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Showing posts from September, 2019

|| फ़्रेंडमेल ||

सुनो! मेरे फ्रेंड लिस्ट की गाड़ी रुकी पड़ी है, कोई सवारी इधर न आ रही है न ही इधर से जा रही है। क्या अघोषित मंदी ने मेरी इस फ्रेंडगाड़ी को भी मंद कर दिया है? मैं इस रिक्वेस्ट-संकट से जूझ रहा हूँ। कभी-कभी महसूस करता हूँ कि जिस वक्त मैंने इसकी शुरुआत की थी तब तो इतने लंबे सफर की कल्पना नहीं कि थी तो आज क्यों मैं इस मंदी से विचलित हो रहा हूँ। लेकिन यकायक कभी किसी रोज कुछ कूल-डूड प्रजातियों की फ्रेंडगाड़ी मेरे सामने से गुजरती है जो सवारियों से खचाखच भरी पड़ी होती है, उनके गाड़ी की गुड़वत्ता दोयम दर्जे के होने के बावजूद भी। आखिर मैं इंसान ही हूँ, इसपर विचार करने से कैसे खुद को रोक लूँ। गहन विचार भी करता हूँ लेकिन किसी निष्कर्ष तक नहीं पहुंच पाता। मन कहता है इस आत्ममुग्धता से बचे रहो, विवेक कहता है इस संकट को समाप्त करो। एक अंतर्द्वंद्व निरंतर प्रभावी रहता है। इस अवस्था मे मन और विवेक के बीच तालमेल बैठाना थोड़ा कठिन मालूम पड़ता है लेकिन इनदोनों के विचारों के बीच एक अपना सशक्त विचार बनाने की कोशिश में लगा रहता हूँ। खैर! गाड़ी का रुकना ये तो नहीं दर्शाता कि वो फिर से कभी चलेगी ही नहीं, उम्मीद र