Skip to main content

2.0 Movie Review : 2.0 वीएफएक्स है असली हीरो

कलाकार- रजनीकांत, अक्षय कुमार, एमी जैक्सन, आदिल हुसैन, इत्यादि
लेखक और निर्देशक - शंकर
अवधि - 2 घंटा 30 मिनट
रेटिंग - 3.5/5

आज दर्शकों की अपेक्षाएं इतनी ज्यादा बढ़ गयी हैं कि उनकी पसंद के स्तर तक पहुँच पाना आज के फ़िल्म निर्माताओं की सबसे बड़ी चुनौती बन चुकी है। हॉलीवुड की हजारों करोड़ की फिल्मों से भारत की फिल्मों की तुलना थोड़ी बेमानी तो लगती है लेकिन दर्शक ना चाहते हुए भी वही उम्मीद लगा बैठते हैं। ठीक वही उम्मीद 2.0 फ़िल्म के साथ दर्शकों ने लगा रखी थी। फ़िल्म रिलीज़ भी  हो गयी और दर्शकों के बीच आ भी गयी। जहाँ दर्शक आजकल लगभग 3000 हजार करोड़ की बनी हॉलीवुड की 'एवेंजर इनफिनिटी वार' देख रहे हैं। वही दूसरी ओर लगभग 550 करोड़ में बनी भारतीय फ़िल्म 2.0 क्या उनकी उम्मीदों पर खरी उतर पाती है? आइये जानने की कोशिश करते हैं।

कहानी-

फ़िल्म की कहानी शुरू होती है एक ओनिर्थोलॉजिस्ट यानी पक्षियों के विशेषज्ञ वैज्ञानिक पक्षी राजन (अक्षय कुमार) की मोबाइल टॉवर पर चढ़ कर आत्महत्या करने से। जिसके बाद पूरे शहर से मोबाइल फोन अचानक से गायब होने लगते हैं। फिर प्रोफेसर वशीकरण (रजनीकांत) को इस आश्चर्यजनक घटना का पता लगाने के लिए याद किया जाता है। वशीकरण अपने असिस्टेंट रोबोट नीला (एमी जैक्सन) के साथ इस राज का पर्दाफाश करते हैं और हाई कमान को बताते हैं कि हमें इस मुसीबत से आर्मी नहीं बल्कि सिर्फ और सिर्फ चिट्टी ही बचा सकता है जो कि उनका ही बनाया सबसे खास रोबोट है। काफी असहमति के बाद भी आखिरकार चिट्टी वापस आ ही जाता है। वशीकरण और चिट्टी मिलकर पता लगाते हैं कि इस सबके पीछे पक्षी राजन का ही हाथ है। पक्षी राजन जो कि मोबाइल फोन के इस्तेमाल करने वाले सभी उपभोक्ताओं को मारता है वो ऐसा क्यों करता है? आखिर क्यों वो मोबाइल फोन से इतनी नफ़रत करता है? आखिर कैसे आत्महत्या करने के बाद भी वो वापस लौट आता है? इन सभी का जवाब आपको फ़िल्म देखने के बाद ही मिल पायेगा। चिट्टी और पक्षी राजन के जंग की कहानी को शंकर ने शानदार स्पेशल इफ़ेक्ट के माध्यम से बखूबी दर्शाया है।

