Skip to main content

पलायन : महामारी के बीच त्रासदी



कोरोना वायरस के संक्रमण से फैली कोविड-19 बीमारी ने पूरे विश्व को भयभीत कर रखा है। जहां चीन, इटली, फ्रांस, जर्मनी और अमेरिका जैसे विकसित देश भी इसके सामने घुटने टेकतेदिखाई दे रहे हैं वहीं भारत इस लड़ाई में विजय पाने की पुरजोर कोशिश में लगा हुआ हैं। भारत मे कोरोना संक्रमण की खबरें आते ही भारत सरकार ने इससे लड़ने की तैयारी शुरू कर दी। इसी तैयारी के बीच 22 मार्च को सम्पूर्ण देश मे जनता कर्फ्यू लगा और फिर इस जनता कर्फ्यू के दो दिन बाद 21 दिन के लॉक डाउन की घोषणा हुई। पूरा देश अचानक से रुक गया। भारत सरकार द्वारा जारी गाइडलाइन्स में ये कहा गया कि जो जहां है वहीं रुका रहेगा। उस तक सारे जरूरी सामान पहुंचाया जाएगा तथा जरूरतमंदों के लिए भोजन एवं रहने का प्रबंध किया जाएगा। कोरोना से लड़ने के लिए ये लॉक डाउन जरूरी तो था लेकिन इस लॉक डाउन ने एक ऐसी जमात को भय में डाल दिया जो इस देश का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। भारत के बड़े शहरों के प्रवासी श्रमिकों और दिहाड़ी मजदूरों पर इस फैसले का बड़ा असर हुआ। सारे कारखानें और कंपनियों के बंद हो जाने के कारण इनका रोजगार खत्म हो गया। जो रोज कमाने खाने वाले दिहाड़ी मजदूर हैं उनके मन में भुखमरी का डर बैठ गया। हालांकि केंद्र तथा राज्य सरकारों द्वारा इन मजदूरों को हर जरूरी सुविधा मुहैया कराने का आश्वासन दिया गया लेकिन इन मजदूरों को क्या पता था जिन शहरों को शहर बनाने एवं इसकी रफ्तार को बरकरार रखने के लिए ये दिन-रात एक कर देते थे वही शहर आज इनकी रफ्तार को रोक देगा। इस फैसले के बाद शहर के धन्ना सेठों का धैर्य जवाब दे गया और जगह-जगह से इन कामगारों और मजदूरों को कुछ पैसे देकर जाने को कहा गया। कुछ मजदूरों का तो कारखाना एवं सड़क ही ठिकाना था। राज्य सरकारों की सख़्त हिदायतों  के बावजूद लॉक डाउन के बीच वो भयावह मंजर दिखने लगा जिसने हर किसी को सोचने पर मजबूर कर दिया। रोजी-रोटी के मारे ये मजदूर अपने परिवार के साथ बड़े शहरों से हजारों किलोमीटर दूर पैदल ही अपनी घर की ओर निकलने लगे। पहले ये संख्या सीमित थी लेकिन धीरे-धीरे सड़को पर हजारों की भीड़ चलने लगी। ये सभी अपने मन मे भय और असुरक्षा का भाव लिए इस उम्मीद में चले जा रहे थे कि किसी ना किसी दिन अपने घर पहुचेंगे, जहां इन्हें खाने और रहने की समस्या नहीं होगी। सड़क पर चलती यह भीड़ एक तरफ हमें शर्मसार भी कर रही थी और दूसरी तरफ भयभीत भी। जहां सम्पूर्ण देश सामाजिक दूरी बना कर कोरोना से लड़ाई लड़ रहा था वहीं हजारों की भीड़ का यूँ एक साथ चलना कोरोना वायरस के बढ़ने की शंकाओं को बल दे रहा था। हालांकि प्रधनमंत्री नरेंद्र मोदी ने 'जनता कर्फ्यू' के अपने भाषण में कहा था कि ' ऐसे लोगों के काम पर नहीं जाने पर भी उन्हें उनकी निर्धारित तनख्वाह दें एवं उन्हें उनके रहने की जगह से ना निकालें। उन्होंने हाल में शारीरिक दूरी के साथ संवेदनात्मक नजदीकियां बढ़ाने का भी आग्रह किया। लेकिन उनकी बातों का प्रभाव महानगरों के उन ऊंचे मकानों में बैठे कान के बहरों तक नहीं पहुंची जो इन्हीं मजदूरों के दम पर वहां तक पहुँचे हैं।



