क्या सच में न्याय हो गया? बलात्कार होने से ना रोका जा सका। बलात्कार के बाद कानूनी लड़ाई में भी सहयोग ना दिया जा सका। ना ही प्रशासन और ना ही न्यायिक व्यवस्था की जवाबदेही तय की जा सकी। जमानत पर छूटे आरोपी खुलेआम घूम रहे थे फिर भी पीड़िता को सुरक्षा मुहैया नहीं कराई जा सकी। अब फिर किसी को ज़िंदा जलाया गया है । तो एक काम करो एक और एनकाउंटर कर दो। फिर से देश वाहवाही देगा, फिर देश जश्न मनाएगा, फिर पीड़िता को न्याय मिल जाएगा। इसके बाद फिर अगले अवसर के लिए तैयारी शुरू भी कर देना क्योंकि सुरक्षा तो देने से रहे फिर कोई न कोई जलेगा ही, गोली रिवॉल्वर में लोड रखना हमेशा। और हाँ! एक सवाल का जवाब भी ढूंढ़ते रहना कि क्या सच मे न्याय हो गया? समझ पाओ तो समझ लेना, बात यहाँ क्राइम रोकने की है ना कि क्राइम होने के बाद न्याय की फिल्मी स्क्रिप्ट लिखने की। ना ही उस चीज़ के लिए तालियां बटोरने की जिसे होने ही नहीं देना था, ना ही तालियां बजा कर शोर मचाने की क्योंकि इस शोर की अवधि बड़ी कम होती है। प्रश्न इस समाज के हर सदस्य को अपने आप से पूछने की आवश्यकता है कि कहाँ चूक हो रही है। हालात ये हैं कि सभी ने ए...
अभी नया हूँ, पुराना तो होने दो, दौर मेरा भी आएगा, दीवाना तो होने दो।