फ़िल्म की जान हैं स्पेशल इफेक्ट्स-

फ़िल्म का असली हीरो निःसंदेह इस फ़िल्म के स्पेशल इफ़ेक्ट ही हैं। अगर हम हॉलीवुड से तुलना ना करें और फ़िल्म के बजट को देखते हुए फ़िल्म के स्पेशल इफ़ेक्ट की चर्चा करें तो भारत में साइंस फिक्शन पर बनी फिल्मों में अब तक की यह सबसे बेहतरीन स्पेशल इफ़ेक्ट वाली फिल्म है। निर्देशक शंकर की कहानी से ज्यादा स्पेशल इफ़ेक्ट पर की गयी मेहनत साफ-साफ दिखाई देती है। मोबाइल फोन के साथ इंटरवल के पहले के सीन चाहे पुरे रोड पर बिखरे मोबाइल फ़ोन का रोड पर फोल्ड होना या जंगल में पेड़ो पर पसरे मोबाइल फ़ोन के सीन दर्शकों में रोमांच पैदा करते हैं। पक्षी राजन के साथ चिट्टी के फाइट सीन भी बहुत हद तक लोगों में दिलचस्पी बनाये रखते हैं खास तौर पर स्टेडियम में क्लाइमेक्स का सीन तो अलग ही लेवल का है इसमें चिट्टी का वर्जन 2.0 से लेकर 3.0 तक के रूप देखने को मिल जाते हैं। चुकी फ़िल्म 3डी में थी जिससे वीएफएक्स और भी प्रभावी लगने लगते हैं। हाँ कहीं-कहीं  एनीमेशन फ़िल्म जैसे एहसास भी आते हैं लेकिन वो इतने भी बेकार नहीं लगते।

अभिनय और निर्देशन-

जहाँ तक अभिनय की बात है तो सबसे पहले साउथ की फिल्मों में डेब्यू कर रहे अक्षय कुमार की बात करते हैं जो कि इस फ़िल्म में पुरे डेढ़ घंटे के बाद प्रभाव में या यूँ कहें खुल के स्क्रीन पर सामने आते हैं और आते ही छा जाते हैं। अक्षय कुमार एक सौम्य,सभ्य और भावुक वैज्ञानिक के रूप में जो दुनिया को ये बताने में लगा हुआ है कि मनुष्य जाति का जीवन पक्षियों के जीवन पर टिका हुआ है, जितने प्रभावी दिखे हैं, उतने ही नकारात्मक किरदार में भी दिखे। उनको डेविल के रूप में देखना मजेदार अनुभव है। अगर ये कहें कि वो रजनीकांत पर थोड़े भारी साबित हुए हैं तो ये कहना बेमानी नहीं होगी। रजनीकांत हमेशा की तरह सुपरस्टार वाले अंदाज में ही दिखें है। लेकिन इस बार वैज्ञानिक वशीकरण नहीं बल्कि रोबोट वाले किरदार में खासकर चिट्टी 2.0 वाले में। इस बार वशीकरण वाले किरदार में उतना खुलने का मौका नहीं मिला। एमी जैक्सन जो कि खुद एक रोबोट बनी है वो रोबोट की रह गयी हैं इस फ़िल्म में, जो स्क्रीन पर सिर्फ प्यारी खूबसूरत रोबोट दिखती हैं। जहाँ तक निर्देशन की बात है तो जैसा कि पहले कहा मैंने इस फ़िल्म के असली हीरो शंकर ही हैं जिन्होंने कहानी भी लिखी है और निर्देशन भी किया है। उनकी 3 साल की मेहनत स्क्रीन पर नज़र भी आती हैं। लेकिन स्क्रीनप्ले में थोड़ी बहुत कमी भी नज़र आती है। इनसब के बावजूद कह सकते हैं कि निर्देशक शंकर की टीम के स्पेशल इफ़ेक्ट का काम बहुत हद तक कामयाब  रहा है और अपना सन्देश भी दे पाने में सफल रहे हैं।

