ये कौन-सा तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग है जो विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के जनमत को स्वीकार करने का साहस नहीं दिखा पा रहा है। आखिर किस अकड़ में,आखिर कौन-सा परम ज्ञान है जो इनको ये यकीन नहीं दिला पा रहा है कि देश की आधे से अधिक आबादी ने ये बहुमत किसी सरकार को दिया है। संविधान में विश्वास का ढ़ोंग क्यों किया जा रहा है? क्यों बार-बार अपनी राजनैतिक लाभ के लिए संवैधानिक संस्थाओं की विश्वनीयता पर ऊँगली उठाई जा रही है? केवल आरोप मात्र से आप किस बुद्धिमत्ता का परिचय दे रहें हैं? आपका संविधान में विश्वास है तो संवैधानिक तरीके से अपनी वैचारिक और राजनैतिक लड़ाई लड़िये। आलोचना और विरोध की एक लक्ष्मणरेखा तय कीजिए जिससे इस समाज और इस देश को कोई क्षति ना हो। अगर आपको लगता है केरल में बीजेपी नहीं आई तो वही एक जगह सबसे बुद्धिजीवियों का है तो ये भी जान लीजिए एक वक़्त था जब बीजेपी कहीं थी ही नहीं, शायद कुछ वर्षों बाद हो सकता है बीजेपी भी ना रहे तब भी देश और जनता वही थी और वही रहेगी। आप अपनी बुद्धिमत्ता का ढ़ोंग उन्हीं के सामने करने में सफल हो पाए जो आपके विचारों से प्रभावित हैं लेकिन देश सिर्फ विचारधाराओं से न...
अभी नया हूँ, पुराना तो होने दो, दौर मेरा भी आएगा, दीवाना तो होने दो।