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Showing posts from April, 2017

मेरा गाँव।

वो गांव के नल का मीठा पानी, जो अब मीठा नहीं रहा। वो गाँव की हवाओं की ताज़गी, जो अब ताज़ी नहीं रही। वो सुबह-सुबह कोयलों की कु- कु, अब तो कोयल ही नहीं रही। वो बरगद के पेड़ के नीचे खाट पर बैठ कर गप्पे लगाना, अब ना खाट रही ना बरगद। सारे कामों के बाद भी वक़्त ही वक़्त होना, वक़्त की मार से कभी ना रोना। वो शरमाती साँझ को गाँव के बुजुर्गों का चौपाल, बहुत याद आता है। लगता है किसी बेईमान शहरी की नज़र लग गयी है मेरे गाँव को।

अलविदा

अलविदा, आज तुम्हे अलविदा कहने का वक़्त आ ही गया। ये मेरे जीवन का सबसे कठिन और दुविधाओं से भरा वक़्त है, दिल में जज़्बातों का सैलाब उमड़ रहा है। ये दिल मुझसे लाखों सवाल कर रहा है, वो पूछ रहा है, "आखिर ये अलविदा क्यों?" मै भी नादान उसे समझाये जा रहा हूँ कि मैंने अलविदा सिर्फ उसे कहा है, उसकी यादों को नहीं, उसके अल्फाज़ो को नहीं। उसकी हर याद, उसके साथ की हर मुलाक़ात, उसकी हर बात ताउम्र मेरे दिल और दिमाग में ज़िंदा रहेगी। आखिर कोई कैसे उन हसीन लम्हों को भूल सकता है, क्या वो भूल पायेगी, मुझे नहीं लगता। पर अलविदा तो कहना ही पड़ेगा क्यूंकि वक़्त की यही मांग है। हमारे जज़्बातों का अब कोई मोल नहीं, हमारे वादों की अब कोई अहमियत नहीं। एक वक़्त था जब मुझे तुम्हारी आदत सी हो गयी थी, तुम्हे हर रोज़ देखना, हर रोज़ सुनना, हर पल तुम्हे याद करना। अब इस आदत को छूटने में शायद एक अरसा लग जाये। हमें डर तो पहले भी था इस अंजाम-ए-मोहब्बत का लेकिन हमारी मोहब्बत ही तो हमारी ताकत थी, पर आज वही ताकत हमारी कमजोरी हो गयी है। मै आज जितना मज़बूर हूँ,उतना शायद ही पहले कभी रहा हूँ। पर ये मै दावे के साथ क

दो वक़्त की रोटी।

हमें क्या चाहिये इस ज़माने से बस दो वक़्त की रोटी दिला दो, खा लेंगें मोहब्बत से, हमें ज़माने में फैली नफरतों से क्या करना है, हमें तो अभी मतलब है बस इस भूखे पेट की तपिश को मिटाने से, बस दो वक़्त की रोटी दिला दो, खा ही लेंगें मोहब्बत से। तुम जितना चाहो उससे ज्यादा मुस्कुरा देंगे हम, हर दर्द को भी छुपा लेंगे इस ज़माने से, बस कहीं से दो वक़्त की रोटी दिला दो, खा लेंगे मोहब्बत से। फोटो साभार written By DivyamanYati

बात उस रात की।

सोच रहा हूँ तुझसे थोड़ी बातें कर लूँ। आज एक मुद्दत बाद तुझसे मुलाक़ात जो हुयी है, और बताओ कैसीे हो, क्या तुम भी मेरे ही जैसीे हो? आज भी मुझे तुम्हारी आँखें पढ़नी आती हैं, आज भी वैसे ही नजरें चुरा रही हो, जैसे उस रात चुराया था। उस रात तुमने नजरे चुराई न होती तो मै समझ जाता तुम्हारे जाने की वज़ह क्या थी, एक बार कहना था तुम्हें मुझसे, आखिर मैंने तुमसे मोहब्बत की थी, मै न समझता तो कौन समझता। तुम्हे पता है उस रात के बाद की सुबह कैसी थी मेरी, सुबह की ताज़गी का एहसास कहीं खो सी गयी मेरी, हर सुबह मुझे डराती थी, हर सुबह बहुत ही तकलीफ भरी होती थी, जैसा लगता था कल ही की तो रात थी जब हम मिलें थे, वो अधूरी रात आज भी मेरे ज़ेहन मे ज़िंदा है। तुम्हारा इस तरह मुझे छोड़ के जाना, मै तो ठीक से तुम्हे अलविदा भी न कह पाया, मेरी मोहब्बत का ये अंजाम होगा, ऐसा मैंने कभी न सोचा था। अब आज 30 साल बाद ऐसे मिलना एक इत्तेफ़ाक़ ही तो है। ये रात भी उस रात जैसी हसीन है, क्योंकि तुम मेरे पास हो, और ये तब तक हसीन है जब तक तुम मेरे सामने हो। अब उस रात को तुम्हारे जाने की वज़ह पूछ कर इस रात को क्यों ख़फ़ा करूँ। तुम्