फ़िल्म देखें या ना देखें-

ये फ़िल्म बेशक एक मसाला फ़िल्म है लेकिन इनसब के बीच एक बहुत बड़ा सन्देश भी देती है कि कैसे मोबाइल फोन ने हम मनुष्यों के जीवन पर इतना प्रभाव जमा लिया है। इस वजह से पंक्षियों की प्रजाति भी विलुप्त होती जा रही है। इस फ़िल्म की हॉलीवुड से तुलना बेवकूफी होगी क्योंकि हमारे बजट और उनके बजट में बहुत बड़ा अन्तर होता है। फ़िल्म में मेहनत हुई है जो साफ तौर पर दिखती है। कुछ चीजें गैरतार्किक भी लगती हैं। एक आम दर्शक के लिये ये भी जरूरी है कि उसका पैसा बेकार ना जाये। इसलिए बेफिक्र होकर इस वीकेंड फैमिली या दोस्तों के साथ इस फ़िल्म का आनंद ले सकते हैं। मनोरंजन के सारे कलेवर इस फ़िल्म में मौजूद हैं। तो जाइये,आनंद उठाइये और भारतीय फ़िल्म में हो रहे बदलाव को महसूस कीजिए।

फोटो साभार- गूगल

Comments

Post a Comment

Popular posts from this blog

तमकुही राज- एक अनसुनी कहानी

◆तमकुही राज- एक अनसुनी कहानी◆ उत्तर प्रदेश के कुशीनगर जिले में राष्ट्रीय राजमार्ग-28 के समीप स्थित है तमकुहीराज ( Tamkuhi Raj )। तमकुहीराज का अपना ही एक गौरवपूर्ण इतिहास है जिसे इतिहासकारों ने उतनी तवज्जों नहीं दी सिवाय कुछ स्थानीय इतिहासकारों के। आज भी तमकुहीराज के गौरवशाली इतिहास की गाथायें यहाँ के बुजुर्गों से सुनने को मिलती है। तमकुहीराज में एक खूबसूरत राज्य होने से पहले यहाँ घना जंगल हुआ करता था जिसे वीर राजा "फतेह शाही" ने बसाया था। राजा फतेह शाही ( Raja Fateh Sahi ) को 1767 में अंग्रेजों की "कंपनी सरकार" ने "कर" ना देने का विरोध करने पर वि द्रोही घोषित कर दिया। राजा साहब को जनता का भरपूर समर्थन प्राप्त था जिसके परिणामस्वरूप उन्होंने तमकुहीराज में राज्य की स्थापना की तथा इसका विस्तार भी किया। 23 वर्षों तक बग़ावत का झंडा बुलंद किये लड़ते रहने के बाद 1790 में फतेह शाही ने अपने पुत्र को तमकुही की गद्दी पर बिठाकर महाराष्ट्र सन्यास पर चले गये। 1836 में फतेह शाही की मृत्यु के बाद भी अंग्रेज़ो में उनका आतंक कम न हुआ। राजा फतेह शाही के बाद भी कई

D-16 : साउथ की परफेक्ट सस्पेंस थ्रिलर फिल्म

Dhuruvangal Pathinaaru (D-16) मैं हॉटस्टार पर ऐसे ही रोज की तरह कोई फिल्म ढूंढ़ रहा था अचानक से मेरी नज़र 'धुरुवंगल पथिनारू यानी डी-16' फिल्म पर गई। नज़र पड़ते ही मैंने देखना शुरू नहीं किया क्योंकि मैं जब भी कोई ऐसी फिल्म देखता हूँ जिसका नाम पहली बार सुना हो तो पहले उसके बारे चेक करता हूँ कि ये फिल्म देखने लायक है या नहीं। इसपर रेस्पॉन्स अच्छा दिखा तो सोचा देख लूं। पिछले दिनों मैंने बहुत सी साउथ फिल्मों के बारे में जानकारियां जुटाई, उनके बारे में पढ़ा, साउथ की फिल्म्स को लेकर थोड़ी छानबीन भी की ये इसलिए क्योंकि साउथ फिल्मों को लेकर एक मिथ है कि साऊथ में जो टीवी पर मसाला फिल्में दिखती हैं केवल उसी तरह की फिल्में बनती हैं। लेकिन अब इस धारणा से बाहर आना चाहिए। साउथ में कुछ बेहतरीन फिल्में ऐसी हैं जो हमारी पहुंच से दूर हैं क्योंकि बाजार उन्हें स्वीकार नहीं करता। हिंदी में वहीं ज्यादातर उपलब्ध हैं जो आप आये दिनों टीवी पर देखते रहते हैं। कुछ अच्छी फिल्में भी उपलब्ध हैं जो इन रेगुलर मसाला फिल्मों से अलग हैं लेकिन अधिकतर लोगों को उनके बारे में पता ही नहीं और जब पता नहीं तो देखने का रि

