी से होते हुए मुझसे आ टकराया वो झोखा मेरी नींद खोलने के लिए काफी था, मै तुरंत उठ कर बिस्तर से नीचे उतर गया और बाहर जा कर देखा तो एक अलग ही नजारा था, दूर आसमान में बिजली चमक रही थी लेकिन बिजली के कड़कड़ाने की आवाज नहीं आ रही थी कुछ आ रही थी तो बहकी-बहकी सी हवायें, ये हवायें कभी अचानक से बहुत तेज हो जाती कभी अचानक से गायब ही हो जाती ऐसा लग रहा था मानो ये बहक गयी हैं,  अपना रास्ता भटक गयी हैं। खैर मै कुछ देर बाद खिड़कियों को बंद करके इस उम्मीद के साथ सो गया कि शायद देर रात तक आंधी-तूफ़ान आ ही जायेगी क्योंकि उस रात बिजली की चमक कुछ अलग ही रूप में थी, एक ख़ामोश सी चमक थी उनमें। सुबह हुई जब नींद खुली तो उठते ही मै बाहर अपने घर के सामने छोटे से बगीचे की ओर गया और देखा तो पाया कि वहाँ सब कुछ कल की तरह ही था, सूरज का तेज भी पहले की भांति था।
मैंने सोचा यहाँ नहीं तो कहीं और तूफ़ान शायद आया होगा क्योंकि वो बिजली की चमक में दिखे बादल खौफ़नाक लग रहे थे। कुछ तो अलग था कल रात के मौसम में। शायद कल रात तूफ़ान आया ही हो, एक शांत रूप में एक संकेत की तरह, हमें कुछ बताने हमें कुछ समझाने, आखिर हवायें इतनी बहकी-बहकी सी क्यों प्रतीत हो रही थी?
मेरे ज़ेहन में बस एक ही सवाल चल रहा था," तूफ़ान भाई आये थे?"
                             
                                    - दिव्यमान यती

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