अगर आंकड़ो पर नज़र डालें तो भारत मे लगभग 14 करोड़ के आस-पास देशांतरिक प्रवासी हैं। इनमें से करीब दो करोड़ प्रवासी मजदूर दो बड़े राज्यों उत्तर प्रदेश एवं बिहार से हैं। ऐसा बताया जाता है कि हिंदी पट्टी के चार राज्यों उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान से लगभग 50 प्रतिशत प्रवासी मजदूर आते हैं। दिल्ली और मुंबई इन प्रवासी मजदूरों के गढ़ हैं। जहां बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूर कार्य करते हैं। लॉक डाउन के बाद ये मजदूर इन्हीं शहरों से निकलकर दिल्ली-यूपी के बॉर्डर पर इकट्ठा होने लगे। देखते-देखते आनंद विहार बस स्टैंड के पास हजारों की संख्या में लोग इकट्ठा हो गए। इस इकठ्ठा होती भीड़ के बीच कोरोना के बढ़ने का ख़तरा भी बढ़ता जा रहा था। हालात बिगड़ते देख यूपी सरकार ने त्वरित कार्यवाही की और 1000 से ज्यादा बसों की व्यवस्था कराकर इन्हें इनके क्षेत्र की ओर पहुँचाया।



घरों की ओर जाने से उन ग्रामीण क्षेत्रों में इस वायरस के फैलने का डर था। वजह भी वाजिब थी क्योंकि ये मजदूर एक बड़ी भीड़ का हिस्सा थे और ऐसे क्षेत्रों की ओर से आ रहे थे जो पहले से ही कोरोना प्रभावित क्षेत्र की श्रेणी में थे। यूपी-बिहार की सरकारों ने प्रशासन को आदेश दिया कि इन सभी की जांच कराई जाए तथा इन्हें 14 दिन तक क्वारंटाइन में रखा जाए। प्रशासन अगर इन आदेशों का सख्ती से पालन करती है तो हम उस बड़ी विपदा से बच सकते हैं जो इस पलायन से हो सकती है। उम्मीद यही कर सकते हैं कि ये सभी लोग सरकार की गाइडलाइन्स का पालन कर 14 दिन और अपने घर-परिवार से दूर रहेंगे। इसमें किसी प्रकार की भी चूक पूरे देश पर भारी पड़ सकती है। लेकिन इसी दौरान हमें यह भी ज्ञात रखना है कि हमें इन लोगों से जो क्वारंटाइन में हैं सामाजिक दूरी बनानी है ना कि भावनात्मक दूरी।  हमें इस महामारी के बीच पलायन का दंश झेल कर आये इन मजदूरों की भावनाओं का ख़याल इनसे दूर रह कर भी रखना है। ये लड़ाई सिर्फ कोरोना से नहीं बल्कि हमें हर उस परिस्थितियों से लड़ना है जो हमें मानव होने से रोक रही है। हमें इन्हीं हालातों में मानव धर्म का पालन करना है। ये विपदा एक-न-एक दिन चली ही जाएगी लेकिन ऐसा ना हो ये विपदा जाते-जाते हमारी मानवता को निगल जाए।

PC - Twitter


Comments

Popular posts from this blog

तमकुही राज- एक अनसुनी कहानी

◆तमकुही राज- एक अनसुनी कहानी◆ उत्तर प्रदेश के कुशीनगर जिले में राष्ट्रीय राजमार्ग-28 के समीप स्थित है तमकुहीराज ( Tamkuhi Raj )। तमकुहीराज का अपना ही एक गौरवपूर्ण इतिहास है जिसे इतिहासकारों ने उतनी तवज्जों नहीं दी सिवाय कुछ स्थानीय इतिहासकारों के। आज भी तमकुहीराज के गौरवशाली इतिहास की गाथायें यहाँ के बुजुर्गों से सुनने को मिलती है। तमकुहीराज में एक खूबसूरत राज्य होने से पहले यहाँ घना जंगल हुआ करता था जिसे वीर राजा "फतेह शाही" ने बसाया था। राजा फतेह शाही ( Raja Fateh Sahi ) को 1767 में अंग्रेजों की "कंपनी सरकार" ने "कर" ना देने का विरोध करने पर वि द्रोही घोषित कर दिया। राजा साहब को जनता का भरपूर समर्थन प्राप्त था जिसके परिणामस्वरूप उन्होंने तमकुहीराज में राज्य की स्थापना की तथा इसका विस्तार भी किया। 23 वर्षों तक बग़ावत का झंडा बुलंद किये लड़ते रहने के बाद 1790 में फतेह शाही ने अपने पुत्र को तमकुही की गद्दी पर बिठाकर महाराष्ट्र सन्यास पर चले गये। 1836 में फतेह शाही की मृत्यु के बाद भी अंग्रेज़ो में उनका आतंक कम न हुआ। राजा फतेह शाही के बाद भी कई