Rahul Dravid : वो दीवार जिसे कोई ना भेद पाया, महान राहुल द्रविड़

# महान_राहुल_द्रविड़  महान सिर्फ इसलिए नहीं कि उन्होंने इतने ढ़ेर सारे रन बनाएं, इतने ढ़ेर सारे कैच पकड़े, भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान भी रहे। बल्कि महान इसलिए कि ये जो इतने सारे रन बनाए ये उन मुश्किल हालातों में बनाएं जहाँ रन बनाना किसी पहाड़ तोड़ने से कम नहीं था, ये ढ़ेर सारे कैच ऐसे कैच थे जिन्हें पकड़ पाना आम फील्डर के बस की बात नहीं थी और कप्तान उन हालातों में रहे जब भारतीय टीम बुरे हालात में थी। जब भारतीय टीम के पुतले फूंके जा रहे थे, जब खिलाडियों के घरों पर हमले किये जा रहे थे। इन सब से अलग एक बेहद ही सौम्य और शांत खिलाड़ी जब आक्रामक होता था तब अपने बल्ले से निकली 'टक' की आवाज से विरोधियों के गालों पर थप्पड़ मारता था। जिससे उलझने से पहले गेंदबाज ये सोचता था कि इसका भुगतान हमें लंबी पारी के रूप में भुगतना पड़ सकता है। लोगों के चौकों-छक्कों की चर्चाओं के बीच एक ऐसा शख्स था जिसके डिफेंस की चर्चा होती थी, जिससे कट शॉट की चर्चा होती थी। मेरा क्रिकेट का लगाव कितना पुराना है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि मैं इस खिलाड़ी के सबसे महत्वपूर्ण और महान दौर का गवाह बना। जिस दि

संगिनी - लघुकथा

उस सर्द रात में मैं अपने गुस्से वाली गर्मी को ज्यादा देर तक बरकरार नहीं रख पाया, जितनी भी गर्मी थी मेरे दिमाग में सब इन ठिठुरन भरी सर्द हवाओं ने ठंडा कर दिया था। सोच रहा था आखिर ये गुस्सा मुझे इस वक़्त ही क्यों आया, बेबस निगाहों से मैं दरवाजे की तरफ देख रहा था और सोच रहा था, "अब वो आयेगी, अब वो आयेगी।" बहुत देर हो गयी इतने देर में तो उसका भी गुस्सा शांत हो जाना चाहिये था, लगता है ये ठंडी हवायें जिन्होंने मेरे गुस्से को ठंडा कर दिया, अंदर उसके पास तक नहीं पहुँच पा रही। "मेरा भी न अपने गुस्से पर काबू नहीं रहता,अब भुगतो! लगता है आज की रात बाहर ही बितानी पड़ेगी" मै खुद से बाते करते हुए बुदबुदा रहा था। अचानक दरवाजे के खुलने की आवाज आयी दरवाजे की तरफ देखा तो दरवाजे पर मेरी बिटिया थी, उसने मेरी खिंचाई करते हुए पूछा,"क्यों पापा मजे में हो?" मैंने बेबसी और लाचारी भरे स्वर में उससे पूछा,"अंदर का माहौल कैसा है?" "बहुत गर्मी है अंदर पापा" मेरी बेटी ने शैतानी वाले अंदाज़ में जवाब दिया, "आज रात तो यहीं काटनी पड़ेगी आपको।" मै अभी कुछ