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देश के भविष्य की धुंधली तस्वीर



हमारा देश 72वां स्वतंत्रता दिवस मनाने की तैयारी कर रहा है। जहां देश की बड़ी-छोटी सभी संस्थाओं में स्वतंत्रता की कहानियां सुनाई जायेंगी तथा स्वतंत्रता मायने समझाये जायेंगे, वहीं एक ओर आजादी के 71 वर्ष बाद मुजफ्फरपुर-देवरिया जैसे कांड एक सभ्य देश की महानता में धब्बा लगा रहे हैं। पहले मुजफ्फरपुर और फिर देवरिया शेल्टर होम से आने खबरों ने लोगों को आश्चर्यचकित कर दिया है। जब देवरिया शेल्टर होम से एक 10 साल की लड़की भागकर थाने पहुंची और उस लड़की ने शेल्टर होम में चल रहे वेश्यावृत्ति का खुलासा किया, तब पुलिस प्रशासन ने देवरिया के उस बाल और महिला संरक्षण गृह पर छापा मार वहां मौजूद 24 लड़कियों को रिहा कराया। हालांकि उस शेल्टर होम की और 18 लड़कियां गायब थी, जिनकी तलाश अभी भी जारी है। मुजफ्फरपुर और देवरिया कांड से पूरा देश आक्रोशित है,और हो भी क्यों ना समाज कल्याण की आड़ में में समाज के कुछ ठेकेदारों द्वारा समाज को शर्मसार करने वाला कार्य किया जा रहा है। आए दिनों  देश में बाल यौन शोषण की घटनाएं सामने आ रही हैं। यह परिस्थिति बेहद ही देश के लिये चिंताजनक है। आखिर क्या वजह है जो एक सभ्य समाज में बालिकाओं और महिलाओं से संबंधित घटनाएं बढ़ती ही जा रही है।
बाल और महिला सुरक्षा गृहों में समाज सेवा के नाम पर मासूम बच्चियों को वेश्यावृत्ति में झोंका जा रहा है। यह खुलासा सरकार की देर से ही सही, आंख खोलने के लिए काफी है। सरकार की जिम्मेदारी है कि वह देश में चल रहे सभी सरकारी तथा गैर सरकारी संस्थाओं की अब नए सिरे जाँच-पड़ताल करे। देश में बढ़ रही ऐसी घटनाओं के खिलाफ सख्ती से निपटे। बहुत सी ऐसी भी घटनायें सामने आती हैं जहाँ बड़े नेता या उनके सगे-संबंधियों की संलिप्तता भी पायी जाती है तब उन परिस्थितियों में भी सरकार तथा प्रशासन का दायित्व है कि वो एक स्पष्ट रुख अपनाये और गुनाहगार चाहे कोई भी हो उसके साथ कोई नरमी ना बरते। इस तरह की घटनायें ना सिर्फ सरकार और प्रशासन को बल्कि हमारे समाज को भी कटघरे में खड़ा करती है।
आखिर ये समाज इतना निर्मम और गैरजिम्मेदार क्यों होता जा रहा है? आखिर हमारा समाज इस तरह को घटनाओं पर चुप्पी क्यों साध लेता है? हम ऐसी घटनाओं से सबक सीखेंगे भी या फिर ऐसी और घटनाओं का इंतजार करेंगे? उन बच्चियों के लिए स्वतंत्रता के क्या मायने हैं, जिन्हें बचपन में ही वेश्यावृत्ति के कीचड़ में धकेल दिया जा रही है?
जहाँ बच्चे-बच्चियों को देश का भविष्य कहा जाता है वहां इनके भविष्य को बचपन में ही अंधकारमयी कर दिया जा रहा है। ये सब कब तक चलेगा? क्या अब भी ये सिलसिला रुकेगा या ये बस एक अल्पकालिक मुद्दा बन कर ही रह जायेगा? सवाल बहुत से हैं और इन सारे सवालों के प्रति जितनी सरकार और प्रशासन की जवाबदेही है उतनी ही जवाबदेही हमारी और आपकी भी है।
                                        - दिव्यमान यती

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