D-16 : साउथ की परफेक्ट सस्पेंस थ्रिलर फिल्म

Dhuruvangal Pathinaaru (D-16) मैं हॉटस्टार पर ऐसे ही रोज की तरह कोई फिल्म ढूंढ़ रहा था अचानक से मेरी नज़र 'धुरुवंगल पथिनारू यानी डी-16' फिल्म पर गई। नज़र पड़ते ही मैंने देखना शुरू नहीं किया क्योंकि मैं जब भी कोई ऐसी फिल्म देखता हूँ जिसका नाम पहली बार सुना हो तो पहले उसके बारे चेक करता हूँ कि ये फिल्म देखने लायक है या नहीं। इसपर रेस्पॉन्स अच्छा दिखा तो सोचा देख लूं। पिछले दिनों मैंने बहुत सी साउथ फिल्मों के बारे में जानकारियां जुटाई, उनके बारे में पढ़ा, साउथ की फिल्म्स को लेकर थोड़ी छानबीन भी की ये इसलिए क्योंकि साउथ फिल्मों को लेकर एक मिथ है कि साऊथ में जो टीवी पर मसाला फिल्में दिखती हैं केवल उसी तरह की फिल्में बनती हैं। लेकिन अब इस धारणा से बाहर आना चाहिए। साउथ में कुछ बेहतरीन फिल्में ऐसी हैं जो हमारी पहुंच से दूर हैं क्योंकि बाजार उन्हें स्वीकार नहीं करता। हिंदी में वहीं ज्यादातर उपलब्ध हैं जो आप आये दिनों टीवी पर देखते रहते हैं। कुछ अच्छी फिल्में भी उपलब्ध हैं जो इन रेगुलर मसाला फिल्मों से अलग हैं लेकिन अधिकतर लोगों को उनके बारे में पता ही नहीं और जब पता नहीं तो देखने का रि

Rahul Dravid : वो दीवार जिसे कोई ना भेद पाया, महान राहुल द्रविड़

# महान_राहुल_द्रविड़  महान सिर्फ इसलिए नहीं कि उन्होंने इतने ढ़ेर सारे रन बनाएं, इतने ढ़ेर सारे कैच पकड़े, भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान भी रहे। बल्कि महान इसलिए कि ये जो इतने सारे रन बनाए ये उन मुश्किल हालातों में बनाएं जहाँ रन बनाना किसी पहाड़ तोड़ने से कम नहीं था, ये ढ़ेर सारे कैच ऐसे कैच थे जिन्हें पकड़ पाना आम फील्डर के बस की बात नहीं थी और कप्तान उन हालातों में रहे जब भारतीय टीम बुरे हालात में थी। जब भारतीय टीम के पुतले फूंके जा रहे थे, जब खिलाडियों के घरों पर हमले किये जा रहे थे। इन सब से अलग एक बेहद ही सौम्य और शांत खिलाड़ी जब आक्रामक होता था तब अपने बल्ले से निकली 'टक' की आवाज से विरोधियों के गालों पर थप्पड़ मारता था। जिससे उलझने से पहले गेंदबाज ये सोचता था कि इसका भुगतान हमें लंबी पारी के रूप में भुगतना पड़ सकता है। लोगों के चौकों-छक्कों की चर्चाओं के बीच एक ऐसा शख्स था जिसके डिफेंस की चर्चा होती थी, जिससे कट शॉट की चर्चा होती थी। मेरा क्रिकेट का लगाव कितना पुराना है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि मैं इस खिलाड़ी के सबसे महत्वपूर्ण और महान दौर का गवाह बना। जिस दि

संगिनी - लघुकथा

उस सर्द रात में मैं अपने गुस्से वाली गर्मी को ज्यादा देर तक बरकरार नहीं रख पाया, जितनी भी गर्मी थी मेरे दिमाग में सब इन ठिठुरन भरी सर्द हवाओं ने ठंडा कर दिया था। सोच रहा था आखिर ये गुस्सा मुझे इस वक़्त ही क्यों आया, बेबस निगाहों से मैं दरवाजे की तरफ देख रहा था और सोच रहा था, "अब वो आयेगी, अब वो आयेगी।" बहुत देर हो गयी इतने देर में तो उसका भी गुस्सा शांत हो जाना चाहिये था, लगता है ये ठंडी हवायें जिन्होंने मेरे गुस्से को ठंडा कर दिया, अंदर उसके पास तक नहीं पहुँच पा रही। "मेरा भी न अपने गुस्से पर काबू नहीं रहता,अब भुगतो! लगता है आज की रात बाहर ही बितानी पड़ेगी" मै खुद से बाते करते हुए बुदबुदा रहा था। अचानक दरवाजे के खुलने की आवाज आयी दरवाजे की तरफ देखा तो दरवाजे पर मेरी बिटिया थी, उसने मेरी खिंचाई करते हुए पूछा,"क्यों पापा मजे में हो?" मैंने बेबसी और लाचारी भरे स्वर में उससे पूछा,"अंदर का माहौल कैसा है?" "बहुत गर्मी है अंदर पापा" मेरी बेटी ने शैतानी वाले अंदाज़ में जवाब दिया, "आज रात तो यहीं काटनी पड़ेगी आपको।" मै अभी कुछ