उस सर्द रात में मैं अपने गुस्से वाली गर्मी को ज्यादा देर तक बरकरार नहीं रख पाया, जितनी भी गर्मी थी मेरे दिमाग में सब इन ठिठुरन भरी सर्द हवाओं ने ठंडा कर दिया था। सोच रहा था आखिर ये गुस्सा मुझे इस वक़्त ही क्यों आया, बेबस निगाहों से मैं दरवाजे की तरफ देख रहा था और सोच रहा था, "अब वो आयेगी, अब वो आयेगी।" बहुत देर हो गयी इतने देर में तो उसका भी गुस्सा शांत हो जाना चाहिये था, लगता है ये ठंडी हवायें जिन्होंने मेरे गुस्से को ठंडा कर दिया, अंदर उसके पास तक नहीं पहुँच पा रही। "मेरा भी न अपने गुस्से पर काबू नहीं रहता,अब भुगतो! लगता है आज की रात बाहर ही बितानी पड़ेगी" मै खुद से बाते करते हुए बुदबुदा रहा था। अचानक दरवाजे के खुलने की आवाज आयी दरवाजे की तरफ देखा तो दरवाजे पर मेरी बिटिया थी, उसने मेरी खिंचाई करते हुए पूछा,"क्यों पापा मजे में हो?" मैंने बेबसी और लाचारी भरे स्वर में उससे पूछा,"अंदर का माहौल कैसा है?" "बहुत गर्मी है अंदर पापा" मेरी बेटी ने शैतानी वाले अंदाज़ में जवाब दिया, "आज रात तो यहीं काटनी पड़ेगी आपको।" मै अभी कुछ ...
अभी नया हूँ, पुराना तो होने दो, दौर मेरा भी आएगा, दीवाना तो होने दो।