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Showing posts from September, 2017
कभी तो पूछ लिया करो हाल-ए-दिल मेरा, हर बार जो भी लिखूँ वो शायरी ही हो ज़रूरी तो नहीं। #दिव्यमान

बाल यौन शोषण।

ज़रा उन दरिंदों की हवस का आलम तो देखो, मासूम चेहरों में भी उन्हें अपनी हवस कैसे दिख जाती है? अरे इंसान के भेष में शैतानों! मासूम बच्चों को भी ना छोड़ा अपनी हवस की आग बुझाने को। तुम्हे वो मासूम आँखें नहीं दिखती जिनमें भगवान की छाया दिखाई देती हैं? अरे तुम देखोगे कैसे तुम्हारी आँखों पर हवस का परदा जो है। क्या तुम ऐसे ही अपने खुद के घर के बच्चों को भी देखते हो, वो बच्चे भी कितने बदनसीब होते होंगे जो तुम जैसों के घर में पैदा होते होंगे। इस दुनिया में इंसान की सबसे खूबसूरत अवस्था बचपन होती है तुम उसी बचपन की फुलवारी को उजाड़ रहे हो वो भी इतनी दरिंदगी से, तुम इंसान तो कत्तई ना हो। जिन मासूम आँखों को देख किसी का भी दुःख दूर हो जाता है, जिन मासूम चेहरे पर हँसी देखने के लिए इंसान कुछ भी करने को तैयार रहता है, तुम दुनिया की अच्छाई और बुराई से अनजान उन बेक़सूर मासूम सी ज़िन्दगी को खा रहे हो। ऐसे दरिंदों की क्या सजा होनी चाहिए मेरी समझ के परे है, लेकिन इतना पता है ऐसे दरिंदे इस समाज में एक पल भी रहने लायक नहीं हैं। अब हमें ही इंसान के बचपन की फुलवारी को बचाना होगा इन सरफिरे दरिंदों से। ये एक